ऑस्टियोपोरोसिस के बढ़ रहे मामले
ऑस्टियोपोरोसिस में हड्डिया कमज़ोर होकर टूटने लगती है। अगर इस बीमारी के बारे में समय रहते पता चल जाए तो इसका इलाज़ सम्भव है।
ऑस्टियोपोरोसिस में हड्डियां इतनी कमज़ोर हो जाती हैं कि मामूली चोट लगने पर भी उसमें फ्रेक्चर हो जाता है। जैसे – जैसे उम्र बढ़ती है, इस बीमारी की आशंका बढ़ती जाती है।
विशेषज्ञों के मुताबिक खान – पान में ‘कैल्शियम‘ और ‘विटामिन डी-3‘ की कमी इस बीमारी की मुख्य वजह है। इसमें हड्डियों का वजन कम हो जाता है। यही नहीं, बोन टिश्यू में समस्या आने से रीढ़ की हड्डी, कलाई, हाथ वगैरह में फ्रेक्चर होने की आशंका भी बनी रहती है।
आमतौर पर इस बीमारी का पता काफी समय बाद लगता है। तब तक हड्डिया कमज़ोर होकर क्रैक होना शुरू कर देती हैं।
इसलिए डॉक्टर समय – समय पर एक्सरे करवाने की सलाह देते हैं, ताकि समय रहते बीमारी का पता लगा, उस पर नियंत्रण पाया जा सके।
Table of Contents
४० के बाद आशंका अधिकः
ऑस्टियोपोरोसिस में हड्डियों में वसा कम होता जाता है। जिस कारण वे दिन प्रतिदिन कमज़ोर होने लगती है। यूँ तो ऑस्टियोपोरोसिस की आशंका अधेड़ उम्र की महिलाओं में ज्यादा होती है, लेकिन आजकल २० से ३० साल की उम्र की महिलाओं में भी यह बीमारी देखने में आ रही है। दरअसल इस उम्र में एस्ट्रोजेन हार्मोन का स्त्राव कम होता है, जिससे हड्डियों की मज़बूती प्रभावित होती है।
पहचानः
इस बिमारी में रीढ़, कलाई और हाथ की हड्डी में आसानी से फ्रेक्चर हो जाता है। शुरू में तो हड्डियों और मांसपेशियों में हल्का – हल्का दर्द होता है, लेकिन आगे चलकर यह बढ़ता जाता है। खासतौर से कमर के निचले हिस्से और गर्दन में हल्का सा दवाब पड़ने से भी कभी कभार तेज़ दर्द शुरू हो जाता हैं। कई बार सांस लेने में भी तकलीफ होने लगती है।
यह हैं कारणः
२० से ३० के वय की महिलाओं में बढ़ते ऑस्टियोपोरोसिस मामले की प्रमुख वजह डाइटिंग और बदलती लाइफ स्टाइल है। जिन महिलाओं को अल्कोहल और स्मोकिंग की आदत है, उनमें भी यह समस्या अधिक देखना में आई है। मोटापा भी इसकी बड़ी वजह है। एक रिसर्च के मुताबिक इसे अनुवांशिक बीमारी से भी जोड़ कर देखा जाता है। वास्तव में हमारी हड्डियां प्रोटीन, कैल्शियम एवं साल्ट की बनी होती हैं। दरअसल २५ साल के बाद ही हड्डियां पूरी तरह विकसित होती हैं और फिर मासिक चक्र के शुरूआती दौर में महिलायें अपने शरीर का ३० फीसदी कैल्शियम खर्च करती हैं। इसलिए किसी भी हड्डियों की समस्या से बचने के लिए इस दौरान सप्लीमेंट्स लेने जरूरी हैं।
जांचः
सबसे बेहतर तरीका एक्सरे और बोन मिनरल डेंसिटी (बी एम् डी) टेस्ट है। इसके अलावा डीण् ईएक्स यानी ड्यूल एनर्जी एक्सरे कराने से भी इस बीमारी का पता लगा सकते हैं। अगर घनत्व २.५ मिण्मीण् से कम है तो आप यकीनन इस बीमारी से ग्रसित हैं और अगर यह ४ है तो आपको इससे कोई खतरा नहीं है। इसके लिए महिलाओं की मेडिकल हिस्ट्री, फिज़िकल टेस्ट, हड्डियों की जांच और एक्सरे कराया जाता है।
उपचारः
ऑस्टियोपोरोसिस के इलाज़ के लिए कई तरह ही दवाएं उपलब्ध हैं। हालांकि इनकी जगह ‘कैल्शियम‘ और ‘विटामिन डी -३‘ के सप्लीमेंट्स भी ले सकते हैं। लेकिन बीमारी पर समय रहते काबू करने के लिए डॉक्टर्स दवाओं के सेवन की ही सलाह देते हैं। इसके अलावा रोजाना वॉक और व्यायाम करने से भी काफी हद तक इस समस्या से बचा जा सकता है। अल्कोहॉल और सिगरेट का सेवन कम करने से भी इस बीमारी को दूर रखा जा सकता हैं।
इनका रखें ध्यानः
- संतुलित खान – पान अपनाएँ।
- डाइट में कैल्शियम और विटामिन डी की मात्रा अधिक रखें।
- सिगरेट व शराब से बचें।
- चाय कॉफी और एनर्जेटिक ड्रिंक का सेवन कम से कम करें।
डॉ. राज कुमार
सच्ची शिक्षा हिंदी मैगज़ीन से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook, Twitter, Google+, LinkedIn और Instagram, YouTube पर फॉलो करें।