बच्चों के चरित्र-निर्माण में सहायक होता है स्तनपान :

आज के युग में शिशुओं को स्तनपान न कराना एक फैशन-सा हो गया है, क्योंकि महिलाओं ने अपने दिमाग में इस विचारधारा को विकसित कर लिया है कि बाजार में उपलब्ध बेबी फूड उनके दूध का पर्याय है और दूसरा यह कि कहीं स्तनपान कराने से उनका शारीरिक सौंदर्य न गड़बड़ा जाए जबकि तमाम अनुसंधानों एवं शोधों से यह प्रमाणित हो चुका है कि ‘स्तनपान न सिर्फ महिलाओं को ही अनेक रोगों से बचाता है, बल्कि बच्चा भी स्तनपान के द्वारा अपने संतुलित व्यक्तित्व के विकास को पूरा करने की क्षमता को हासिल कर पाता है।

प्रसिद्घ बाल मनोवैज्ञानिक फ्रायड तथा उसके अनुयायियों व बालरोग चिकित्सकों आदि के प्रयोगों पर आधारित यह निष्कर्ष निकला है कि संतोषप्रद स्तनपान का व्यक्तित्व के विकास पर स्वस्थ प्रभाव पड़ता है।

जिस शिशु का मां के साथ सुखद सम्पर्क स्थापित हुआ करता है, वह आगे चलकर अन्य सामाजिक संबंधों को सुखपूर्वक स्थापित कर पाता है। उसके अन्तर्वैयक्तिक संबंध आत्मविश्वास के साथ तनावविहीन बनते हैं। वह व्यक्ति समाज के साथ सहज ढंग से सामाजिक अभियोजन के लिए प्रेरित करता है।

प्रसिद्घ मनोविश्लेषक एरिक एक्सिन का मत है कि बच्चे की अपने तथा अपने आसपास की दुनियां में विश्वास की जड़ उसकी विकास की मुखीय अवस्था में होती है। शैशवकाल में संतोषजनक स्तनपान बालकों में आत्मविश्वास एवं आत्मसम्मान भरता है। मागरेट रिबिल का भी विचार है कि मां का पर्याप्त वात्सल्य बच्चे में संवेगात्मक, बौद्घिक एवं सामाजिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।

माता के द्वारा बच्चे को तीन प्रकार का संवेदी आनंद प्राप्त होता है, स्पर्श द्वारा, अंग संचालन द्वारा तथा ध्वनि द्वारा। प्यार से बच्चे की त्वचा को सहलाना, उसे बाहों में भरना या आलिंगन करना, लोरी गा-गाकर सुलाना या पुचकारना आदि क्रियाएं मां और बच्चे के बीच स्नेहिल संबंध स्थापित करता है। मां का बच्चे के साथ अधिक से अधिक सम्पर्क होना चाहिए अर्थात् संवेगात्मक विनिमय (आदान-प्रदान) होते रहना चाहिए।

मां द्वारा आराम से शिशु को स्तनपान कराना या प्यार भरे बोल के साथ बदन या बाल सहलाते हुए स्तनपान कराना शिशु को तनावरहित करने की एक प्रक्रिया है जिसमें माता की छवि शिशु के सम्मुख ‘तनाव दूर करने वाली वस्तु’ के रूप में बनती है। यह छवि शिशु के लिए लाभप्रद अनुभव हो जाती है और इस प्रकार बच्चे का मां पर अवलंबित होना एक प्रकार का गौण या अर्जित आनंद देता है जो उसको जीवन पर्यन्त साहसी बनाए रखता है।

मां का सामीप्य जितना सुखदायी होगा, उतना ही उसकी उपस्थिति बच्चे के लिए प्रसन्नतादायिनी होगी और बच्चा अपनी मां के सान्न्ध्यि में अपने आपको उतना ही सुखी और सुरक्षित अनुभव करेगा सुखी और संतुष्ट बच्चा ही आगे चलकर समाज के साथ सही ढंग का अभियोजन स्थापित कर सकता है।

– आनंद कुमार अनन्त

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