बच्चों की पढ़ाई के लिए अनुकूल रखें घर का वातावरण : आप तो अजीब बात करते हैं।
आप कहते हैं कि घर में मां-बाप बच्चों की पढ़ाई का ज्यादा ख्याल रखें, हम लोग ऐसा कर पाते तो अपने बच्चों को स्कूल भेजते ही क्यों? हम तो बच्चों को इसलिए स्कूल भेजते हैं कि स्कूल के मास्टर लोग उनकी पढ़ाई का पूरा-पूरा इंतजाम करें। इसी के लिए तो आप लोगों को मोटा वेतन दिया जाता है न? श्री मुहम्मद ने पी. टी. ए. मीटिंग में साहस भाव से अपनी बात रखी। यहां तो हेड-मास्टर ने बस इतना ही कहा था-
प्राय देखा जाता है कि अध्यापकों के बच्चे पढ़ने में आगे रहते हैं। इसका मुख्य कारण यही है कि अध्यापक जानते हैं कि घर में यदि वातावरण पढ़ने के लिए अनुकूल नहीं रखा जाए तो बच्चे पढ़ने में पर्याप्त रूचि नहीं लेंगे और पढ़ाई में पिछड़ जाएंगे।
हर मां-बाप का यह कर्तव्य है कि बच्चे को शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ रखें ताकि वे पढ़ने में मन लगा सकें। इस के लिए उन्हें पौष्टिक आहार पर्याप्त मात्रा में देना होगा और बीमारियां आने पर तुरन्त चिकित्सा करानी होगी। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का विकास हो सकता है। अब तो कई मां-बाप बच्चों को आइस-क्र ीम, चॉकलेट, कोका कोला, फास्ट-फूड आदि देने में ज्यादा पैसा बरबाद करते हैं। कितना अच्छा होता इस पैसे का उपयोग करके बच्चों को दूध, मक्खन, केला, पपाया, सेब जैसे स्वास्थ्य-वर्द्धक पदार्थ उपलब्ध कराते।
बच्चों को आराम से बैठकर पढ़ने के लिए साफ सुथरी जगह घर में उपलब्ध करानी होगी। बड़े घरों में बच्चों के लिए अलग स्टडी रूम दे सकते हैं। घर छोटे हों तो भी एक कोने में एक मेज और कुर्सी एक बच्चे को मिल सके तो काफी होगा। हां, वातावरण शांत रखें।
पाठ्यक्र म में निर्धारित सभी पुस्तकें यदि बच्चों को नहीं मिलें तो पढ़ाई में पिछड़ जाना स्वाभाविक है। हम तो अपने स्कूली दिनों में केवल दो तीन मुख्य पाठ्य पुस्तकें ही खरीद लेते थे, शेष किताबें किसी किसी मित्र से लेकर हाथ से उन की प्रतिलिपि करनी पड़ती थी। मां-बाप की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि फीस देने के पैसे ही बड़ी मुश्किल से जुटा पाते थे। आज तो स्थिति काफी सुधर चुकी है।
सुबह पांच बजे या उससे पहले यदि मां-बाप जग जाएं तो बच्चे भी उसी समय जगाए जा सकते हैं। कई मां-बाप आधी रात तक टी. वी. देखने या अन्य मनोरंजनों में मस्त रहने का कारण सुबह सात बजे के पहले जग नहीं पाते। ऐसे घरों में बच्चे भी देर से जगें तो दोष किसका?
निकट के किसी ग्रंथालय में मां-बाप यदि सदस्य बन जाएं और बच्चों को भी वहां नियमित रूप से लेकर जाएं तो बच्चों में विविध विषयों की पुस्तकें और पत्रिकाएं पढ़ने की इच्छा उत्पन्न की जा सकती है और एक बार ग्रंथालय का सही उपयोग करना सीख जाएं तो बच्चे पाठ्यपुस्तकों साथ-साथ अन्य उत्तम ग्रंथ भी पढ़ते जाएंगे। पढ़ाई पर इसका बहुत अनुकूल प्रभाव पड़ेगा।
– के.जी. बालकृष्ण पिल्ले