सतगुरु जी ने पे्रमी की मनोकामना पूरी की

सतगुरु जी ने पे्रमी की मनोकामना पूरी की
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत | सत्संगियों के अनुभव
सचखण्ड वासी प्रेमी यशपाल इन्सां रिटायर्ड एसडीओ बिजली बोर्ड हरियाणा पुत्र श्री राम नारायण चुघ निवासी कल्याण नगर सरसा (हरियाणा) ने पूर्व में अपने निजी अनुभव कुछ इस तरह सांझे किए थे। सितम्बर 1977 की बात है। चण्डीगढ़ नजदीक के कुछ गाँवों के लोगों व डेरा प्रेमियों ने पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के चरणों में अर्ज की कि हमारे गाँवों में सत्संग करो।

परमपिता जी ने सत्संग के लिए जगह देखने के लिए सेवादारों की ड्यूटी लगा दी। उन सेवादारों में मैं भी था। उस समय मैं चण्डीगढ़ में कार्यरत था और चण्डीगढ़ में ही रहता था। हम गाँवों में जगह देखने के लिए जाया करते थे। उस समय के दौरान मेरी पत्नी सुषमा गर्भवती थी। मैं कहीं भी बाहर जाता तो मुझे सुषमा की चिन्ता लगी रहती। मैं सुषमा को अपने घर घरौंडा भेजना चाहता था ताकि सत्संग के समय मुझे कोई अड़चन न आए।

परन्तु दूसरी तरफ मेरे मन में यह ख्याल भी था कि पूजनीय परमपिता जी के चरणों में अर्ज करेंगे और अपने घर पवित्र चरण डलवाएँगे। अगर घर में बच्चे यानि परिवार नहीं होगा तो अर्ज कै से करेंगे? मैं दिन-रात यही सोचता रहता। पूजनीय परमपिता जी ने चण्डीगढ़ के पास गाँव मनीमाजरा का सत्संग मंजूर किया। सत्संग में दस दिन बाकी थे। उधर लेडी डाक्टर ने चैकअप कर बोल दिया था कि दस दिन तक बच्चा होगा।

मेरे दिमाग की चक्करी घूम गई कि अब क्या बनेगा। मैं बहुत परेशान हो गया। मैंने मन ही मन अपने सतगुरु परमपिता शाह सतनाम सिंंह जी महाराज के चरणों में अर्ज की कि हे पिता जी, आप जानीजान हो, आप को भी बताना पड़ेगा क्या? पिता जी जो करो सो करो आप की मर्जी। पिता जी मैं सत्संग में भी जाना चाहता हूँ तथा अपने घर आप जी के पवित्र चरण भी डलवाना चाहता हूँ। मैं क्या करूँ? घट-घट व पट-पट की जानने वाले सर्व सामर्थ सतगुरु परम पिता जी ने मेरी पुकार सुन ली। कुल मालिक की ऐसी दया-मेहर हुई कि उसी दिन निश्चित समय से दस दिन पहले हमारे घर बच्चे ने जन्म ले लिया।

जब दस दिन बाद परम पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज मनी माजरा में सत्संग करने के लिए पधारे तो हमने परमपिता जी के चरणों में हमारे घर चण्डीगढ़ में अपने पवित्र चरण टिकाने के लिए अर्ज की। शहनशाह जी ने हमारे घर आने की दया-मेहर की। जब परम पिता जी हमारे घर पधारे तो आते ही वचन फरमाया कि ‘हम सारे रास्ते सोचते आए कि काके (बच्चे) का क्या नाम रखें।’ फिर परमपिता जी ने काके का नाम बसविन्द्र रखकर बहुत खुशियाँ बख्शी।

कहाँ तो हम सोच रहे थे कि सुषमा अपने ससुराल घर घरौंडा चली जाए, परन्तु परमपिता जी ने कृपा करके ऐसे चोज किए कि सुषमा को भी चण्डीगढ़ रखा। सत्संग से पहले ही लड़के की दात बख्श दी।

इस करिश्में से स्पष्ट है जैसा कि एक कव्वाली में परमपिता जी के वचन भी हैं:-

जेहड़ी सोचां उही मन्न लैंदा,
मैं किवें भुल जावां पीर नूँ।

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