पूज्य परम पिता जी की रहमत

सत्संगियों के अनुभव

पूज्य परम पिता जी की रहमत ,गोद में बिठा ले गए निजधाम

स्व. श्री राम सिंह नम्बरदार पुत्र श्री मुधरा राम, गांव सिवाहा जिला व तहसील जींद, (हरियाणा) के निवासी थे। उन्होंने करीब सन् 89 में शाह सतनाम जी महाराज से मस्ताना जी धाम में नाम-दान लिया था।

वो कई-कई घंटे सुमिरन में बिताया करते थे। मन, वचन, कर्म से बड़े धार्मिक स्वभाव व व्यवहार तथा आचरण से बड़े विनम्र व सहनशील थे।

एक दिन (दिनांक 24-04-2001) को डाकखाने से सुभाष बनिए को बुलाने के लिए अपने बड़े बेटे जगदीश को भेजा। सुभाष बनिया जगदीश के आग्रह पर अपनी कलम-कागज व पैसे लेकर तुरंत उनके पास पहुंचे तथा जो भी जमा पूंजी उनके नाम दर्ज थी, उनको वापस लौटा दी।

दिनांक 25-04-2001 को ठोले के मुख्य 2 आदमियों को बुलाकर, जिस किसी का भी कुछ बकाया था, जमा था, सबका हिसाब चुकता कर दिया (चौपाल में रखे कड़ाहे, पतीले इत्यादि का)। परंतु लोगों ने कहा कि आप सबसे बड़े व समझदार है, अत: यह जिम्मेवारी सब आपको ही सौंपना चाहते हैं।

लेकिन उन्होंने जवाब दिया भाइयों, अब मेरी याद्दाश्त कमजोर हो गई है तथा उम्र का भी कुछ नहीं पता। इसलिए अच्छा होगा कि यह हिसाब-किताब किसी और को सौंप दिया जाए। तो उनके ही दूसरे बेटे राजपाल को चौपाल के सामान का लेन-देन व हिसाब-किताब का काम सौंप दिया गया। शायद अपने अंतिम समय का उन्हें पहले ही कुछ आभास हो गया था, तभी अक्सर अपने चारो ंबेटों को बुलाकर सही राह पर चलने, किसी से ना झगड़ने व सबसे प्रेम से रहने के लिए समझाया करते थे।

दिनांक 13-05-2001 की शाम को अपनी नियमित आदत अनुसार दलिया बनवाया व दूध के साथ खाया। रात करीब 11-11:30 बजे उन्होंने मुंह से शब्द कहे ‘मां री’। यानि अपनी मां को याद किया। तथा बड़े बेटे जगदीश से कहा कि बेटा, अगर कोई गाड़ी किराए पर लेकर घुमायी जाए तो सब रिश्तेदारियों में जाना-मिलना संभव नहीं होगा और किराया भी ज्यादा लग जाएगा। और कहने लगे कि मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मुश्किल से मेरे सात-आठ घंटे ही बचे हैं।

अगली सुबह 7-7:30 बजे जिले सिंह (छोटे भाई, चाचा के लड़के) उनसे मिलकर गाड़ी में जाने के लिए कहते हैं। इतना सुनकर वो भी कहने लगे कि भाई, मेरी भी गाड़ी का समय हो गया है, हम कौन सा बैठे रहेंगे। पर शायद जिले सिंह ने उनकी यह बात नहीं सुनी या समझी नहीं और वह निकल गए।

फिर अपने बड़े बेटे जगदीश से अपनी छड़ी डोगा मांगकर चारपाई से उठने का प्रयास किया, मगर उठ नहीं पाए। तो जगदीश ने उन्हें कंधे का सहारा देकर उठाया तथा छोटे बेटे कृष्ण के घर लेकर गए, ताकि घूम सकें। घूमने के बाद अपने हाथ साबुन से धोए। तथा बेटे जगदीश को अपनी धोती बांधने से मना किया, लपेटने के लिए कहा। कहने लगे कि अब खोलनी तो है ही। फिर चौपाल में चलने के लिए कहा। रजाई चारपाई के सिरहाने लगाकर उनको सहारा देकर लेटाया।

फिर बेटे जगदीश ने पूछा कि पिता जी, क्या कुछ दिखाई दे रहा है तो जवाब दिया तू तो मूर्ख हो रहा है। मेरी चौखट पर तो शाह सतनाम जी महाराज अपना रथ लिए खड़े है, जिसकी चमक बिल्कुल सोने जैसी है। तब अचानक जगदीश को दूसरे बेटे राजपाल को बुलाने के लिए कहा। बुलाने पर राजपाल दौड़कर चौपाल में आए। कहने लगे कि मेरी चारपाई अब घर ले चलो। घर पहुंचते ही तुरंत नीचे उतारने के लिए कहने लगे।

तब बेटे जगदीश से कहा कि बेटा, अपने गोड़े (घुटने) मेरे सिर के नीचे लगा ले। फिर अपने छोटे बेटे कृष्ण के बारे में पूछा तो जगदीश ने बताया कि वो तो अभी जींद गया हुआ है। इतने में जिले सिंह की पत्नी परमेश्वरी वहां आ गई तथा उन्हें देखकर कहने लगी कि इन्हें तो कुछ भी नहीं हुआ है। चलो इन्हें चारपाई पर लेटाओ। रास्ते का काम है, नहीं तो लोग देखकर मजाक करेंगे। तब राम सिंह जी उन्हें देख हल्के से मुस्कुराए।

फिर अपने तीसरे बेटे ओम प्रकाश की ओर एक डेढ़ मिनट तक एकटक देखते रहे। फिर वैसे ही राजपाल व जगदीश की ओर देखा तथा अपने हाथ से हल्का सा इशारा किया और बस इतना करते ही अपनी दोनों आंखें हमेशा के लिए बंद कर दी। आठ-सवा आठ बजे होंगे कि वो अपने मालिक की गोद में समा गए। उस दिन तारीख 14 मई यानि 14-05-2001 थी।

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