प्रकृति की सुरम्य गोद में बसा-दार्जिलिंग
प्रकृति की सुखमय गोद में बसे दार्जिलिंग की सैर का आनंद ही कुछ और है। यहां की स्वच्छ वायु, हरी-भरी बल खाती लताएं, चाय बागानों की मखमली हरियाली, सदाबहार वनस्पतियां, लंबे घने बांसों के पेड़, ऊंचे-ऊंचे बर्फीले पहाड़, घुमावदार काली पक्की सड़कें पर्यटकों का मन मोह लेते हैं।
फिर खिलौना रेलगाड़ी (टॉय ट्रेन) भी तो यहीं है। लगभग 2135 मीटर की ऊंचाई पर बसा दार्जिलिंग अंग्रेजी हुकूमत के समय 20-25 परिवार वाला एक छोटा सा गांव था। इस छोटे से गांव को रमणीक पर्यटन स्थल के रूप में विश्व के मानचित्र पर रखने का संपूर्ण श्रेय तात्कालिक अंग्रेजों को जाता है। देश के अन्य हिल स्टेशनों की अपेक्षा दार्जिलिंग में पर्यटन संस्कृति की गहरी छाप हैं किन्तु विगत कुछ वर्षों के गोरखा आंदोलन ने इसे छिन्न-भिन्न कर दिया है लेकिन अब वैसी कोई बात नहीं। हां, विदेशी पर्यटकों के लिए अब भी दार्जिलिंग प्रतिबंधित क्षेत्र है। उन्हें दार्जिलिंग पर्यटन के लिए सरकार से आर.ए.पी. (निषिद्ध क्षेत्र अनुमति) लेनी पड़ती है।
दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल राज्य का एक प्रसिद्ध टूरिस्ट शहर है) रेल व सड़क मार्ग द्वारा देश के प्राय: सभी प्रमुख नगरों से जुड़ा हुआ है। पटना, कलकत्ता, सिलीगुड़ी आदि स्थानों से नियमित बस सेवा उपलब्ध हैं। रेल मार्ग से आने वाले पर्यटकों को सिलीगुड़ी या न्यू जलपाईगुड़ी उतरना पड़ता है। ये दोनों रेलवे स्टेशन, लखनऊ, वाराणसी, पटना, बरौनी, कटिहार, कोलकाता, गुवाहाटी आदि रेल-मार्गों से जुडेÞ हैं। सिलीगुड़ी या न्यू जलपाईगुड़ी में गाड़ी बदलनी पड़ती है।
यहां से टॉय ट्रेन चलती हैं जो लगभग आठ घंटे का पहाड़ी मार्ग तय करती हुई दार्जिलिंग पहुंचाती है। हालांकि मोटर से आधे समय में ही दार्जिलिंग पहुंचा जा सकता है। बागडोगरा यहां का निकटतम हवाई अड्डा है। हवाई मार्ग से जाने वाले पर्यटकों को दिल्ली, कोलकाता, पटना, गुवाहाटी, इम्फाल आदि नगरों से इंडियन एयरलाइन्स की नियमित उड़ानों से बागडोगरा उतरना पड़ेगा। यहां से भी दार्जिलिंग के लिए टैक्सी मिलती है जो तीन घंटे में लगभग 90 कि.मी. की दूरी तय करके दार्जिलिंग पहुंचती है।
दार्जिलिंग में खाने-पीने की अच्छी व्यवस्था है। ठहरने के लिए हर प्रकार के होटल, रेस्ट हाऊस वगैरह हैं। विभिन्न आय-वर्ग वाले पर्यटक अपनी आय के अनुरूप होटल व रेस्ट हाउस का चयन कर सकते हैं। यहां के प्रमुख होटलों में ‘विंडमेयर’ थोड़ा महंगा है। मध्यम वर्गीय पर्यटकों के लिए टिंबर लाज, बेल व्यू आदि उपयुक्त हो सकता है।
दार्जिलिंग की सैर के लिए मार्च से जून तथा सितम्बर से नवम्बर सर्वांधिक उपयुक्त समय है। जुलाई, अगस्त में काफी वर्षा होती है तथा दिसम्बर से फरवरी तक सर्दी का भीषण प्रकोप रहता है। यहां पर हर समय गर्म कपड़ों की जरूरत बनी रहती है। साथ ही छाता व बरसाती कोट का होना आवश्यक हो जाता है सुखद पर्यटन के लिए। कब बादल छा जायेंगे, कब वर्षा हो जायेगी, कुछ कहा नहीं जा सकता दार्जिलिंग की पहाड़ियों पर।
यहां का टाइगर हिल सूर्योदय के स्वर्णिम दृश्यों के लिए विख्यात है। इसके शुभावलोकन के बगैर दार्जिलिंग की यात्र का कोई महत्त्व नहीं । यह नगर से 11 कि.मी. दूर सागर तल से 2255 मीटर की ऊंचाई पर है। यहां तीन बजे रात से ही लोगों का तांता-सा लग जाता है। पूरब के क्षितिज पर सुनहली रश्मियां बिखेरते अरूण का बाल-रूप मन को मुग्ध कर देता है। तत्क्षण व्यक्ति उसकी लालिमा में खो जाता है। सूर्योंदय का स्वर्णिम दृश्य मानव-मन के लिए अविस्मरणीय हो जाता है। टाइगर हिल के वाच टावर से कंचनजंघा का विहंगम दृश्य देखते ही बनता है।
दार्जिलिंग के जवाहर पर्वत से संसार की तीसरी सबसे बड़ी चोटी कंचन जंघा का दृश्य तो और भी विहंगम लगता है। सुबह-सुबह जब सूरज की किरणें कंचनजंघा की चमचमाती बर्फ पर पड़ती हैं तब उसका रंग एकदम स्वर्णिम दिखाई पड़ता है। सूरज की गर्मी से जब बर्फ पिघलने लगती है तो ऐसा लगता है कि मोती की लड़ियां निकल रही हैं और एक एक कर उन लड़ियों को हथेलियों में भर लें।
जवाहर पर्वत, हिमालय पर्वतारोहण प्रशिक्षण संस्थान का कार्यालय व केंद्र है। इसकी स्थापना 1954 में हुई थी। यहां पर्वतारोहण के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है। शहर से आठ कि.मी. की दूरी पर लेबांग रेसकोर्स है। यहां जिमखाना क्लब द्वारा घुड़दौड़ों का आयोजन होता है। यद्यपि यह छोटा है पर इसे विश्व का सर्वोच्च रेस कोर्स होने का गौरव प्राप्त है।
नगर से आठ कि. मी. आगे रंगीत नदी बहती है। यह एक बढ़िया पिकनिक स्थल है। नदी पर ट्राली लगी है। इसमें छ: व्यक्ति एक साथ बैठ कर नदी पार कर सकते हैं। नदी पार करने के क्र म में ट्राली से नीचे झांकने का रोमाचंक अनुभव अनूठा है।
पदमजा नायडू वनस्पतिक उद्यान में हिमालयन हिरणों, साइबेरियन चीता, हाथियों, गैंडा आदि को प्राकृतिक वातावरण में स्वच्छन्द विचरण करते देखा जा सकता है। नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में क्षेत्रीय मछलियों, रंग-बिरंगी तितली, पक्षी, रेंगने वाले सरीसृप एवं अन्य स्तनधानी जीवों को संरक्षण दिया जाता है। इसकी स्थापना 1915 में की गई थी।
कोई भी पर्यटक यहां का हैपी वैली टी एस्टेट देखना अवश्य पसंद करेगा। यह नगर से मात्र 3 कि. मी. की दूरी पर है। यहां मशीनों द्वारा चाय बनाने की सारी प्रक्रि या अच्छी तरह देखी जा सकती है। नगर से दस कि.मी. की दूरी पर तिब्बती हस्त शिल्प केंद्र है। इसकी स्थापना 1959 में हुई थी। यहां तिब्बती स्त्री-पुरूष हाथों से दैनिक आवश्यकता की विभिन्न वस्तुएं तैयार करते हैं। ऊनी कालीन, शाल, जैकेट, लेदर कोट, फर्नीचर इत्यादि पर हस्तशिल्प का कलात्मक सौंदर्य देखते ही बनता है।
-दिलीप कुमार ‘नीलम’