murmuring inside is not good for health - sachi shiksha hindimurmuring inside is not good for health - sachi shiksha hindi

सेहत के लिए ठीक नहीं है भीतर ही भीतर कुढ़ते रहना

कुढ़न से व्यक्ति को कितनी क्षति पहुंचती है, उससे कौन अनजान है। कुढ़ने से ब्लडप्रेशर, अल्सर, हार्ट प्रॉब्लम जैसी बीमारियां बहुधा हो सकती हैं। जब तक शांति न हो, न व्यक्तिगत स्तर पर और न ही सामाजिक स्तर पर कामयाबी हासिल की जा सकती है। ’सर्वेशाम शांतिर्भवतु:‘ का जाप भी निरर्थक साबित होगा।

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कारण:-

कटु आलोचनाओं का किस तरह जवाब दिया जाए? चुप्पी मार के या ईंट का जवाब पत्थर से देकर या कटु उत्तर सही वक्त के लिए मुल्तवी कर या कायरता से दब कर। आप अपने बॉस या ससुरालियों को ‘भाड़ में जाओ‘ नहीं कह सकते चाहे वे आपको कितना ही गुस्सा क्यों न दिलायें। मनोविश्लेषकों का मानना है कि अगर गुस्से को आउटलेट (निकास) नहीं मिलता तो मनोशारीरिक बीमारियां घेर लेती हैं।

नहले पर दहला मारना आना आपकी हाजिÞरजवाबी कहलाती है लेकिन यहां बात कुछ और है। सामने वाले का कटु रिमार्क अनावश्यक तोहमत, ताना या ऐसा ही कुछ कहना आपको नीचा दिखाने का मकसद कभी-कभी आपको उकसाकर लड़ने के लिये प्रेरित करना भी हो सकता है। यहां पंगा लेना व्यर्थ होगा मगर ऐसे में आप अपने दिल की बात के लिये किसी अपने अंतरंग को चुनें जिस पर आपको पूर्ण विश्वास हो।

बदलाव स्वीकारने में असमर्थ:-

एक बढ़िया सुख-सुविधापूर्ण आरामदायक जीवन किसे नहीं चाहिए। रोजÞमर्रा की भागदौड़ वाली जिन्दगी में भी हम एक आरामक्षेत्र (कंफर्ट जोन) बनाने की कोशिश करते हैं। बूढ़े रिटायर्ड लोगों को अपने इस जोन से बेहद लगाव होता है। मनोविश्लेषक विनोद भसीन कहते हैं कि कई बार ऐसे लोग बदलाव से डिप्रेशन में चले जाते हैं और डिसओरिएंट, डिसोसिएट होकर प्राण ही त्याग देते हैं।

कई बीमारियां बहुत परहेज मांगती हैं। मधुमेह के लिए मीठा जहर तुल्य है। ब्लडप्रेशर में नमक कम और दिल के मरीजों के लिये ज्यादा भारी शारीरिक कार्य मना है। अपने जमाने की नंबर वन नृत्यांगना सितारा देवी दिल की मरीज होने के कारण घुंघरु नहीं बांध सकती थी। कुमार गंधर्व जैसे आला दर्जे के शास्त्रीय संगीत के पंडित को बीमारी के कारण गाने पर रोक लगाने को कहा गया। जिन लोगों का जीवन ही कला का दूसरा नाम है, उन पर पाबंदियां उनकी खुशियों का हनन तो है ही। जिनकी इच्छाशक्ति मजबूत होती है, जिजीविषा बहुत दमदार होती है वे खुश रहने के और रास्ते भी ढूंढ ही लेते हैं। स्वास्थ्य और खुशियां एक दूसरे की पूरक होती हैं।

स्वीकारना सीखें:-

हमारी कितनी ही मुश्किलें दिल के दर्द, कुढ़न, चिंता व अप्रसन्नता दूर हो सकती हैं अगर हम कुछ हानिरहित बातें स्वीकारना सीख लें। पतिदेव की गीला तौलिया बिस्तर पर डालने की आदत आपको दुखी करती है। रोज आप इसी बात को लेकर बड़बड़ करती हैं, कुढ़ती हैं और पतिदेव हैं कि पूरी ढिठाई पर उतरे हैं। घर आराम के लिये होता है। ’जरा ईजीगोइंग हो के रहना सीखो। जीवन सुखी हो जायेगा।’ वे पत्नी को लेक्चर पिलाते। आखिर हार कर पत्नी ने उसे स्वीकार ही नहीं किया बल्कि स्वयं भी वही करने लगी। ‘अच्छी या बुरी, जिन्दगी अपनी है।

क्यों न इसे अपने ढंग से जिया जाए‘। कॉलेज में लेक्चरार अनुराधा कहती हैं। हार को भी स्वीकारें क्योंकि हार में ही जीत छुपी है। रोम एक ही दिन में ंनहीं बना। आशा भोंसले ने एक बार लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड लेते हुए बताया था कि कैसे एक बार उन्हें और किशोरकुमार को आधी रात तक रिकॉर्डिंग के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ी थी और अंत में प्रतीक्षा खत्म होने पर उन्हें यह कह कर अस्वीकार कर दिया गया कि उनकी गायकी अच्छी नहीं है। वास्तव में हार जीत एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, यह मानकर चलना चाहिए।

माफ न करने पर:-

आप एक नेगेटिव फीलिंग के गुलाम बने रहेंगे। खुश रहने के लिए जरूरी है कि दिलो दिमाग दुश्मनी जैसे नकारात्मक भाव से स्वतंत्र रहे। माना कि यह एक बेहद स्ट्रांग फीलिंग है और इससे छुटकारा पाना इतना आसान नहीं लेकिन क्या यह आपकी खुशी से बढ़कर है।

यह सोचें कैसे आपका कोई अजीज पलक झपकते संसार से विदा हो गया? सब कुछ यहीं रह जाता है-सुख, दु:ख, दुश्मनी, प्यार। जो बात फिर आपको सुख दे, क्यों न उसी को ध्यान में रखें।

ईर्ष्या जलाती है:-

ईर्ष्यालु प्रकृति के लोग स्वयं अपना नुकसान ज्यादा करते हैं। सुंदर से सुंदर चेहरा ईर्ष्या से कुढ़ने पर अपनी खूबसूरती बिगाड़ लेता है। हर बात पर जलते रहने से यह आदत सी बन जाती है कि किसी का भी कुछ अच्छा सहन नहीं होता। हां, झूठी तसल्ली देने में ये माहिर होते हैं। जीने का ढंग सीखना है तो दृष्टि व्यापक करनी होगी।

संकुचित सोच आपका दायरा संकुचित कर देती है। इसमें ईर्ष्या से बच निकलने की राहें कम हो जाती हैं। ईर्ष्या एक मानवीय प्रकृति है। इस दुष्प्रवृति से भी हमें अन्य बुराइयों की तरह संघर्ष करना पड़ता है वर्ना भीतर का लावा बनकर ये कभी भी आपके व्यक्तित्व को तहस नहस कर देगी। -उषा जैन ’शीरीं‘

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