समय पर चलते नहीं, फिर नारे लगाते हो

समय पर चलते नहीं, फिर नारे लगाते हो :

सत्संगियों के अनुभव पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी की रहमत….

ज्ञानी करतार सिंह जी लाट साहब, गांव रामपुरथेड़ी डेरा सच्चा सौदा हरद्वार धाम जिला सरसा। लाट साहिब ने सतगुरु सार्इं बेपरवाह मस्ताना जी महाराज का उपरोक्त अनुसार यह एक अलौकिक करिश्मा अपने जीते-जीअ इस प्रकार बताया है:-

लाट साहब ने बताया कि उपरोक्त घटना सन् 1958 की है। उस दिन डेरा सच्चा सौदा सतनामपुर धाम कंवरपुरा में पूज्य सार्इं जी का सत्संग था।

सरसा शहर की सेवा समिति ने सेवा के लिए सत्संग पर पहुंचना था। सेवादारों ने यहां (सरसा) से रेलगाड़ी से जाना था, लेकिन एक दूसरे की इंतजार में कि फलां नहीं आया, वो आ गया तो जो उसे बुलाने गया था, वह पीछे रह गया इत्यादि और ऐसे करते कराते जब तक सेवादार इकट्ठे होकर रेलवे स्टेशन को जा रहे थे, तब तक हिसार जाने वाली रेलगाड़ी रेलवे स्टेशन छोड़कर लगभग शहर के आखिरी फाटक तक पहुंच गई थी।

अब क्या करें। सभी हाथ मलने (पश्चाताप करने) लगे और कोई साधन भी नहीं था कि वे समय रहते वहां पहुंच पाते। पश्चाताप करते-करते इतने में उनमें से एक प्रेमी ने कहा कि आपां जोर-जोर से नारा लगाते हैं, कहते हैं कि कभी जरूरत पड़े तो नारा बोल दें तो तेज रफ्तार जा रही रेल गाड़ी भी रूक सकती है, तो सबने मिलकर जोर-जोर से पांच बार पूरा नारा धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा, धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा बोल दिया। देखा तो गाड़ी एकदम फाटक के पास पहुंचकर रूक गई।

सभी सेवादार तेजी से जाकर रेलगाड़ी में बैठ गए। चलते-चलते उन्होंने सुना रेलवे कर्मचारी (फाटक वाले आदि) आपस में बात कर रहे थे कि गाड़ी के एकदम से ब्रेक क्यों लग गए हैं। सेवादारों ने पूज्य सतगुरु प्यारे का तहदिल से धन्यवाद किया। सब लोग सुचानकोटली स्टेशन पर उतर कर सत्संग के समय पर कंवरपुरा दरबार में पहुंच गए।

जैसे ही सेवा समिति सरसा वाले सेवादार दरबार कंवरपुरा में दाखिल हुए यानि दरबार में अभी पैर रखा ही था और अपने मिलने जुलने वाले प्रेमियों से दुआ-सलाम (धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा) मेला गेला कर रहे थे कि एक सेवादार भाई ने दूर से ऊंची आवाज में कहा कि सेवा समिति सरसा वाले सेवादार अभी जल्दी से जल्दी तेरावास में पहुंचे।

आप लोगों से कोई जरूरी काम है। सबकुछ वहीं छोड़कर सभी सेवादार तुरंत पूज्य पावन हजूरी में पहुंचे और नारा लगाया, सजदा किया। पूज्य सार्इं जी ने जोश भरी आवाज में उन्हें डांटते हुए फरमाया, ‘बई तुम गरीब मस्ताने की परीक्षा लेते हो? समय पर आप नहीं चलते और फिर नारे लगाते हो।

जब तुमने नारा लगाया उस समय असीं सचखंड में थे। वहां से आकर गाड़ी रोकी। फिर ऐसा काम मत करना।’ पूज्य सतगुरु दयालु दातार जी ने अपने इन चेतावनी भरे वचनों से सेवादारों को डांट भी दिया और समझा भी दिया, एवं क्षमा भी कर दिया।

संतों के वचन हैं कि दुनिया का प्यार भी घाती होता है, और संतों का क्रोध भी दाती होता है। सच्चे संत-महापुरुष, गुरु, मुर्शिदे-कामिल ने अपने किसी शिष्य को कभी गुस्से में कुछ कह भी दिया (शिष्य की किसी गलती पर) तो उसमें भी मालिक के रहमो करम की पता नहीं कितनी दात (वरदान) छुपी होगी।

संत सतगुरु दया के पुंज होते हैं, कभी कभार अगर किसी से कुछ करड़े (सख्त) लफजों में कह भी दिया हो, (वैसे तो वो किसी से कुछ कभी कहते ही नहीं हैं), तो पता नहीं कितनी पीढ़ियों, कितनी कुलों (कुलों-दर-कुलों) का उनके सुधार होगा।
संत सतगुरु अपनी दयालुता का पल्ला कभी नहीं छोड़ते।

उनका मकसद हमेशा व हर पल जीव का भला करना ही रहता है।

सच्चे सतगुरु सार्इं शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने अपनी अपार रहमत से उन्हें क्षमा ही नहीं किया, बल्कि उन्हें अपने पावन आशीर्वाद की अपार रहमतें भी बख्श दी।

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