'It will be a three storeyed house, it will be built like a fort...' - Experiences of Satsangis

‘इत्थे तीन मंजिले मकान बनाएंगे, किले की तरह बनाएंगे…’ – सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
सतब्रहमचारी सेवादार दादू पंजाबी डेरा सच्चा सौदा, सरसा से शहनशाह मस्ताना जी महाराज के वचनों को एक प्रत्यक्ष करिश्मे द्वारा इस प्रकार वर्णन करता है :-

सन् 1958 की बात है। डेरा सच्चा सौदा शाह मस्ताना जी धाम के दक्षिणी भाग में खान चन्द सुनार बेगू वाले की जमीन थी जो डेरा सच्चा सौदा की दीवार के साथ लगती थी। इस जगह पर अब शाह सतनाम जी बॉयज स्कूल-कॉलेज का होस्टल बना हुआ है।

एक दिन पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज खान चन्द की जमीन की तरफ डेरा सच्चा सौदा की दीवार के साथ-साथ जा रहे थे। उस समय शहनशाह जी के साथ मैं (सतब्रहमचारी सेवादार दादू पंजाबी) और कुछ अन्य सेवादार भी थे। तो अचानक आगे से खान चन्द अपनी जमीन में खड़ा मिल गया।

उसने प्यारे सतगुरु जी को ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ का नारा लगाया। घट-घट की जानने वाले बेपरवाह शहनशाह जी ने वचन फरमाए, ‘खान चन्द ! संगत तेरी कणक मिद्ध (लताड़) देती है। तेरा नुक्सान होता है। तू अपनी जमीन डेरे को मोल दे दे।’ खान चन्द ने दोनों हाथ जोड़कर अर्ज की साईं जी ! जहां से एक बल्ली टूटती है तो वहां पर दो लगती हैं। संगत हमारा कोई नुक्सान नहीं करती।

इस पर सर्व सामर्थ सतगुरु जी ने फिर वचन फरमाए, ‘खान चंद ! तू अपनी जमीन दे दे नहीं तो समय आने पर असीं ले ही लेंगे, छोड़ेंगे नहीं। इत्थे तीन मंजिले मकान बनाएंगे। किले की तरह बनाएंगे। बच्चों को पढ़ाएंगे। बच्चों को पढ़ा कर सब को सुख देंगे।’
समय गुजरता गया। पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने .दूसरे पातशाह पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की बॉडी में बैठ कर वही श्री खान चन्द वाली जमीन खरीद ली। फिर उसके बाद परम पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने बेपरवाह जी के उपरोक्त वचनानुसार मई-जून 2002 में किले की तरह तीन मंजिले मकान बनाकर उन वचनों को पूरा किया। वही इमारत आज शाह सतनाम जी बायज स्कूल व कॉलेज के छात्रों के लिए होस्टल बनाया गया है।

गोल आकार की दीवारों वाली ये इमारत वास्तव में ही एक किले की तरह लगती है। एक नया आदमी जो इस शहर में पहली दफा ही आया हो तथा. इस इमारत को आकर देखे तो वह इसे वास्तव में ही बादशाह का एक किला कहेगा।
इस प्रकार पूर्ण संत-महापुरुषों के वचन युगो-युग अटल होते हैं, वे कभी बदलते नहीं। उनके वचनों में इतनी जबरदस्त शक्ति होती है कि युग तो बदल सकता है परच्तु वचन कभी बदल नहीं सकते। जैसे किसी पूर्ण संत महापुरुष के वचनों से ही त्रेता (तीसरा) युग द्वापर (दूसरा) युग से पहले हुआ है।
‘संत वचन पलटे नहीं, पलट जाए ब्रह्मण्ड।’

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