खुशजीत बेटा! खुशजीत बेटा! – सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज की अपार रहमत
सेवादार बहन खुशजीत इन्सां पुत्री सचखण्ड वासी स. चानण सिंह गांव शाह सतनाम जी पुरा जिला सरसा से लिखती है
कि कुल मालिक बेपरवाह शहनशाह परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार महिमा का वर्णन हम तुच्छ बुद्धि वाले जीव नहीं कर सकते और न ही उनके किए उपकारों का बदला चुका सकते हैं। मैं एक चमत्कार का वर्णन कर रही हूं।
सन् 1976 की बात है कि हम तीनों बहनें (मनजीत, कमलजीत, खुशजीत) डेरा सच्चा सौदा शाह मस्ताना जी धाम के एक कमरे में रहकर सेवा कर रही थी। माता लछमी भी हमारे पास रहती थी। एक दिन मुझे कंपकंपी लग कर बहुत तेज बुखार (मलेरिया) हो गया जो 105 डिग्री था। मैंने दो रजाइयां अपने ऊपर ले ली व लेट गई। माता लछमी ने मुझे गर्माइश देने के लिए बट्ठल में आग डालकर मेरी चारपाई के नीचे रख दिया। उन दिनों दरबार में दीवारों की धुलाई की सेवा चल रही थी, तो मनजीत और कमलजीत पहले ही इस सेवा में गई हुई थी।
माता लछमी लंगर घर में लंगर की सेवा में चली गई। ज्यादा बुखार की वजह से मुझे अपने आप की होश नहीं रही थी। अचानक ही रजाई का एक पल्ला आग के बट्ठल में गिर गया तथा रजाई को आग लग गई। सारा कमरा धुएं से भर गया। मालिक सतगुरु तो हर वक्त हर जीव के अंग संग हैं। शहनशाह परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने मुझे प्रत्यक्ष दर्शन दिए और अपने पवित्र मुख से फरमाया, ‘खुशजीत बेटा! खुशजीत बेटा!’ शहनशाह परम पिता जी की बहुत ही मीठी-मीठी आवाज सुनकर मैं एकदम उठी कि शहनशाह जी मुझे क्यों बुला रहे हैं, तो देखा कि कमरा तो आग से तप रहा था, धुआं ही धुआं था। धुएं और अंधेरे के कारण कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।
मैंने अपने सतगुरु की मेहर से वहीं पड़े दो घड़े पानी के आग पर उड़ेल दिए तो आग बुझ गई। उस जलती आग में से शहनशाह सतगुरु जी ने अपनी कृपा से ही मुझे बचा लिया। मैंने अपने कमरे में से बाहर निकल कर इधर-उधर देखा कि शहनशाह जी कहां खड़े आवाज लगा रहे हैं। परन्तु शहनशाह जी तो कहीं भी दिखाई नहीं दे रहे थे। उन्होंने तो अंदर से ही इशारा करके मुझे जलती आग में से बचा लिया।
जैसे कि लिखा है:-
‘‘तेरा सतगुर सच्चा मित्र,
इत्थे उत्थे नाले है।
दु:ख मुसीबत जित्थे पैंदी,
सतगुर आप संभाले है।’’
अब मेरी परम पूजनीय परम पिता जी के स्वरूप हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के चरणों में यही प्रार्थना है कि सेवा सुमिरन का बल बख्शना जी तथा ओड़ निभा देना जी।