31 वर्ष का सुनहरी सफर ‘जंगल में मंगल’ -सम्पादकीय
शाह सतनाम शाह मस्तान जी धाम व मानवता भलाई केन्द्र डेरा सच्चा सौदा MSG DSS Editorial
डेरा सच्चा सौदा आज पूरी दुनिया में रूहानियत व इन्सानियत के केंद्र के तौर पर जाना जाता है। यहां पर हम बात कर रहे हैं ‘शाह सतनाम शाह मस्तान जी धाम व मानवता भलाई केंद्र डेरा सच्चा सौदा(परम पिता शाह सतनाम जी धाम) सरसा’ की। शाह सतनाम शाह मस्तान जी धाम व मानवता भलाई केंद्र डेरा सच्चा सौदा (परमपिता शाह सतनाम जी धाम) सरसा, अर्थात् इस पावन दरबार का 31 वर्ष का सुनहरी सफर बहुत ही अद्भुत व अत्यंत दिलचस्प है। डेरा सच्चा सौदा आज किसी भी पहचान का मोहताज नहीं है।
पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज (डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक) ने 29 अप्रैल 1948 को सरसा शहर से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर शाह सतनाम सिंह जी मार्ग बेगू रोड पर डेरा सच्चा सौदा की शुभ स्थापना की, जो आज शाह मस्तान शाह सतनाम जी धाम व मानवता भलाई केंद्र डेरा सच्चा सौदा (शाह मस्ताना जी धाम) के नाम से जाना जाता है। पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने उन्हीं दिनों जिला सरसा के गांव नेजाखेड़ा (नेजिया) में भी एक दरबार डेरा सच्चा सौदा व मानवता भलाई केंद्र सतलोकपुर धाम दमदमा साहिब स्थापित किया।
पूजनीय सार्इं जी वहां अक्सर सत्संग फरमाने के लिए जाया करते थे। पूजनीय बेपरवाह जी आमतौर पर पैदल ही जाया करते। उस सारे रास्ते में उन दिनों में चारों तरफ बालू रेत के बहुत ऊंचे-ऊंचे टीले हुआ करते थे। (पूजनीय सार्इं जी शाह मस्तान शाह सतनाम जी धाम व मानवता भलाई केंद्र डेरा सच्चा सौदा (शाह मस्ताना जी धाम) से नेजिया तक बालू रेत के उन ऊंचे टीलों में से आमतौर पर पैदल ही आया-जाया करते थे।) तब सड़क आवाजाही की सुविधा नहीं हुआ करती थी। लोग भी आमतौर पर पैदल या ऊंटों पर ही आया-जाया करते थे।
पूजनीय बेपरवाह सार्इं जी जब भी इधर आते-जाते तो उन 20-20, 25-25 फुट ऊंचे रेत के टीलों को बड़ी उत्सुकता से निहारते। एक बार आप जी जब उन टीलों में से जा रहे थे तो आपजी वहां एक बहुत ऊंचे टीले पर चढ़कर बैठ गए और जो सेवादार आपजी के साथ थे, वे भी आपजी की पावन हजूरी में जाकर बैठ गए। पूजनीय सार्इं जी ने सभी को सुमिरन करने का वचन फरमाया। उपरांत थोड़ी देर के बाद ताली बजाकर हंसते हुए पवित्र मुख से फरमाया कि ‘वाह भई वाह! इतनी संगत! थाली फैंको तो (सरसा से नेजिया तक) नीचे ना गिरे। यहां पर बाग-बहारी लगेगी। फल व दुनिया जहान के मेवे पैदा होंगे।’ कुछ जमींदार भाई जो उस समय वहां आस-पास अपने खेतों में अपने खेती-कार्य कर रहे थे, वह भी आपजी के दर्शन करने के लिए वहां आकर बैठ गए थे। कहने लगे, सार्इं जी, हमें तो कुछ दिखता नहीं। यहां से दूर-दूर तक रेत ही रेत नजर आती है और कोई पक्षी-परिंदा भी दिखाई नहीं पड़ता। सार्इं जी ने फरमाया कि ‘भागों वाले ही देखेंगे।’ वह रेत का बहुत ऊंचा टीला वही टीला था, जहां आज शाह सतनाम शाह मस्ताना जी धाम व मानवता भलाई केन्द्र डेरा सच्चा सौदा (शाह सतनाम जी धाम) सरसा में तेरावास बना हुआ है।
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने उन्हीं रेत के टीलों को देखकर वचन फरमाया कि ‘यहां पर आलीशान दरबार बनेगा, दुनिया खड़-खड़कर देखेगी।’ समय के अनुसार साध-संगत इतनी ज्यादा (भाव हजारों से बढ़कर लाखों में) हो गई कि शाह मस्ताना जी धाम इतनी ज्यादा साध-संगत के चलते बहुत छोटा पड़ गया, तो एक बहुत बड़े दरबार (डेरे ) की सख्त जरूरत महसूस हुई। पूजनीय परमपिता जी ने 23 सितंबर 1990 को पूज्य मौजूूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को डेरा सच्चा सौदा की गुरगद्दी पर बतौर तीसरे पातशाह विराजमान कर दिया था।
तब सन् 1993 का वर्ष आ गया। पूज्य मौजूदा गुरु जी ने जिम्मेवार सेवादारों को अपने मुर्शिद प्यारे के वचन एवं आदेशनुसार उन सभी टीलों को खरीदने का हुक्म फरमाया। पावन आदेश पर फूल चढ़ाए गए और ज्यादा से ज्यादा टीलों को मुंह मांगी कीमत अदा करके खरीद लिया गया। अब इतने ऊंचे-ऊंचे टीले ‘कहां पर और कैसे खपेंगे’, यह प्रश्न उन सेवादारों के लिए एक अबूझ बुझारत के समान था। पूज्य गुरु जी ने उधर सरसा शहर से थोड़ी ही दूरी पर उस र्इंट-भट्ठे वाली जमीन को खरीदने का आदेश फरमाया जोकि 15-15, 20-20 फुट गहरे खड्ढों के रूप में थी।
पूजनीय गुरु जी के पावन वचनानुसार, उसी वर्ष मई-जून के महीनों में खूब जोर-शोर से दिन-रात सेवा चली। पूज्य गुरु जी ने टीले उठाने की इस परमार्थी सेवा का दिनांक 24 मई को अपने पवित्र कर-कमलों से पहला टक लगाकर शुभारंभ किया था। हज़ारों सेवादारों ने अपने ट्रैक्टर-ट्रालियों, ट्रकों आदि साधनों के द्वारा इस परमार्थी सेवा में रात-दिन एक करते हुए तन-मन (दिलोजान) से सेवा की। देखते-देखते ही टीले उठने लगे और वो गहरे खड्ढे भरने लगे। इस तरह दोनों जगहें समतल हो गई।
पूज्य गुरु जी ने उन टीलों वाली (समतल हुई) जमीन पर शाह सतनाम शाह मस्तान जी धाम व मानवता भलाई केंद्र डेरा सच्चा सौदा (परमपिता शाह सतनाम जी धाम) की स्थापना की। यहां पर कई एकड़ में एक विशाल सत्संग पंडाल बनाया गया और पंडाल में एक बहुत बड़ा शैड, एक बहुत बड़ा सचखंड हाल और शाही कंटीनें बनवाकर साध-संगत (भाई-बहनों) को खाने-पीने, बैठने, आराम करने की अलग-अलग शानदार सुविधाएं प्रदान की गई हैं। ‘तेरावास’ का शुभ मुहूर्त पूज्य गुरु जी ने जहां उसी वर्ष (सन् 1993) के अगस्त महीने यानि 15 अगस्त को किया, वहीं 31 अक्तूबर रविवार को अक्तूबर महीने का विशाल मासिक रूहानी सत्संग फरमाकर यह पवित्र दरबार साध-संगत की सेवा में अर्पित कर दिया।
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज और पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के पवित्र वचनों के अनुसार यह पावन आलीशान दरबार आज देश व दुनिया के करोड़ों लोगों (सात करोड़ से भी ज्यादा साध-संगत) की आस्था का महापवित्र केंद्र बना हुआ है। पूज्य मौजूदा गुरु जी की पाक-पवित्र प्रेरणाओं के अनुसार, इन रेतीले टीलों वाली जमीन को इस कदर उपजाऊ बना दिया गया है कि वो कौन -सा फल, मेवा, सब्जियां व फसलें इत्यादि हैं जो यहां पर पैदा न होती हों और उक्त बेपरवाही वचनों के अनुसार, बड़े भण्डारों पर करोड़ों की संख्या में साध-संगत देश-विदेश से यहां पर पहुंचती है कि गाड़ियों की कई-कई किलोमीटर लंबी लाइनें और बड़े लम्बे-लम्बे जाम लग जाते हैं और पूजनीय बेपरवाह जी के ही वचनानुसार कि थाली भी कई-कई किलोमीटर तक नीचे नहीं गिरती।
पूज्य गुरु जी ने अपने पाक-पवित्र रहमो-करम से यहां पर जंगल में ऐसा मंगल कर दिखाया कि ‘जंगल में मंगल’ वाली मिसाल प्रत्यक्ष है और दुनिया इस चमत्कार को देखकर दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाती है कि कल तक जहां बालू रेत के इतने ऊंचे-ऊंचे टीले हुआ करते थे और आज वहीं पर एक-दूसरे से बढ़कर बड़े-बड़े अजूबे यानि आलीशान से आलीशान ऊंची-ऊंची इमारतें नज़र आ रही हैं, जोकि एक अटल सच्चाई है।
परमपिता शाह सतनाम जी धाम को बने आज 31 वर्ष पूरे हो चुके हैं। वर्णनीय है कि यह डेरा सच्चा सौदा सर्वधर्म संगम की प्रत्यक्ष मिसाल है और ये पूरी दुनिया की आस्था का महान केंद्र है।
‘काहिबो को शोभा नहीं देखा ही प्रवान।’