Cultivation of coarse grain Ragi in Dera Sacha Sauda

डेरा सच्चा सौदा में मोटे अनाज ‘रागी’ की खेती

मानवता भलाई केन्द्र सर्वधर्म संगम डेरा सच्चा सौदा हमेशा से ही किसानों के सुनहरे भविष्य को लेकर आशावान रहा है। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की पावन प्रेरणाओं पर चलते हुए डेरा सच्चा सौदा द्वारा समय-समय पर कृषि-मेलों के साथ-साथ किसानों को फायदेमंद खेती के गुर सिखाए जाते हैं। इस कड़ी में डेरा सच्चा सौदा इन दिनों किसानों को मोटा अनाज के प्रति प्रेरित कर रहा है। इसके तहत डेरा सच्चा सौदा द्वारा खुद रागी की खेती की गई, जिसमें पहले प्रयास में एक एकड़ में बोई गई इस फसल से 10 क्विंंटल का उत्पादन हुआ है। बता दें कि यह फसल खाद्यान में मोटे अनाज के तौर पर जानी जाती है और यह पौष्टिकता से भरपूर होती है।

डेरा सच्चा सौदा में कृषि कार्याें की देखरेख की जिम्मेवारी संभालने वाले जीएसएम सेवादार भाई चरणजीत इन्सां ने बताया कि काफी लंबे समय से देश में रागी की खेती की जा रही है। लेकिन धीरे-धीरे किसान इससे दूर हो गए। किसानों को फिर से रागी की खेती की तरफ मोड़ने के लिए पूज्य गुरु जी के आह्वान पर डेरा सच्चा सौदा में रागी की खेती की गई है। डेरा सच्चा सौदा व मानवता भलाई केन्द्र शाह मस्तान, शाह सतनाम जी धाम की मोटर नंबर 8 पर करीब एक एकड़ में रागी की फसल बोई गई है। हालांकि अगस्त 2023 में रागी की फसल बोई गई थी, लेकिन बरसात होने के कारण यह खराब हो गई। बाद में सितंबर महीने में इसे दोबारा से बोया गया। जो अब पूरी तरह से पककर तैयार हो गई है। चरणजीत इन्सां ने बताया कि यहां प्रति एकड़ 10 क्विंटल का उत्पादन हुआ है।

आर्गेनिक खेती है, सेहत के लिए भी गुणकारी है

चरणजीत इन्सां ने बताया कि डेरा सच्चा सौदा में की गई यह खेती पूर्णतया आॅर्गेनिक है। इसमें किसी भी प्रकार की रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं किया गया और ना ही किसी कीटनाशक स्प्रे का प्रयोग हुआ है। उन्होंने बताया कि रागी की खेती साल में दो बार की जा सकती है। इन्सां ने बताया कि भारत सरकार भी मिल्ट यानी मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा दे रही है। किसानों को भी चाहिए कि वे परंपरागत खेती में बदलाव करते हुए रागी जैसी फसलें भी बोएं। इससे खर्चा कम आएगा, आमदनी भी बढ़ेगी और साथ में इन्सान भी तंदुरुस्त रहेगा। क्योंकि इस फसल के लिए किसी भी प्रकार की खाद, स्प्रे की जरूरत नहीं है। रागी अनाज का सेवन करने से बीमारियों से छुटकारा भी मिलता है।

कम पानी में तैयार होती है फसल

रागी की फसल बहुत ही कम पानी में तैयार हो जाती है। धान, गेहूं व अन्य फसलों में सिंचाई अधिक करनी पड़ती है। दो से तीन पानी में रागी की फसल पककर तैयार हो जाती है। रागी की फसल बोने का तरीका बिलकुल आसान है। जिस प्रकार बाजरा, ज्वार की खेती होती है, वैसे ही रागी की खेती की जाती है। रागी की फसल सूखा और खरपतवार के प्रति काफी सहनशील होती है। रागी में सामान्य जलभराव को बर्दाश्त करने की क्षमता भी होती है। इसका यही गुण इसे बारानी यानी वर्षा-निर्भर और सूखा आशंकित इलाकों के लिए बहुत उपयोगी बना देता है। उपजाऊ खेतों में इसे धान के साथ अन्य फसल की तरह भी उगा सकते हैं।

विदेशों में फिंगर बाजरा और लाल बाजरा के नाम से है इसकी पहचान

यह अनाज प्रोटीन और हाई पावर कैल्शियम से भरपूर होता है। रागी मुख्य रूप से अफ्रीका और एशिया महाद्वीप में उगाई जाती है। जिसको मंडुआ, अफ्रीकन रागी, फिंगर बाजरा और लाल बाजरा के नाम से भी जाना जाता है। इसके पौधे पूरे साल पैदावार देने में सक्षम होते हैं। इसके पौधे सामान्य तौर पर एक से डेढ़ मीटर तक की ऊंचाई के पाए जाते हैं। इसके दानों में खनिज पदार्थों की मात्रा बाकी अनाजी-फसलों से ज्यादा पाई जाती है। इसके दानों का इस्तेमाल खाने में कई तरह से किया जाता है। इसके दानों को पीसकर आटा बनाया जाता है, जिससे मोटी डबल रोटी, साधारण रोटी और डोसा बनाया जाता है। इसके दानों को उबालकर भी खाया जा सकता है।

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