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63वां पवित्र गुरगद्दीनशीनी दिवस (महारहमो-करम दिवस) 28 फरवरी विशेष || MSG Maharamo Karam Day
28 फरवरी 1960 को इसी तरह डेरा सच्चा सौदा की पहली पातशाही पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को अपने वारिस के रूप में डेरा सच्चा सौदा में बतौर दूसरी पातशाही प्रकट करके दुनिया को उस महान ईश्वरीय ताकत के साथ रू-ब-रू करवाया। वो ही सतनाम जिसके सहारे सारे खण्ड-ब्रह्मण्ड खड़े हैं और सब वेद-पुराणों और संतों-महापुरुषों ने जिसका दिन-रात गुणगान किया है।
रुहानी बख्शिश का होना अध्यात्मिकतावाद का एक अनोखा व दुर्लभ वृतांत होता है। कोई ईश्वरीय ताकत ही इस पदवी को हासिल कर सकती है। बेशक वो आम लोगों के बीच रहकर उनकी तरह ही जीवन बसर करते हैं, लेकिन उस रूहानी ताकत का भेद समय आने पर ही खुलता है और भेद को खोलना उससे भी दुर्लभ व महत्वपूर्ण है, क्योंकि एक जलता दीपक ही दूसरे दीपक को जला सकता है। इसी तरह एक रूहानी ताकत को एक रूहानी ताकत ही प्रकट कर सकती है। यह काम कोई भी आम व्यक्ति नहीं कर सकता। एक कामिल फकीर ही अपने स्वरूप को पहचान सकता है और वो उसे दुनिया के सामने प्रकट करके पूरी दुनिया को अटल सच्चाई से रू-ब-रू करवा देता है।
28 फरवरी 1960 को इसी तरह डेरा सच्चा सौदा की पहली पातशाही पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को अपने वारिस के रूप में डेरा सच्चा सौदा में बतौर दूसरी पातशाही प्रकट करके दुनिया को उस महान ईश्वरीय ताकत के साथ रू-ब-रू करवाया। वो ही सतनाम जिसके सहारे सारे खण्ड-ब्रह्मण्ड खड़े हैं और सब वेद-पुराणों और संतों-महापुरुषों ने जिसका दिन-रात गुणगान किया है। पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने 14 मार्च 1954 को घूकांवाली में नाम-शब्द के रूप में अपने पवित्र वचनों से ये इलाही बख्शिश की कि ‘आप को इसलिए पास बिठा कर नाम देते हैं कि आप से कोई काम लेना है। आपको जिंदाराम का लीडर बनाएंगे जो दुनिया में नाम जपाएगा।’
ये रब्ब की पैड़ है:-
पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज एक बार गदराना गांव में सत्संग करने के लिए पधारे हुए थे। उस दिन जब आप बाहर घूमने निकले, कुछ सेवादार भी आप जी के साथ थे। अचानक एक पैड़ (पांव के निशान) को देखकर आप जी रुक गए। आप जी ने अपनी डंगोरी से उस पैड़ के चारों ओर घेरा बना कर सेवादारों से कहा, ‘आओ भई तुम्हें रब्ब की पैड़ दिखाएं।’ साथ वाले किसी सेवादार भाई ने कहा कि ये पांव के निशान तो श्री जलालआणा साहिब के जैलदार सरदार हरबंस सिंह जी के हैं। इस पर साईं शाह मस्ताना जी महाराज ने अपनी डंगोरी को जमीन पर ठोक कर कहा, ‘असीं किसी जैलदार को नहीं जानते। असीं तो सिर्फ ये जानते हैं कि ये रब्ब की ही पैड़ है, इत्थों रब्ब लंघेया है।’
आदर्श जीवन परिचय:-
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज गांव श्री जलालआणा साहिब जिला सरसा के रहने वाले थे। आप जी के पूज्य पिता जी का नाम जैलदार सरदार वरियाम सिंह जी और पूजनीय माता जी का नाम माता आस कौर जी था। पूजनीय पिता जी बहुत बड़े लैंडलॉर्ड, जमीन जायदाद के मालिक थे। घर में किसी भी दुनियावी वस्तु की कमी नहीं थी। कमी थी तो अपने खानदान के वारिस की। 18 वर्षाें से पूज्य माता-पिता जी को संतान प्राप्तिकी चिंता सताए हुए थी। एक बार पूज्य माता-पिता जी का मिलाप एक फकीर बाबा से हुआ। पूजनीय माता-पिता जी ने अपने नेक व पवित्र स्वभाव के अनुसार उस फकीर बाबा की खूब सेवा की। वो फकीर-बाबा परम पिता परमात्मा का एक सच्चा फकीर था। एक दिन उसने पूजनीय माता-पिता जी की सेवा से खुश होकर कहा कि ‘भाई भगतो! ईश्वर आपकी मनो कामना अवश्य पूरी करेंगे। आपके घर आप का वारिस जरूर आएगा। वो कुल दुनिया का वारिस कहलाएगा।’
इस प्रकार उस फकीर बाबा की दुआ व ईश्वर की कृपा से पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने 25 जनवरी 1919 को पूजनीय माता-पिता जी के यहां अवतार धारण किया। पूजनीय माता-पिता जी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। पूज्य पिता जी ने अपनी इस खुशी को पूरे गांव में मिठाइयां आदि बांट कर सांझा किया। इस शुभ मौके पर वह फकीर-बाबा पूज्य माता-पिता जी को बधाई देने लंबी यात्रा करके पहुंचा। फकीर बाबा ने पूज्य माता-पिता जी को बधाई देते हुए यह भी कहा कि ‘भाई भगतो! आपके घर आपकी संतान के रूप में खुद परमेश्वर का अवतार आया है। इसे कोई आम बच्चा न समझना। ये खुद ईश्वर स्वरूप है। ये आपके यहां चालीस वर्ष तक ही रहेंगे, उसके बाद सृष्टि-उद्धार, जीव-कल्याण के लिए जिस उद्देश्य के लिए ईश्वर ने इन्हें भेजा है, समय आने पर उन्हीं के पास चले जाएंगे।’ आप सिद्धूवंश से संबंध रखते थे। आप जी अपने पूज्य माता-पिता जी की इकलौती संतान थे। पूज्य माता-पिता जी ने आप जी के बचपन का नाम सरदार हरबंस सिंह जी रखा था, लेकिन पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के संपर्क में आने पर उन्होंने आप जी का नाम बदल कर सरदार सतनाम सिंह जी (पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) रख दिया।
साईं मस्ताना जी महाराज का मिलाप:-
बचपन से ही आप जी सच की तलाश में लगे हुए थे। आप जी ने अनेकों महात्माओं से मिलाप किया, उनके वचन सुने, उनके व्यवहार को परखा पर कहीं से भी तसल्ली नहीं हुई। आप जी ने डेरा सच्चा सौदा व पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के बारे भी बहुत कुछ सुन रखा था। आप जी ने डेरा सच्चा सौदा सरसा में पूजनीय साईं मस्ताना जी महाराज का सत्संग सुना। बस वो दिन कि वो दिन, असल सच को पाकर आपजी ने अपना तन-मन-धन पूज्य साईं जी के सुपुर्द कर दिया, आप जी पूर्ण रूप से पूज्य साईं जी के हो गए।
सख्त परीक्षा:-
पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने पहले दिन से ही आपजी को अपनी नूरी नजर में ले लिया था। और आप जी के लिए इम्तिहान भी कदम-कदम पर शुरू कर दिए। इन्हीं रूहानी परीक्षाओं में साईं मस्ताना जी महाराज 18 दिन तक लगातार श्री जलालआणा साहिब में रहे। उस दौरान आप जी ने गदराना, चोरमार डेरों को गिरवाया। पूज्य साईं जी ने आप जी की ड्यूटि गदराना डेरे का मलवा ढोने में लगा रखी थी। गिराए गए डेरों का मलवा श्री जलालआणा साहिब में मंगवा लिया था। इधर आप जी गदराना डेरे का मलबा ढोने में लगे हुए थे, उधर इकट्ठा किया मलबा घूकांवाली डेरे में सेवादारों के द्वारा भिजवा दिया और गदराना में डेरे को दोबारा बनाने की वहां के सेवादारों को आज्ञा प्रदान कर दी। यह एक रूहानी बेपरवाही अलौकिक खेल था और आप जी की परीक्षा थी। आप जी तो पहले दिन से ही अपना तन-मन-धन और सब कुछ अपने पीरो-मुर्शिद पर कुर्बान कर चुके थे। पूज्य बेपरवाह जी जो भी हुक्म आप जी को फरमाते, आपजी खुदा, प्यारे सतगुरु जी के हर हुक्म को सत्यवचन कह कर उन पर फूल चढ़ाते। पूज्य बेपरवाह जी ने हर तरह से आप जी को अपने योग्य पाया और एक दिन आखिर अपने इस अलौकिक खेल का रहस्य प्रकट करते हुए सेवादारों में बात की कि ‘असीं’ सरदार हरबंस सिंह जी (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) का इम्तिहान लिया और उन्हें पता भी नहीं चलने दिया।
कर दी ईंट से ईंट (मकान तोड़ना):-
फिर एक दिन जैसे ही पूज्य बेपरवाह जी का हवेली (मकान) को तोड़ने और सारा सामान डेरे में लाने का आदेश आप जी को मिला, आप जी ने तुरंत बेपरवाही हुक्म की पालना की और पल भी नहीं लगाया। अपने हाथों से हवेली की ईंट से ईंट कर दी और हुक्मानुसार घर का सारा सामान और हवेली की एक-एक ईंट, छोटे कंकर तक ट्रकों, ट्रैक्टर-ट्रालियों में भरकर डेरा सच्चा सौदा सरसा में लाकर रख दिया। मासिक सत्संग का दिन था। सामान का बहुत बड़ा ढेर डेरे में लगा था। पूज्य बेपरवाह जी ने शनिवार रात को सारा सामान तुरंत बाहर निकालने का हुक्म फरमाया कि कोई हमसे पूछे कि यह किसका सामान है तो हम क्या जवाब देंगे और साथ में अपने सामान की खुद रखवाली करने का हुक्म भी फरमाया। सर्दी की ठण्डी रात, शीतलहर और ऊपर से बूंदाबांदी, इतनी कड़ाके की ठंड कि हाथ-पैर सुन्न हो रहे थे। आप जी ने अपने दाता रहबर के इस इलाही हुक्म को हंसते हुए हृदय से लगाया और पूरी रात खुले आसमान के नीचे अपने सामान के पास बैठकर गुजारी, क्योंकि यही बेपरवाही हुक्म था। अगले दिन बेपरवाही रजा के अनुसार एक-एक चीज अपने हाथों से साध-संगत में बांट दी और हर तरफ से निश्चिंत होकर पावन हजूरी में बैठकर अपार खुशियां हासिल की। आप जी अपने द्वारा रचित एक भजन में भी फरमाते हैं:-
प्रेम वाला रोग ‘शाह सतनाम जी’ वी देखेआ।
अपणी कुल्ली नू हत्थीं अग्ग लाके सेकेआ,
करता हवाले वैद्य ‘शाह मस्तान’ दे, रोग टुट्ट जांदे
दारू दर्शनां दी खाण ते। प्रेम देआं रोगियां दा….
सतनाम-कुल मालिक बनाया:-
पूजनीय परम पिता जी की इस महान कुर्बानी पर खुश होते हुए साईं मस्ताना जी ने फरमाया कि ‘हरबंस सिंह जी(पूजनीय परम पिता जी) आपको आपकी कुर्बानी के बदले ‘सच’ देते हैं, आपको सतनाम करते हं।’ पूज्य साईं जी ने साध-संगत में फरमाया, ‘असीं सरदार सतनाम सिंह जी को सतगुरु-कुल मालिक बना दिया है। मालिक ने सरदार सतनाम सिंह जी से बहुत काम लेना है।’
अनामी गुफा:-
डेरा सच्चा सौदा दरबार में एक तीन मंजिली अनामी गुफा विशेष तौर पर आप जी के लिए बनाई गई। पूज्य साईं जी ने स्वयं अपने हाथो से आप जी को अनामी गुफा में विराजमान किया। पूज्य बेपरवाह जी ने फरमाया कि ‘ये अनामी गुफा सरदार सतनाम सिंह जी को इनकी कुर्बानी के बदले ईनाम में दी जाती है। ये तीन मंजिली गोल गुफा स्वयं पूज्य बेपरवाह जी ने अपने दिशा-निर्देशन में तैयार करवाई। इस अनामी गुफा में ईंट, लकड़-बाला, शतीर, गार्डर आदि सामान पूज्य परम पिता जी की हवेली का प्रयोग किया गया है। आप जी ने फरमाया कि ये अनामी गोल गुफा सतगुरु के हुक्म से ही बनाई गई है जो सरदार सतनाम सिंह जी को ईनाम में दी गई है। यहां हर कोई रहने का अधिकारी नहीं है।’
उपरान्त पाठी से ग्रन्थ से श्री कृष्ण जी का गोपियों के प्रति संवाद पढ़वा कर संगत में सुनाया जो कि इस प्रकार है:- श्री कृष्ण जी महाराज गोपियों को संबोधित करते हुए फरमाते हैं कि तुमने लोहे के समान अटूट बंधनों को तोड़कर मुझसे अति दर्जे की प्रीत की है और इसके बदले मैंने तुम्हें जो राम-नाम का रस प्रदान किया है वह बहुत तुच्छ (कम) है, इसलिए मैं क्षमा का प्रार्थी हूं। मुझे क्षमा करना। इस पर पूजनीय बेपरवाह जी ने फरमाया, ‘उन गोपियों की तरह सरदार सतनाम सिंह जी ने भी अपने सतगुरु के नाम पर इतनी बड़ी जो कुर्बानी दी है, इसके बदले में असीं जो इन्हें राम नाम का रस दिया है, वह बहुत ही कम है, इसलिए असीं भी माफी के अधिकारी हैं।’
न हिल सके न कोई हिला सके:-
अनामी गुफा (तेरावास) में आप जी को विराजमान करके पूजनीय बेपरवाह साईं जी ने एक बार फिर से फरमाया, ‘सरदार सतनाम सिंह जी का नाम पहले सरदार हरबंस सिंह जी था। ये ईश्वरीय शक्ति गांव श्री जलालआणा साहिब जिला सरसा के रहने वाले हैं। राम-नाम को हासिल करने के लिए (अपने सतगुरु के लिए) इन्होंने अपना मकान तोड़ा और दुनिया की बदनामी सही, इसलिए ये गुफा (तेरावास) इन्हें ईनाम में मिली है। हर कोई यहां रहने का अधिकारी नहीं है। जिसे ऊपर से सतगुरु का हुक्म होता है, यहां पर उसी को ही जगह मिलती है। पूजनीय बेपरवाह जी ने फरमाया, जिस तरह मिस्त्रियों ने इस बिल्डिंग (गुफा) की मजबूती के लिए इसमें तीन बंद लगाए हैं, असीं भी सरदार सतनाम सिंह जी को (हाथ का ईशारा करते हुए) एक-दो-तीन बंद लगा दिए हैं। बारिश आए, झख्खड आए, आंधी आए, न ये हिल सकेंगे और न ही इन्हें कोई हिला सकेगा।’
गुरगद्दी रस्म:-
28 फरवरी 1960 को पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के हुक्मानुसार दरबार में शाही स्टेज को विशेष तौर पर सजाया गया। उपरान्त पूजनीय बेपरवाह जी ने सेवादारों को संबोधित करते हुए हुक्म फरमाया, ‘भाई, सरदार सतनाम सिंह जी को गुफा से लेकर आओ।’ बेपरवाह जी का आदेश पाकर दो-एक सेवादार गुफा की तरफ दौड़े। पूजनीय सार्इं जी ने उन्हें रोकते हुए फरमाया, कि ‘भाई, ऐसे नहीं! दस सेवादार भाई (पंचायत रूप में ) इकट्ठे होकर जाओ और सरदार सतनाम सिंह जी को पूरे आदर -सम्मान के साथ स्टेज पर लेकर आओ।’ पूजनीय बेपरवाह जी ने अपना भरपूर स्नेह प्रदान करते हुए आपजी को अपने साथ स्टेज पर विराजमान किया। उपरान्त पूज्य बेपरवाह जी ने आपजी को नोटों के हार पहनाए और साध-संगत को जो इस रूहानी शाही नजारे को पूरी उत्सुकता से देख रही थी, वचन फरमाए, ‘दुनिया सतनाम, सतनाम जपदी मर गई, किसी ने देखा है भाई?’ संगत में एकदम सन्नाटा छा गया, कोई कुछ नहीं बोल सका, बेपरवाह साईं जी ने जोश भरी आवाज में फरमाया, ‘भाई! जिस सतनाम को दुनिया जपदी-जपदी मर गई, पर सतनाम नहीं मिला। वो सतनाम (पूज्य साईं जी ने आपजी की तरफ पावन ईशारा करते हुए) ये है। ये वोही सतनाम है जिसके सहारे ये सारे खण्ड-ब्रह्मण्ड खड़े हैं। इन्हें सावण शाह साईं जी के हुक्म से मालिक से मंजूर करवा कर लाए हैं और तुम्हारे सामने बिठा दिया है। पूज्य बेपरवाह जी ने फरमाया, ‘इनके (पूज्य परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के) भाईचारे का कोई आदमी व इनका कोई रिश्तेदार-संबंधी आकर पूछे, गरीब मस्ताने ने तेरा घर-बार तुड़वाया है, तेरे को क्या मिला? तो भाई, ये उन्हें ये गोल गुफा दिखा सकते हैं। यह गोल गुफा (तेरावास) तो भीतों (पक्की र्इंटों) से बनी है, परन्तु जो असली गोल गुफा (तेरावास), (अपनी दोनों आंखों के बीच ईशारा करते हुए) इनको दी है, उसके एक बाल के बराबर ये तीन लोक भी नहीं हैं।’
इस प्रकार पूजनीय बेपरवाह जी ने गुरगद्दी की पवित्र रस्म को स्वयं गुरु-मर्यादा के अनुसार पूर्ण करवाया। पूज्य साईं जी ने डेरा सच्चा सौदा व साध-संगत के सभी अधिकार और अपनी समस्त जिम्मेदारियां भी उसी दिन से ही आप जी को सौंप दी और अपना ईलाही, खुदाई, स्वरूप भी आप जी को बख्श कर अपना स्वरूप, खुद-खुदा बना दिया। गुरगद्दी की यह पवित्र कार्यवाई, खुद ईलाही मौज की ये रजा दुनिया के सामने एक अद्वितीय उदाहरण है।
वर्णनीय है कि पूजनीय बेपरवाह साईं मस्ताना जी महाराज उस दिन के बाद आप जी को भेंट की गई इस अनामी गुफा (तेरावास) में कभी नहीं गए, बल्कि दरबार में एक अलग कमरे को अपना निवास बनाया। पूरे सरसा शहर में एक बहुत ही प्रभावशाली जुलूस आप जी को एक सुंदर सजी जीप में विराजमान करके निकाला गया जो कि ये सब पूजनीय बेपरवाह साईं जी के पावन हुक्मानुसार था, वह भी गुरगद्दी रस्म का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा था ताकि शहर के बच्चे-बच्चे को और पूरी दुनिया को पता चले कि पूजनीय बेपरवाह साईं मस्ताना जी महाराज ने श्री जलालआणा साहिब के जैलदार सरदार हरबंस सिंह जी (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज) को अपना स्वरूप बख्श कर डेरा सच्चा सौदा गुरगद्दी पर बतौर दूसरे पातशाह विराजमान कर दिया है।
दुनिया में बज रहा राम-नाम का डंका:-
पूजनीय परम पिता जी 28 फरवरी 1960 को डेरा सच्चा सौदा में बतौर दूसरे पातशाह विराजमान हुए। आप जी ने 30-31 वर्ष तक अपने पूजनीय मुर्शिद बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज द्वारा स्थापित किए डेरा सच्चा सौदा की फुलवाड़ी को अपने रहमो-करम, रात-दिन के सख्त परिश्रम से ऐसा महकाया कि जिसकी महक को आज पूरे विश्व में महसूस किया जाता है। आप जी ने सन् 1963 से अगस्त 1990 तक पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों के सैकड़ों गांवों, शहरों, कस्बों में हजारों सत्संग लगाए और 11 लाख से भी ज्यादा लोगों को राम-नाम के द्वारा नशों आदि बुराइयों और पाखण्डों व कुरीतियों से दूर कर भक्तिमय खुशहाल जीवन जीने का सरल रास्ता बताया। आप जी के रहमो-करम से दुनिया के आज करोड़ों डेरा श्रद्धालु आप जी की पावन शिक्षाओं को धारण कर बेफिक्री का जीवन जी रहे हैं।
अपार रहमो-करम जो हो न सके ब्यां:-
साध-संगत के प्रति आप जी के अनगिनत परोपकार हैं। आप जी के अपार रहमो-करम का वर्णन नहीं हो सकता। अपनी प्यारी साध-संगत के लिए आप जी ने पवित्र वचन किए, ‘साध-संगत तो हमें दिलो-जान से, अपनी संतान से भी अधिक प्यारी है। हम दिन-रात साध-संगत के भले की, साध-संगत की चढ़दी कला की परम पिता परमात्मा से दुआ करते हैं।’
आप जी ने 23 सितम्बर 1990 को पूजनीय मौजूदा गुरु संत डॉ गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को स्वयं अपने पवित्र कर-कमलों से डेरा सच्चा सौदा की गुरगद्दी पर बतौर तीसरे पातशाह विराजमान करके साध-संगत पर अपना अपार रहमो-करम फरमाया है। बल्कि आप जी स्वयं भी करीब 15 महीने साथ रहे। आप जी के पवित्र वचन कि ‘ये (पूज्य मौजूदा गुरु जी) हमारा अपना ही स्वरूप हैं। अब हम इस नौजवान बॉडी में स्वयं काम करेंगे।’
पूजनीय मौजूदा हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की पवित्र प्रेरणा के अनुसार डेरा सच्चा सौदा रूहानियत तथा समाज व मानवता भलाई कार्याें में पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। आप जी द्वारा दर्शाए सच के मार्ग पर चलते हुए आज करोड़ों लोग नशे, भ्रष्टाचार, वेश्यावृति, हरामखोरी आदि बुराइयों को त्याग कर राम-नाम, परम पिता परमात्मा की भक्ति से जुड़े हैं। घर-घर में प्रेम-प्यार की गंगा बह रही है। घर-घर में राम-नाम की चर्चा है और वहीं दीन-दुखियों को साध-संगत के द्वारा सहारा मिल रहा है। मानवता, इन्सानियत के तौर पर साध-संगत आज हर दुखिये के लिए आशा की उम्मीद की किरण बन चुकी है। पूज्य गुरु जी की प्रेरणानुसार डेरा सच्चा सौदा के ट्रयू ब्लड पंप (सेवादार रक्तदाता) जरूरतमंदों, बीमारों, थैलेसीमिया पीड़ितों के लिए कोविड-19, लॉक डाउन के दौरान भी खुद हस्पतालों व मरीजों के पास जाकर अपना रक्तदान करते रहे हैं और आज भी तन-मन से पीड़ितों की सेवा में लगे हुए हैं। कहीं जरूरतमंदों व बेसहारों का इलाज करवाया जा रहा है, तो कहीं जरूरतमंद-परिवारों को पूरे-पूरे घर (मकान) बना कर दिए जा रहे हैं।
डेरा सच्चा सौदा आज अनाथ बच्चों, बेसहारा बुजुर्गाें (मातृ-पितृ सेवा) की तन-मन-धन से सेवा कर रहे हैं। उन्हें खाने-पीने का सामान देकर उनका सहारा सिद्ध हो रहे हैं। शिशु संभाल भी पूज्य गुरु जी द्वारा चलाए 147 मानवता भलाई के कार्याें में एक है, इसके तहत गर्भवती महिलाओं व पेट में पल रहे तथा छोटे बच्चों को कुपोषण से बचाने का कार्य भी डेरा सच्चा सौदा बाखूबी निभा रहा है। पूज्य गुरु जी की डेप्थ मुहिम को भारत सहित पूरी दुनिया ने स्वीकार किया है। नशे के दैंत को भगाने के लिए जगह-जगह ग्राम पंचायतें सर्व सम्मती से प्रस्ताव पास कर रही हैं। पूज्य गुरु जी का मानवता के प्रति यह बहुत भारी उपकार है। पूज्य गुरु जी का भजन ‘जागो दुनिया दे लोको’ सुनकर बहुत नौजवान नशा छोड़ रहे हैं।
28 फरवरी का दिन पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज का ये पाक-पवित्र गुरगद्दी-नशीनी दिवस है। पूजनीय परम पिता जी ने डेरा सच्चा सौदा में गद्दीनशीन होकर साध-संगत पर अपना अपार रहमो-करम फरमाया। पूजनीय परम पिता जी के परोपकारों की गणना नहीं हो सकती। पूजनीय मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की पवित्र प्रेरणानुसार यह पाक-पवित्र दिन डेरा सच्चा सौदा में ‘महा रहमो-करम दिवस’ के रूप में साध-संगत हर साल भण्डारे के रूप में धूम-धाम से मनाती है और इसदिन डेरा सच्चा सौदा द्वारा साध-संगत के सहयोग से बढ़-चढ़ कर मानवता भलाई के कार्य किए जाते हैं। पवित्र महा रहमो-करम दिवस की साध-संगत को बहुत-बहुत बधाई हो जी।