Keep love in relationships - Sachi Shiksha

हर रिश्ता प्यार और विश्वास पर टिकता है भले ही रिश्ता पति-पत्नी का हो, मां बेटी, मां बेटे, पिता पुत्र, भाई-भाई, भाई बहन, बहन-बहन, ननद-भाभी या दोस्ती का। हर रिश्ते की इमारत प्यार पर टिकी होती है पर कभी-कभी ऐसी स्थिति आ जाती है जब रिश्तों में कोई छोटी सी गलतफहमी प्यारे से रिश्ते में दूरियां बढ़ा देती है। तब इंसान आपसी प्यार और विश्वास को भूल जाता है। ऐसे में अगर हम कुछ तरीकों को आजमा कर उस रिश्ते को बचा सकें तो बेहतर होगा और समस्याएं समय के साथ खुद सुलझ जाएंगी।

समझें रिश्ते को

कोई भी रिश्ता क्यों न हो, अगर हम उस रिश्ते की गरिमा को बना कर रखेंगे तो रिश्ता महकता रहेगा। जहां हमने रिश्ते में नासमझदारी दिखाई तो रिश्ता दरकते देर नहीं लगती। विचारों में मेल न मिलने से मतभेद पैदा होते हैं। अगर हम शांत मन से बात को सुलझाएं तो शायद गलतफहमियां दूर हो जाएंगी और एक दूसरे के मन को समझने में मदद भी मिलेगी। इसलिए मतभेद होने पर साथ बैठकर बात कर हमारी समझ रिश्ते के प्रति और जागरूक हो सकती है।

सुनें दूसरों की भी

हर कोई चाहता है जो मैं बोलूं, सामने वाला उसे सुने और रिस्पांस भी दे। वह चाहता है उसकी हर बात को गंभीरतापूर्वक सुना जाए और इस पर एक्ट भी किया जाए। चाहे स्वयं बड़ी बातें बोले, अगर सामने वाला उसे टोक दे तो अपमानित महसूस होता है। अगर सामने वाला कुछ कहे तो उसे भी सुनने की आदत डालें। इससे आपके रिश्तों में सुधार अधिक होगा और आपस में अच्छी तरह समझने की आदत भी पड़ेगी, इसलिए दूसरों की सुनने की आदत डालें। सामने वाले को भी अवसर दें कि वह भी अपनी बात आप तक पहुंचा सके।

मुस्कुराते रहें

कहा जाता है एक प्यारी मुस्कान किसी भी काम को आसान बना देती है। मीठी मुस्कान और मीठी वाणी से दूसरों को अपना बनाने की कला सीखें। स्वयं को उदार बनाएं, दिल खोलकर लोगों की प्रशंसा करें। उनके टेलेंट और उपलब्धियों को सराहें। ऐसा करने से सारी कड़वाहट और खटास दूर हो जाएगी।

बहस को आपसी संबंधों में स्थान न दें

बहस संबंधों को सुधारने के स्थान पर बिगाड़ती है क्योंकि जब भी बहस शुरू होती है तो दोनों पक्ष अपनी बात सही साबित करने की पूरी कोशिश करते हैं। वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। ऐसे में माहौल और संबंध दोनों खराब होते हैं बल्कि कड़वी बातें जख्म छोड़ जाती हैं। इसलिए बहस के दौरान जब भी लगे गर्मागर्मी बढ़ रही है तो शांत हो जाएं या वहां से चले जाएं। गलती न होने पर भी माफी मांगने से संकोच न करें। बाद में शांति से अपनी बात रखें।

लेन देन में भी रखें ध्यान

लेन देन संबंधों में मधुरता तो लाता है पर कभी कभी कड़वाहट का कारण भी बन जाता है। लेन देन उतना ही रखें जितना आपके बस में हो। सामने वाले से भी उतना ही लें जितना आपकी लौटाने की क्षमता हो। जो आप दे रहे हैं, बदले में लेने की भावना न रखें। अगर कभी आपने किसी के काम के लिए समय निकाला है या कुछ एक्सट्रा मेहनत की है तो उससे बदले की अपेक्षा न रखें। अगर दूसरे ने यह सब आपके लिए किया है तो अहसानमंद रहें और समय पर आप भी मदद करें। अगर आप कुछ दूसरे के लिए अच्छा करते हैं तो सामने वाला स्वयं भी आपके साथ अच्छा बर्ताव करने लगेगा।

अपनी भावनाएं भी व्यक्त करें

मन में यह सोचना कि सामने वाला आपके मन की बात स्वयं पढ़ ले और आपके मन मुताबिक बात या काम करे तो यह सोच गलत है। आपको जो चाहिए, उसे बोलिये। अगर बोलेंगे नहीं और मन ही मन कुढ़ते रहेंगे तो ये भाव चेहरे पर आ जाएंगे और संबंध सुधरने के स्थान पर बिगडेंÞगे ही, इसलिए हिंट न दें, साफ साफ मुस्कुरा कर मांग लें। अगर अपनी भावना उजागर नहीं करेंगे और मन ही मन उसे दबा देंगे तो तनाव बढ़ेगा। खुलकर बात कर ही तनावमुक्त रह सकते हैं।

विश्वास बनाएं

विश्वास रिश्तों की नींव है। इस नींव को हिलने न दें। जहां अविश्वास हुआ वहां रिश्ते दरकने में देर नहीं लगेगी। लोगों को विश्वास में लीजिए। एक बार जब उन्हें आप पर भरोसा हो जाएगा तो रिश्ते खुद ब खुद सुधरने लगेंगे।

– नीतू गुप्ता

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