छुट्टियों में माता-पिता की जिम्मेदारी

गर्मी की छुट्टियां आ गई हैं। छुट्टियों का मतलब मस्ती से है। अर्थात् बच्चों के लिए ढेर सारी मस्ती लेकर आती हैं ये छुट्टियां। लेकिन बच्चों के लिए आजकल छुट्टियों की वो मस्ती वाली बात नहीं रही जो पहले कभी हुआ करती थी। आज उनकी यह मस्ती यांत्रिक होकर रह गई है। क्योंकि मोबाइल क्रांति ने बच्चों की मस्ती को छीन लिया है। उनको इससे ही फुर्सत नहीं है। लेकिन इसमें सिर्फ उनका ही कसूर नहीं है, इसमेंं मां-बाप भी बराबर के कसूरवार हैं।

मीडिया मेंं इस बारे कई बार रिपोर्ट प्रकाशित हो चुकी है, जिसमें चेतावनी भरे लहजे में बच्चों को इन डिवाइस्ज से दूर या इनका कम प्रयोग करने के बारे कहा जाता है। लेकिन अभी तक इस प्रचलन में कोई कमी नहीं आंकी गई। दिनों-दिन इसका प्रयोग बढ़ता जा रहा है। इसका असर बच्चों की सेहत पर पड़ रहा है। इससे जहां बच्चे सेहत से कमजोर होते जा रहे हैं, वहीं व्यवहारिक ज्ञान से भी वो पिछड़ते जा रहे हैं। उनमें सामाजिक बोध गौण होता जा रहा है।

देखने में आता है कि अब उनमें परिवार के साथ मिलजुल कर रहने की वो भावना नहीं रही जिसका किसी जमाने में विशेष महत्व हुआ करता था। चलो गर्मी की इन छुट्टियों को ही ले, पहले बच्चे कितनी मस्ती मनाते। नाना-नानी, दादा-दादी के घर जाने की एक अलग ही खुशी हुआ करती। छुट्टियों का नाम सुनते ही अपने बड़ों के साथ मस्ती मनाने के सपने सज जाते। उनके साथ हंसते-खेलते,कहानियां सुनते। खेत- खलिहानों में जाते। पेड़ों की छांव का आनन्द लेते। प्रकति को नजदीक से निहारते । कितनी भी लू चले अथवा कितनी भी धूप होती, टोलियां बना कर खेलते। क्या मजाल कोई बीमार हो जाता या किसी को गर्मी आदि की परवाह होती। मगर आज ये सब गायब हो गया है।

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वही बचपन है, वही कोमल मन है। लेकिन नहीं है तो बालकपन की वो फाका मस्ती नही है। घुम्मकड़ी के वो अंदाज नहीं हैं। वो मेल-मिलाप नहीं है। लेकिन इसके लिए दोषी बच्चे नहीं, उनके बड़े हैं। क्योंकि बच्चे तो वही सीखते हैं, जो उन्हें दिखता है या सिखाया जाता है और यही आजकल हो रहा है। बड़ों के पास अपने बच्चों के लिए टाईम ही कहांं है? उन्हे काम-धंधे से ही निजात नहीं है। बच्चे क्या कर रहे हैं और क्या नहीं, उनको क्या सिखाना है क्या नहीं, इस सबकी फुर्सत ही कहां है? दरअसल, छुट्टियों में बच्चों के साथ-साथ माता-पिता की भी कुछ जिम्मेदारी बनती है। स्कूलों में तो बच्चे सीखते ही हैं, लेकिन छुट्टियों का यदि माता-पिता बच्चों को कुछ नया व बेहतर सीखाने का ठान लें, तो ये सोने पे सुहागा वाली बात हो जाती है।

तो आइये जानते हैं इन छुट्टियों में माता-पिता अपनी जिम्मेदारी से बच्चों को क्या-क्या व कैसे सिखा सकते हैं:-

  • अपने बच्चों के साथ कम से कम दो बार खाना जरूर खाएं। उन्हें किसानों के महत्व और उनके कठिन परिश्रम के बारे में बताएं और उन्हें बताएं कि अपना खाना बेकार न करें।
  • खाने के बाद उन्हें अपनी प्लेट खुद धोने दें। इस तरह के कामों से बच्चे मेहनत की कीमत समझेंगे।
  • उन्हें अपने साथ खाना बनाने में मदद करने दें। उन्हें उनके लिए सब्जी या फिर सलाद बनाने दें।
  • तीन पड़ोसियों के घर जाएं। उनके बारे में जानें और घनिष्ठता बढ़ाएं।
  • दादा-दादी/ नाना-नानी के घर जाएं और उन्हें बच्चों के साथ घुलने-मिलने दें। उनका प्यार और भावनात्मक सहारा आपके बच्चों के लिए बहुत जरूरी है। उनके साथ तस्वीरें लें।
  • उन्हें अपने काम करने की जगह पर लेकर जाएं, जिससे वो समझ सकें कि आप परिवार के लिए कितनी मेहनत करते हैं।
  • किसी भी स्थानीय त्यौहार या स्थानीय बाजार को मिस न करें।
  • अपने बच्चों को किचन गार्डन बनाने के लिए बीज बोने के लिए प्रेरित करें। पेड़-पौधों के बारे में जानकारी होना भी आपके बच्चे के विकास के लिए जरूरी है।
  • अपने बचपन और अपने परिवार के इतिहास के बारे में बच्चों को बताएं।
  • अपने बच्चों को बाहर जाकर खेलने दें, चोट लगने दें, गंदा होने दें। कभी-कभार गिरना और दर्द सहना उनके लिए अच्छा है। सोफे के कुशन जैसी आरामदायक जिंदगी आपके बच्चों को आलसी बना देगी।
  • उन्हें कोई पालतू जावनर जैसे कुत्ता, बिल्ली, चिड़िया या मछली पालने दें।
  • उन्हें कुछ लोक गीत सुनाएं।
  • अपने बच्चों के लिए रंग-बिरंगी तस्वीरों वाली कहानी की कुछ किताबें लेकर आएं।
  • अपने बच्चों को टीवी, मोबाइल फोन, कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से दूर रखें। इन सबके लिए तो उनका पूरा जीवन पड़ा है।
  • उन्हें चॉकलेट्स, जैली, क्रीम केक, चिप्स, गैस वाले पेय पदार्थ और पफ्स जैसे बेकरी प्रोडक्ट्स और समोसे जैसे तले हुए खाद्य पदार्थ देने से बचें।
  • अपने बच्चों की आंखों में देखें और ईश्वर को धन्यवाद दें कि उन्होंने इतना अच्छा तोहफा आपको दिया। अब से आने वाले कुछ सालों में वो नई ऊंचाइयों पर होंगे।
  • माता-पिता होने के नाते ये जरूरी है कि आप अपना समय बच्चों को दें।
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यहां लिखा एक-एक शब्द ये बता रहा है कि जब हम छोटे थे, तो ये सब बातें हमारी जीवनशैली का हिस्सा थीं, जिसके साथ हम बड़े हुए हैं। लेकिन आज हमारे ही बच्चे इन सब चीजों से दूर हैं, जिसकी वजह हम खुद हैं।

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