Our Pride Tricolor हमारी शान तिरंगा Har ghar tiranga
सदियों से भारत अंग्रेजों की दासता में था, उनके अत्याचार से जन-जन त्रस्त था। खुली फिज़ा में सांस लेने को बेचैन भारत में आजादी का पहला बिगुल 1857 में बजा किन्तु कुछ कारणों से हम गुलामी के बंधन से मुक्त नहीं हो सके। वास्तव में आजादी का संघर्ष तब अधिक हो गया जब श्री बाल गंगाधर तिलक ने कहा कि ‘स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।’
Our Pride Tricolor इसी चाहत में ना जाने कितने वीरों ने अपनी जानें कुर्बान कर दी, ताकि भविष्य में यहाँ पैदा होने वाला हर बच्चा आजाद भारत के आजाद आकाश के नीचे अपनी आँखें खोल सके! न जाने कैसे लोग थे वो जो अपने स्वार्थों को छोड़ चल पड़े स्वतंत्रता की उस डगर पर, जिसका अंत तो पता था, परंतु रास्ते की दूरी का अंदाजा लगाना मुश्किल था। परंतु उन वीरों ने इस बात की परवाह न करते हुए सिर पर कफन बाँध निकलना पसंद किया और इस तरह कारवाँ बढ़ता रहा और मंजिल एक दिन 15 अगस्त 1947 के रूप में आ गई और भारत देश आजाद हुआ। har ghar tiranga

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Our Pride Tricolor आइये, जानें तिरंगे का यह क्रम चक्र:-
- सन् 1916: सबसे पहले 1916 में लोकमान्य श्री बाल गंगाधर तिलक द्वारा झंडा तैयार किया गया, जिसे डॉ. एनी बेसेन्ट की कांग्रेस सेशन ने कोलकाता में फहराया। इस झंडे में चार रंग-सफेद, हरा, नीला और लाल इस्तेमाल किए गए थे।
- सन् 1917: सन् 1917 में एक नया झंडा तैयार किया गया, जिसे बाल गंगाधर तिलक जी ने भी स्वीकार किया। उस समय तिलक जी ‘ऌङ्मेी फ४’ी छीँ४ी’ के अध्यक्ष हुआ करते थे। इस झंडे में चार नीले और पांच लाल रंग की खादी पट्टियां इस्तेमाल की गई थी। इसमें एक अर्धचांद भी दर्शाया गया था। यह झंडा ‘सप्तऋषि’ के सात सितारे दर्शाता था।
- सन् 1921: सन् 1921 में महात्मा गांधी जी ने एक नया झंडा तैयार किया, जिसमें कि सफेद, हरा और लाल रंग थे। सबसे ऊपर सफेद रंग सच्चाई का प्रतीक, बीच में हरा रंग धरती का व भारतीय खेती-बाड़ी का प्रतीक माना गया। सबसे नीचे लाल रंग ताकत, जज्बे, लगन और आजादी के लिए किए गए संघर्ष का प्रतीक था। यह झंडा तकरीबन आयरलैंड के झंडे से प्रेरित था।
- सन् 1931: इसके बाद पिंगली वेनकव्या ने 1931 में एक नया तिरंगा बनाया। इसमें भी तीन रंग सफेद, हरा व संतरी रंग इस्तेमाल किए गए। संतरी रंग की पट्टी सबसे ऊपर रखी गई, फिर सफेद पट्टी रखी गई और फिर सबसे नीचे हरा रंग। संतरी रंग एकता, त्याग, ताकत का प्रतीक है। सफेद रंग सच्चाई का व हरा रंग धरती और भारतीय खेती-बाड़ी को दर्शाता है। सफेद पट्टी के बीच में एक नीले रंग का चरखा दर्शाया गया था।
- सन् 1947: आखिरकार 1947 में यह तिरंगा झंडा स्वीकार कर लिया गया। सन् 1931 में तैयार हुए इसे राष्टÑीय ध्वज के तौर पर स्वीकार तो कर लिया गया, पर चरखे की जगह एक चक्र दर्शाया गया। सफेद पट्टी में दिखाए गए गूढ़े नीले रंग के चक्र को ‘अशोक चक्र’ कहा जाता है, जिसमें कि 24 डंडियां हैं और यह एक बहुत ही खास बात का प्रतीक माना गया कि ‘चलते रहने का नाम ही जिंदगी है और रुकने का नाम मृत्यु।’
22 जुलाई 1947 को इंडियन कंस्टीट्यूंट-
एसेम्बली द्वारा यह राष्टÑीय ध्वज स्वीकार किया गया और इसके प्रयोग व प्रदर्शन के लिए कुछ नियम व कानून निश्चित किए गए। इसका मान-सम्मान करना हर भारतीय का कर्त्तव्य है।
ऐसे हुई आजादी की रूप रेखा तैयार Our Pride Tricolor
- भारत में छिड़े आन्दोलन और चहुं तरफ मची हाहाकार से ब्रिटिश शासन की जड़ें हिल गर्इं। उन्होंने 1946 में भारत को आजाद करने का मन बना लिया। इसके लिए ब्रिटेन से तीन सदस्यीय कैबिनेट मिशन 1 मई 1946 को भारत पहुंचा।
- 1946 के अंत में बंगाल में दंगे हुए और अनियंत्रित स्थिति के कारण फरवरी 1947 को लार्ड वावेल की जगह विस्कांउट लुईस माउंटबेटन को वायसराय बनाया गया।
- 3 जून 1947 को भारत विभाजन की रूप-रेखा तैयार हो गई। पहली बार वायसराय ने भारत और पाकिस्तान, दो अलग-अलग देशों का एजेंडा घोषित किया।
- ब्रिटेन संसद में 4 जुलाई 1947 को बिल पेश हुआ, जो 15 जुलाई को हाउस आॅफ कांमेस द्वारा पास हुआ तथा 16 जुलाई को हाउस आॅफ लाडर््स तथा 18 जुलाई को ब्रिटेन के राजा की इस पर मोहर लग गई।
- अंग्रेज अधिकारी साईरिल रेडक्लिफ की देखरेख में 12 अगस्त 1947 को सीमाएं निर्धारित कर दी गई।
- 14 अगस्त 1947 को अर्द्धरात्रि के समय विधिवत रूप से भारत और पाकिस्तान दो स्वतंत्र देश बन गए।
- हमारे देश भारत को आजाद हुए आज 77 वर्ष हो गए हैं।
मेरा नाम सिपाही है
सरहद पे गोली खाके
जब टूट जाए मेरी सांस
मुझे भेज देना यारो मेरी बूढ़ी मां के पास
बड़ा शौक था उसे मैं घोड़ी चढूं
धमाधम ढोल बजे
तो ऐसा ही करना
मुझे घोड़ी पे लेके जाना
ढोलकें बजाना
पूरे गांव में घुमाना
और मां से कहना
बेटा दूल्हा बनकर आया है
बहू नहीं ला पाया तो क्या
बारात तो लाया है
मेरे बाबूजी, पुराने फौजी, बड़े मनमौजी
कहते थे- बच्चे, तिरंगा लहरा के आना
या तिरंगे में लिपट के आना
कह देना उनसे, उनकी बात रख ली
दुश्मन को पीठ नहीं दिखाई
आखिरी गोली भी सीने पे खाई
मेरा छोटा भाई, उससे कहना
क्या मेरा वादा निभाएगा
मैं सरहदों से बोल कर आया था
कि एक बेटा जाएगा तो दूसरा आएगा
मेरी छोटी बहना, उससे कहना
मुझे याद था उसका तोहफा
लेकिन अजीब इत्तेफाक हो गया
भाई राखी से पहले ही राख हो गया
वो कुएं के सामने वाला घर
दो घड़ी के लिए वहां जरूर ठहरना
वहीं तो रहती है वो
जिसके साथ जीने-मरने का
वादा किया था
उससे कहना
भारत मां का साथ निभाने में
उसका साथ छूट गया
एक वादे के लिए दूसरा वादा टूट गया
बस एक आखिरी गुजारिश
आखिरी ख़्वाहिश
मेरी मौत का मातम न करना
मैने खुद ये शहादत चाही है
मैं जीता हूं मरने के लिए
मेरा नाम सिपाही है।
-मनोज मुंतशिर































































