MSG Maha-Rahmokaram Day

सतनाम’ सहारे हैं खंड-ब्रह्मंड सारे -65वें पावन गुरगद्दीनशीनी दिवस (पावन एमएसजी महा-रहमोकरम दिवस) 28 फरवरी विशेष

रूहानी बख्शिश का होना आध्यात्मिकतावाद में अपने-आपमें एक अनोखा व दुर्लभ वृत्तांत होता है। कोई ईश्वरीय ताकत ही इस रूहानी पदवी को हासिल करती है। बेशक वो आम लोगों की तरह इस मृत्युलोक में रहकर अपना जीवन बसर करें, पर उस उच्च रूहानी ताकत का भेद दुनिया को उचित समय आने पर पता चलता है और इसका रहस्योद्धाटन करना और भी महत्वपूर्ण है। जिस प्रकार एक जलता दीपक ही दूसरे दीयों को प्रज्ज्वलित कर सकता है,

उसी प्रकार एक रूहानी ताकत ही किसी और रूहानी ताकत को प्रकट कर सकती है। यह पवित्र कारज़ कोई भी आम इन्सान नहीं कर सकता। एक कामिल फकीर ही अपने स्वरूप परमपिता परमात्मा की प्रकट जोत को पहचान कर उसे दुनिया के सामने प्रकट कर सकता है और वही पूर्ण मुर्शिद-ए-कामिल ही पूरी दुनिया को इस अटल सच्चाई से रूबरू करवा सकता है। पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने अपने इस वचन ‘आपको जिंदाराम का लीडर बनाएंगे, जो दुनिया को नाम जपाएगा’ को पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के रूप में 28 फरवरी 1960 को स्पष्ट कर दिखाया।

शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज को दुनिया के सामने विराजमान करके 28 फरवरी के इस दिन को ऐतिहासिक बना दिया। दुनिया को दर्शा दिया कि डेरा सच्चा सौदा की रूहानी ताकत दुनिया में राम-नाम का डंका बजाएगी और हर किसी को अंदर वाले जिंदाराम का नाम जपाएगी। डेरा सच्चा सौदा और समस्त साध-संगत पर शहनशाह मस्ताना जी महाराज की अपार रहमत, अपार बख्शिशें हुई, जिससे यह दिन स्वर्णिम हो गया। इस स्वर्णिम दिवस की महानता को चार चांद लगाते हुए पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने 28 फरवरी के इस पाक-पवित्र दिवस को ‘एमएसजी महारहमोकरम दिवस’ के नाम से अलंकृत किया, जो डेरा सच्चा सौदा में रूहानी भण्डारे के रूप में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

वास्तव में, पूर्ण संत-महापुरुष जब कोई ऐसा रूहानी खेल रचते हैं तो यह कोई मामूली नहीं होता, जिसे तुरत-फुरत कर दिया जाए। इसके पीछे उनकी अथक मेहनत, रूहानी कमाई, दूरदृष्टि और अन्तर्यात्रा का दीर्घकालीन समावेश होता है या यूं कहें कि जब उनकी अनन्त रूहानी ताकत अपने शिखरों पर होती हैं और उसकी मस्ती का निखार रूहों पर निखरने वाला होता है, तो ऐसे खेल समय-समय पर जन्म लेते हैं। संत-सतगुर के ऐसे रूहानी खेल हर किसी की समझ में नहीं आते, लेकिन एक समय आता है जब इस रूहानी राज़ का भेद दुनिया को पता चलता है, तो हर कोई उसका मुरीद हो जाता है। शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को अपना केवल वारिस ही नहीं बनाया बल्कि ‘सतनाम’ के गहरे भेद को भी बताया, जिसे किसी ने सोचा तक भी नहीं था।

किसी को पता नहीं था कि ‘सतनाम’ किस महान हस्ती का नाम है तथा वो ‘सतनाम’ कहां है और उसके साथ हमारा क्या सम्बंध है। जब उस हस्ती के बारे पता ही नहीं था, फिर उसके दर्श-दीदार कैसे संभव हो सकता था। लेकिन शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने उस इलाही ताकत ‘सतनाम’ को सबके सामने विराजमान किया और बताया कि ‘वरी! ये वो ही ‘सतनाम’ है जिसे जपते-जपते दुनिया मर गई, लेकिन किसी ने आज तक देखा नहीं था। हम इन्हें सावण शाह सार्इं के हुक्म से मंजूर करवा कर लाए हैं। ये वो ही ‘सतनाम’ हैं जिसके सहारे खण्ड-ब्रह्मंड खड़े हैं। ये कुल मालिक हैं और ये ही सब कुछ हैं। कोई इतबार करे या ना करे। लेकिन ये ही दोनों जहानों के मालिक हैं। सबने इनके हुक्म में रहना है। अब इनका हुक्म चलेगा।’

28 फरवरी 1960 का यह चमत्कारिक दृष्टांत्त एक अलौकिक दर्शन हैं जिसे हज़ारों लोगों ने अपने सामने सम्पूर्ण होते देखा है। शहनशाह मस्ताना जी ने परमपिता जी को अपने साथ स्टेज पर बिठाया और दुनिया को साफ व स्पष्ट खुलासा करके बताया कि डेरा सच्चा सौदा के वारिस किस ईश्वरीय हस्ती के मालिक हैं। पूजनीय बेपरवाह जी ने ‘सतनाम’ के गूढ़ रहस्यों से दुनिया को अवगत करवाया। खंडों-ब्रह्मंडों के बारे बताया। दोनों जहानों का भेद समझाया और वह भी बड़े सरल व सादे शब्दों में। लेकिन पूरी गंभीरता के साथ यह कहते हुए कि कोई इतबार करे या ना करे, ये वो ही ‘सतनाम’ हैं, जिन्हें जपते-जपते दुनिया मर गई। आज हमने इन्हें आप सबके सामने बिठा दिया है।

जीवन परिचय:

ईश्वरीय ताकत जब धरा पर जन्म लेती है तो वो कालखंड, वो घड़ी, वो जगह अलौकिक प्रकाश से जगमगा उठती है। रूहें नमस्कार करती हैं। बारम्बार सजदा करती हैं। उस जगह और माता-पिता के सब ऋणी हो जाते हैं, जिनके सदका रूहों को अपने परमपिता परमात्मा के दर्शन नसीब होते हैं। हर शीश सजदे में झुक जाता है। परमपिता शाह सतनाम जी महाराज गांव श्री जलालआणा साहिब, जिला सरसा (हरियाणा) के रहने वाले थे। आप जी 25 जनवरी 1919 को पावन अवतार धारण कर सृष्टि पर प्रकट हुए। परमपिता जी के आदरणीय माता जी का नाम पूज्य माता आस कौर जी व आदरणीय पिता जी का नाम सरदार वरियाम सिंह जी सिद्धू था।

वो एक बहुत बड़े जमींदार थे और पूरे क्षेत्र में जैलदार की सम्मानित उपाधि से जाने जाते थे। परमपिता जी अपने उच्च घराने की इकलौती संतान थे और आदरणीय माता-पिता जी के घर अठारह वर्षों के लंबे इंतजार के बाद जन्म लिया था। उच्च घराना है और इकलौती संतान और वो भी अठारह वर्षों के बाद जन्म लिया हो तो ऐसे अपने लाडले के प्रति माता-पिता का जो अपार स्नेह उमड़ता है, उसे शब्दों में बांधकर बता पाना असंभव है। आदरणीय माता-पिता जी ने अपने लाडले का नाम सरदार हरबंस सिंह रखा। लेकिन बाद में शहनशाह मस्ताना जी ने ‘हरबंस’ से ‘सतनाम’ कर दिया। हालांकि माता-पिता के रखे उस पहले नाम में ही परमपिता जी ने अपने ईश्वरीय स्वरूप होने का आभास उन्हें करवा दिया था और उस रूहानी खुशी से उनको मालामाल कर दिया, जो हर किसी के नसीब में नहीं हो सकती।

वो ईश्वरीय ताकत जब मातलोक में अवतरित होती है तो एक तय समय तक आम लोगों की तरह ही अपना जीवन बसर करते हैं। दुनिया के सामने उसके प्रकटीकरण का एक निश्चित व निर्धारित समय होता है। हालांकि संस्कारी जीवों को उस ईश्वरीय ताकत का अहसास जरूर हो जाता है, बेशक वो दिखने में आम इन्सान की तरह ही लगते हों। क्योंकि उनका हर करम उच्च दर्जे का होता है, जो एक मिसाल व प्रेरणा साबित होता है। उस ताकत को दुनिया के सामने प्रकट करना भी उसी इलाही ताकत के वश में होता है, जो उसका भेदी है। जैसे कोई जौहरी ही हीरे-लाल के बारे हमें बता सकता है, उसी प्रकार उच्च हस्ती का मालिक ही उस ताकत के बारे हमें बता सकता है जिसे वो स्वयं जानता हो।

क्योंकि वो स्वयं भी उसी ईलाही ताकत का अथाह सागर होता है। शहनशाह मस्ताना जी स्वयं ईलाही ताकत व रब्बी मौज के मालिक थे। अपने नूरानी स्वरूप को परमपिता जी के प्रकट स्वरूप में देख चुके थे। बस, अपना यह स्वरूप दुनिया को दिखाना बाकी था। शहनशाह जी ने अपने इस नूरानी स्वरूप को दुनिया के सामने प्रकट करने का दिन 28 फरवरी को चुना और सिर्फ प्रकट ही नहीं किया बल्कि ‘हरबंस’ से ‘सतनाम’ रूपी इलाही ताकत को पूरे शानो-शौकत के साथ ठोक-बजाकर ज़ाहिर कर दिया।

आपसे कोई काम लेना है:

पूजनीय बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी महाराज ने दिनांक 14 मार्च 1954 में घूकांवाली दरबार में सत्संग फरमाया। सत्संग के बाद उसी सत्संग वाले थड़े पर खड़े होकर पूजनीय बेपरवाह जी ने आप जी को बुलाकर फरमाया कि ‘हरबंस सिंह जी, आज आपको भी नाम लेने का हुक्म हुआ है। आप अंदर जाकर हमारे मूढे के पास बैठो, हम भी अभी आते हैं।’ बेपरवाही वचनों के अनुसार आप जी ने अंदर जाकर देखा, जहां और भी कई नामाभिलाषी जीव बैठे हुए थे। मूढे के पास खाली जगह नहीं थी, तो आप जी उन नाम लेने वालों में पीछे ही बैठ गए। पूजनीय बेपरवाह जी जब अंदर कमरे में आए तो आप जी को बुलाकर अपने मूढे के पास बिठाया और वचन फरमाए, ‘आपको इसलिए पास बिठाकर नाम देते हैं कि आपसे कोई काम लेना है। आपको जिंदाराम का लीडर बनाएंगे, जो दुनिया को नाम जपाएगा।’ इस सम्बंध में पूजनीय मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां अपने एक भजन के द्वारा फरमाते हैं

शाह मस्ताना जी पैड़ बताई जी, इत्थों लंघी मौज ईलाही जी,
पर किसे दे समझ न आई जी, दंग रह गई सब लुकाई जी,
कर सकेआ न कोई इतबार जीओ।
‘शाह मस्ताना जी’ आवाज लगाई जी,
पास मूढे के बैठो भाई जी।
आज नाम की दात बताएंगे,
रूहानियत का लीडर बनाएंगे।
घूकियांवाली होय जाहिर जीओ।

इस प्रकार पूजनीय बेपरवाह जी ने आप जी को घूकांवाली में 14 मार्च 1954 को अपने खुद के पास बिठाकर नाम-शब्द की अनमोल दात प्रदान की। पूजनीय बेपरवाह जी ने दुनिया को एक बार फिर स्पष्ट ईशारा करके बता दिया कि आप जी स्वयं ही रब्बी स्वरूप हैं।

जिन्दाराम का लीडर:

राजस्थान के गाँव किकरांवाली में शहनशाह मस्ताना जी महाराज सत्संग फरमा रहे थे। इस सत्संग पर पूजनीय परमपिता जी भी अपने साथी सरदार मक्खन सिंह (ओढ निभा गए जीएसएम सेवादार) के साथ गए हुए थे। क्योंकि परमपिता जी को बेशक नाम (गुरुमंत्र) बेपरवाह जी ने काफी समय के बाद दिया, मगर परमपिता जी लगभग हर सत्संग पर जाया करते थे, सफर चाहे कितना भी क्यों न हो और साधन भी कोई हो न हो। गाँव श्री जलालआणा साहिब से गांव किकरांवाली, जिला हनुमानगढ़ (राज.) काफी दूर है और उस समय ऊंट व बैल-गाड़ियों से या फिर पैदल ही चलकर लोग आया-जाया करते थे। परमपिता जी को देखकर बेपरवाह जी बहुत खुश हुए।

सर्दी का मौसम था और शाह मस्ताना जी महाराज स्वैटर, जर्सियाँ, कंबल आदि गर्म कपड़े संगत में बांट रहे थे। फिर शहनशाह जी ने परमपिता जी को सम्मान स्वरूप कुछ बड़ा उपहार देने का ख्याल किया। इसलिए उन्होंने परमपिता जी के साथ आए सरदार मक्खन सिंह से पूछा कि, ‘भाई, जब सिक्खों में किसी को लीडर बनाते हैं तो उसे क्या भेंट करते हैं?’ मक्खन सिंह ने बताया कि ऐसे अवसर पर सम्मान स्वरूप अकसर पगड़ी व कृपाण भेंट की जाती है। शहनशाह मस्ताना जी ने विशेष तोर पर एक सुंदर-सी पगड़ी मंगवाई और परमपिता जी को सम्मान सहित भेंट करते हुए अपने मुखारबिंद से अलौकिक वचन फरमाए, ‘आपको रूहानियत का लीडर बनाएंगे, आप से सतगुर ने कोई काम लेना है।’ इस प्रकार शहनशाह जी ने आप जी को अपना वारिस चुन लिया और ये सब कुछ सबके सामने होते हुए भी कोई इस बेपरवाही रूहानी राज़ को समझ न सका कि परमपिता जी खुद वाली दो जहान हैं जो मानस के चोले में हमारे बीच मौजूद हैं।

बेपरवाही परीक्षाएं:

आप जी जब से अपने सतगुरु, मुर्शिद-ए-कामिल की पावन दृष्टि में आए, उसी दिन से ही पूजनीय बेपरवाह जी ने आप जी को अपना भावी उत्तराधिकारी मान लिया था और उसी दिन से आप जी की परीक्षा पर परीक्षा भी साथ-साथ लेते रहे। इन्हीं रूहानी परीक्षाओं के चलते पूजनीय बेपरवाह जी एक बार श्री जलालआणा साहिब में पधारे और लगातार 18 दिन वहाँ पर रहे। उस दौरान पूजनीय बेपरवाह जी ने कभी गदराना का डेरा गिरवा दिया और कभी चोरमार का डेरा।

जिन डेरों को गिरवाया गया, उनका सारा मलबा र्इंटें, लक्कड़-बाला, शतीर, गार्डर, जंगले, दरवाज़े आदि सब सामान श्री जलालआणा साहिब डेरे में लाने का हुक्म फरमाया। पूजनीय बेपरवाह जी ने आप जी की ड्यूटि गिराए गए गदराना डेरे का मलबा ढोने की लगाई थी। इधर अभी मलबा आदि सामान ढोया जा रहा था और आप जी अभी गदराना डेरे का सामान उठवा रहे थे, तो उधर पूजनीय सार्इं जी ने वहां पर इकट्ठा किया हुआ सामान घूकांवाली के सेवादारों के द्वारा वहां दरबार में भिजवा दिया और गदराना की साध-संगत की पुरजोर विनती पर वहां डेरा फिर से बनाने का आदेश दे दिया।

इधर आप जी जहां गदराना के गिराए गए डेरे का मलबा आदि ढोते व ढुआते रहे, तो उधर सार्इं जी ने आप जी द्वारा लाया गया सामान गदराना व घूकांवाली में सेवादारों द्वारा भिजवा दिया। ये स्वयं कुल मालिक पूजनीय बेपरवाह जी का अलौकिक खेल था, जोकि वास्तव में आप जी की परीक्षा थी। लेकिन आप जी तो पहले दिन से ही अपने-आपको पूर्ण तौर पर अपने पूजनीय मुर्शिद-ए-कामिल बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज को सौंप चुके थे। आप जी ने अपने सच्चे रहबर जी के हर हुक्म को सत्वचन कहकर माना। इस प्रकार पूजनीय बेपरवाह जी ने हर तरह से आप जी को अपने योग्य पाया और एक दिन साध-संगत सेवादारों में इसका खुलासा भी किया कि ‘असीं सरदार हरबंस सिंह जी का इम्तिहान लिया, पर उन्हें पता भी नहीं चलने दिया।’

एक और सख्त इम्तिहान:

फिर एक दिन आप जी को अपने हवेलीनुमा मकान को तोड़ने और उसका मलबा व घर का सारा सामान डेरा सच्चा सौदा दरबार में लाने का बेपरवाही हुक्म हुआ। दुनियादारी की नज़र से देखें तो उनके लिए यह एक बहुत कड़ी परीक्षा थी, लेकिन आप जी ने दुनिया की लोक-लाज़ की ज़रा भी परवाह नहीं की और शहनशाही आदेशानुसार अपने खुद-खुदा के वचनों पर हंसते हुए फूल चढ़ाए। अपने इतने बड़े हवेलीनुमा मकान को स्वयं अपने हाथों से तोड़-गिराया, हवेली की र्इंट-र्इंट कर दी और सारा सामान, सारा मलबा र्इंट, गार्डर, शतीर, लक्कड़-बाला आदि ट्रकों, ट्रैक्टर-ट्रालियों में भरकर अपने प्यारे खुदा के वचनानुसार डेरा सच्चा सौदा सरसा दरबार में लाकर रख दिया।

माहवारी सत्संग का दिन था। शनिवार आधी रात के करीब पूजनीय बेपरवाह जी तेरावास से बाहर आए और डेरा परिसर में पड़े सामान के इतने बड़े ढेर को देखकर कड़क आवाज में आदेश फरमाया कि ‘ये किसका सामान है, अभी बाहर निकालो। कोई हमसे पूछे कि गरीब मस्ताना लोगों के घर गिराता फिरता है तो हम क्या जवाब देंगे?’ और अपने सामान की खुद रखवाली करने का भी आदेश फरमाया।

सख्त सर्दी का मौसम और ऊपर से बूंदाबादी और चल रही थी। तेज शीत लहर ने वातावरण को और भी शीतमयी बना दिया था। इतनी जबरदस्त ठंड कि हाथ-पांव सुन्न हो रहे थे। आप जी इतनी जबरदस्त ठंड में अपने मुर्शिद-ए-कामिल के आदेशानुसार अपने सामान के पास बाहर खुले आसमान के नीचे बैठकर बेपरवाही अलौकिक आनंद को मानते रहे और पूरी रात इसी तरह गुजार दी। सुबह होते ही सारा सामान आई हुई संगत में बांटकर आप जी बेपरवाही पाक-पवित्र हजूरी में आकर बैठ गए। इस सम्बंध में आप जी अपने एक भजन-शब्द में भी फरमाते हैं-

प्रेम वाला रोग ‘शाह सतनाम जी’ वी देखेआ।
अपणी कुल्ली नूं हत्थीं, अग्ग ला के सेकेआ।
करता हवाले वैद (वैद्य) ‘शाह मस्तान’ ते,
रोग टुट्ट जांदे…।।

मुनादी सुनना गौर से, फिर बात करना किसी और से:

यह शब्द स्लोगन उस ऐतिहासिक घटना की शोभा बने जब 28 फरवरी 1960 को पूजनीय परमपिता जी को शहनशाह मस्ताना जी ने अपना जानशीन बना लिया और फिर एक शाही जलसा पूरे सरसा शहर में निकाला गया। शहनशाह मस्ताना जी ने डंके की चोट पर सबके सामने परमपिता जी को अपना वारिस बनाया और उसी खेल को पूरी दुनिया के सामने रखने के लिए यह शाही जुलूस सजाया गया। शाह मस्ताना जी ने सबको इस जुलूस में शामिल होने का हुक्म दिया और आदेश दिया कि सबने जोर-शोर से ये कहना है कि ‘मुनादी सुनो गौर से, फिर बात करना किसी और से’ ताकि लोग इस सच्चाई से वाकिफकार हो सकें।

परमपिता जी को शाही लिबास व नए-नए नोटों के लंबे-लंबे हारों से सजाकर एक खुली जीप में भेजा गया। लोगों को अपने उत्तराधिकारी के बारे बताने के लिए वक्त के अनुसार जैसा साधन बना, उसी प्रकार शहनशाह मस्ताना जी ने खूब ढिंढोरा बजवाया ताकि कोई शंका में न रहे। इसलिए किसी को भी डेरे में रुकने का आदेश नहीं था। मौजिज सेवादारों को सख्त हिदायत दी गई कि सभी ने हर बाजार, चौक-चौराहे पर जाना है और इस बात को जोर-शोर से कहना है कि हमने श्री जलालआणा साहिब के सरदार साहिब को अपना वारिस बना लिया है। सार्इं जी के आदेशानुसार पूरी साध-संगत इस जुलूस का हिस्सा बनी और सारा दिन पूरे शहर में घूम-घूम कर इस ईलाही हुक्म का डंका बजाया।

शाम को जुलूस की वापसी पर पूजनीय बेपरवाह जी ने स्वयं डेरे के बाहर मेन गेट पर आप जी का स्वागत किया। पूजनीय बेपरवाह जी ने मौजूद साध-संगत में ईलाही वचन फरमाया कि ‘आज से सरदार हरबंस सिंह को आत्मा से परमात्मा, सतनाम कुल मालिक, अपना रूप बना दिया है। इन्हें असीं अपना रूप बना लिया है। ये वो ही सतनाम हैं जिसके सहारे ये सब खंड-ब्रह्मंड खड़े हैं।’ उपरांत पूजनीय बेपरवाह जी ने जुलूस में शामिल हुई सारी साध-संगत को स्वयं अपने पवित्र कर-कमलों से प्रशाद प्रदान किया।

पूजनीय बेपरवाह जी आप जी को स्वयं अनामी गोल गुफा में लेकर गए। इस तेरावास में लगभग सारा सामान आप जी की हवेली का ही प्रयोग में लाया गया है। पूजनीय बेपरवाह जी ने फरमाया कि ‘ये तीन मंजिली गोल गुफा शाह सतनाम सिंह जी को इनकी जबरदस्त कुर्बानी के बदले ईनाम में दी है, वरना हर कोेई यहाँ रहने का हकदार नहीं है। जिस प्रकार मिस्त्री भाइयों ने इस बिल्डिंग (गुफा) की मजबूती के लिए तीन बंद लगाए हैं, इसी तरह हमने भी सतनाम सिंह पर एक-दो-तीन बंद लगा दिए हैं। ना ये हिल सकेंगे और न ही कोई इन्हें हिला सकेगा।’

गुरगद्दी बख्शिश:

इधर शहनशाही स्टेज को बहुत ही खूबसूरती से सजाया गया। पूजनीय बेपरवाह जी ने अपने सेवादारों को आप जी को तेरावास से बुलाकर लाने का हुक्म दिया। ईलाही हुक्म पाकर एक-दो सेवादार तेरावास की ओर दौड़े। पूजनीय बेपरवाह जी ने उन्हें रोकते हुए फरमाया, ‘नहीं भाई, ऐसे नहीं! दस सेवादार पंचायत के रूप में जाओ और सतनाम सिंह जी को पूर्ण सम्मान के साथ स्टेज पर लेकर आओ।’

पूजनीय बेपरवाह जी ने आप जी को बड़े प्यार व सत्कार से शाही स्टेज पर अपने साथ विराजमान करके साध-संगत में फरमाया, ‘असीं अपने प्यारे मुर्शिद दाता सावण शाह जी के हुक्म से सरदार सतनाम सिंह जी को आत्मा से परमात्मा कर दिया है। इन्हें अपना रूप बनाया है। ये वो ही सतनाम हैं जिसे दुनिया जपदी-जपदी मर गई। असीं इन्हें सच्चे दाता सावण शाह सार्इं के हुक्म से अर्शों से लाकर तुम्हारे सामने बिठा दिया है। जो इनके पीठ पीछे भी दर्शन कर लेगा, वो भी नर्कों में नहीं जाएगा। उसका उद्धार भी ये अपनी रहमत से करेंगे।’ इस प्रकार पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने आप जी को 28 फरवरी 1960 को गुरगद्दी सौंप कर डेरा सच्चा सौदा में बतौर दूसरे पातशाह विराजमान किया और डेरा सच्चा सौदा व अपने सभी अधिकार भी उसी दिन ही आप जी को सौंप दिए। पूजनीय बेपरवाह सार्इं जी स्वयं भी लगभग दो महीने तक साक्षात बॉडी रूप में साध-संगत में विराजमान रहे।

अब जो भी करेंगे, ये ही करेंगे:

शहनशाह मस्ताना जी ने लोगों को अपने हर तौर-तरीके से समझाया और पक्का किया कि सतनाम सिंह जी ही हमारा रूप हैं। इन पर हमसे बढ़कर विश्वास करना और हमारे से ज्यादा प्रेम करना। परमपिता जी को अपना जानशीन बनाकर शहनशाह जी अपने साथ स्टेज पर बिठाते और जब भी कोई कुछ अर्ज़ करता तो यही कह देते कि, ‘अब जो करना है, इन्होंने ही करना है। हमारा काम मुक्क गया। हम अब आजाद हैं जिसने जो लेना है इनसे ही लेना। ‘सतनाम जी’ के ही दर्शन करने हैं।’ सार्इं जी ने सेवादारों में भी कई बार फरमाया कि हमने ‘सतनाम’ तुम्हें दे दिया है।

उनके हुक्म में रहना! जो इनके हुक्म में रहेगा, मेवा खाएगा। जो नहीं मानेगा, वो नर्कों में जाएगा। इसरार ने हमें ऐसा सोहणा, सुंदर नौजवान दिया जो पूरे हिंदोस्तान में नहीं है। शहनशाह मस्ताना जी लगभग दो महीने तक परमपिता जी के साथ स्टेज पर विराजमान रहे और अपने अलौकिक खेल को यकीनी बनाया। अपना नूरी चोला बदलने से पहले 16 अप्रैल को शाह मस्ताना जी दिल्ली गए। वहाँ एक प्रेमी सूद साहिब के घर चरण टिकाए। वहीं एक अन्य श्रद्धालु रक्खा राम दर्शनों के लिए आया और शहनशाह जी से अर्ज़ करने लगा कि सार्इं जी, मेरे घर चरण टिकाओं और लंगर-भोजन ग्रहण करो जी। इस पर शहनशाह जी ने जवाब देते हुए फरमाया, ‘हम लंगर नहीं खाएंगे!

लंगर खिलाना है तो ‘सतनाम’ जी को ले जाओ। इन्हें ही खिलाओ। आगे से भी इन्हें ही खिलाना है।’ कुछ देर और बातचीत चली। वह प्रेमी इस वचन को जैसे अनदेखा करते हुए फिर अर्ज़ करने लगा कि सार्इं जी, आप जी मेरे घर आओ और लंगर ग्रहण करो। इस पर शहनशाह जी पूरे जोश से बोले, ‘वरी! जब तुम्हें ‘सतनाम’ दे दिया है और तुम्हारे साथ भेज रहे हैं फिर तेरे को और क्या चाहिए। ये ही लंगर खाएंगे। जो भी करना है आगे इन्होंने ही करना है। अब ये ही सब कुछ हैं।’

जब दुकान चलेगी तो देखना:

शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने डेरा सच्चा सौदा व साध-संगत के बारे बड़े स्पष्ट व खुले शब्दों में बताया। संगत को आगाह किया, कि शाह सतनाम जी हमारा ही स्वरूप हैं, और इनसे बढ़-चढ़ कर प्रेम करना है। इनके हुक्म को मानना और सेवा का मेवा खाना। डेरा सच्चा सौदा के बारे में भी आप जी ने बड़ा ठोक-बजा कर बताया, ताकि किसी के समझने में कोई कोर-कसर ना रह जाए। एक बार एक सेवादार के मन में शंका हुई कि पता नहीं डेरा सच्चा सौदा में भविष्य में क्या होगा? शहनशाह मस्ताना जी सत्संग पंडाल में घूम रहे थे। उसने सोचा मैं अपनी इस शंका के बारे बात कर लूं।

उसने अर्ज़ की कि सार्इं जी मन में एक ख्याल है, पर डर लगता है कि आप जी से कहूं या ना। शहनशाह जी ने उसका नाम लेते हुए कहा, खेमा, क्या बात है? जो कहना चाहते हो खुलकर कहो। वह कहने लगा कि सार्इं जी आपके बाद डेरा सच्चा सौदा में क्या होगा! शहनशाह जी बोले, खेमा, तेरी बात हमें समझ नहीं आई, फिर से कहो, क्या बात है। वह फिर से बोला कि सार्इं जी, मेरा मतलब है कि कहीं डेरा सच्चा सौदा में भी कोई पूजा का स्थान न बन जाए कि लोग आएं, माथा टेकें और मनोकामनाएं लेकर चले जाएं। इतना सुनते ही शहनशाह जी कड़क आवाज में बोले, ‘खेमा! तूं कितने वर्षों से हमारे साथ रह रहा है। तेरे पल्ले कख ना पड़ा। तूने हमें बंदा ही समझा है क्या।

फिर समझाया कि ये सच्चा सौदा ऐसे नहीं बना है, यह किसी बंदे ने नहीं बनाया। यह हमारे खुद-खुदा सावण शाह सार्इं निरंकार के हुक्म से खुद खुदा ने अपने हाथों से बनाया है। यह युगों-युगों तक अटल रहेगा। सावण शाह दाता ने हमें जो ताकत दी, उसको एक बाल जितना भी हमने खर्च नहीं किया। वो इलाही खजाना ज्यों का त्यों दबा पड़ा है। हमारे बाद सवाई ताकत चलेगी और सबको मस्त कर देगी। अभी तो सच्चा सौदा की दुकान खुली है। जब इसमें सामान डालेंगे। देखना! फिर राम-नाम की दुकान कैसे चलेगी। पूरी दुनिया में सच्चा सौदा का नाम गूंजेगा। कोने-कोने में राम नाम का डंका बजेगा।’ परमपिता जी के बारे वचन किए कि ये जिंदाराम के लीडर हैं और कुल मालिक हैं जो दुनिया को नाम जपाएंगे।

इसी प्रकार तीसरी बॉडी के बारे में भी वचन किए कि वो सवाई से सवाई ताकत वाली तूफान मेल ताकत होगी। वो इतनी बड़ी रूहानी ताकत होगी कि पूरी दुनिया में सच्चा सौदा रूहानियत का विशाल केंद्र होगा। आज उन्हीं वचनों सदका पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की पावन रहनुमाई में डेरा सच्चा सौदा रूहानियत व इन्सानियत के शिखरों को छू रहा है। पूरी दुनिया डेरा सच्चा सौदा के पावन आदर्शाें के प्रति नत-मस्तक है। रूहानियत का विख्यात केंद्र है डेरा सच्चा सौदा और समाज सुधार, मानव कल्याण की जो लहर पूज्य गुरु जी ने चला रखी है, दुनिया में मिसाल है। पूज्य गुरु जी के पावन सान्निध्य में लाखों लोग जब समाज भलाई कार्यों में उमड़ते हैं तो दुनिया दंग रह जाती है। ये सतगुरु मौला का रहमो-करम ही है कि साध-संगत में ऐसा जज्बा है जिससे किसी की जान बचाने में सेवादार अपनी जान की भी परवाह नहीं करते। सतगुरु के ऐसे रहमो-करम पर हर कोई सदके है, बलिहारे है।

डेरा सच्चा सौदा बुलंदियों पर:-

पूज्य मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पावन मार्ग-दर्शन में डेरा सच्चा सौदा आज रूहानियत तथा समाज व मानवता भलाई के कार्यों में पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। आप जी द्वारा दिखाए सच के मार्ग पर चलते हुए करोड़ों (7 करोड़ से ज्यादा) लोग नशे, भ्रष्टाचार, वेश्यावृति, हरामखोरी आदि बुराइयां त्यागकर राम-नाम, परमपिता परमात्मा की भक्ति से जुड़े हुए हैं। घर-घर में राम-नाम की चर्चा है, राम-नाम की गंगा बह रही है और वहीं दीन-दुखियों, जरूरतमंदों को मानवता के नाते साध-संगत के द्वारा सहारा मिल रहा है। आप जी द्वारा स्थापित शाह सतनाम जी ग्रीन एस वैल्फेयर कमेटी के सेवादार व साध-संगत पूरे विश्व में मानवता भलाई के कार्यों में दिन-रात लगे हुए हैं।

आप जी की पे्ररणा से डेरा सच्चा सौदा के ‘ट्रयू ब्लड पंप’ (रक्तदाता सेवादार) थैलेसीमिया पीड़ितों व घायलों आदि जरूरतमंदों एवं बीमारों के लिए खुद फरिश्ता बनकर अपना रक्तदान कर उनकी जान बचाने की सफल कोशिश करते हैं। सतगुरु की अख़ियों के तारे ये सेवादार पीड़ितों की मदद कर अपने आप को धन्य पा रहे हैं। कहीं घर से बिछुड़े मंदबुद्धियों का इलाज करवाकर उन्हें अपनों से मिलाया जा रहा है, कहीं जरूरतमंद परिवारों को पूरे के पूरे घर बना कर दिए जा रहे हैं।

डेरा सच्चा सौदा के ये सेवादार पूज्य गुरु जी की पाक-पवित्र शिक्षाओं पर चलते हुए आज अनाथ-बेसहारा बुजुर्गों व बच्चों (मातृ-पितृ सेवा) की तन-मन-धन से सेवा कर रहे हैं, उन्हें खाने-पीने का सामान देकर उनका सहारा सिद्ध हो रहे हैं। इस प्रकार पूज्य गुरु जी द्वारा चलाए जा रहे मानवता भलाई के 167 कार्य साध-संगत दिन-रात कर रही है। पूज्य गुरु जी द्वारा नशों के खिलाफ जो ‘डैप्थ कैंपेन’ मुहिम चलाई गई है, इसे अपनाकर आज देश-विदेश के लाखों नौजवान राम-नाम से जुड़कर नशे व बुराइयां छोड़कर अपने माता-पिता, परिवार व समाज का सहारा बन रहे हैं।

पूज्य गुरु जी की यह पवित्र मुहिम भी घर-घर तक, हर गांव-शहर में पहुंच रही है। देश का बुद्धिजीवी वर्ग इस मुहिम की मुक्तकंठ से सराहना कर रहा है। इस तरह पूज्य गुरु जी के पावन मार्ग-दर्शन में डेरा सच्चा सौदा दीन-दुखियों के लिए फरिश्ता साबित हो रहा है।

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