रोम-रोम पुलकित करती सावन की बारिश
सावन की मौज-मस्ती हर किसी को मतवाला बना देती है। सावन की ठंडी ब्यार तन-मन को शीतलता से भर जाती है। रोम-रोम में ताजगी का उफान उठने लगता है।
कुदरत नाच उठती है। पशु-पक्षी विहार करते हुए बड़े मौजी लगते हैं। बागों में फूल-कलियां अपने यौवन पर होते हैं और भंवरे अपनी गुंजार से सम्पूर्ण वातावरण को मधुर संगीत से भर देते हैं। कोयल अपनी कूक से कोने-कोने को हर्षा देती है और इधर-उधर उड़-उड़कर सबको अपनी मस्ती का अहसास कराती है। सावन की काली घटाओं और उमड़ते-घुमड़ते बादलों के बीच मोर भी नाच उठता है और अपनी पिहूं-पिहूं की तेज व मीठी आवाज से पूरे क्षेत्र को रमणीक बना देता है।
पत्ता-पत्ता सावन में जब रंगत (हरियाली) को पा जाता है, तो फिर कवि मन इससे अछूता कैसे रह सकता है! सावन की घटाओं का ही तिलस्म है कि कवियों, गायकों, लेखकों ने अपनी कलम के द्वारा सावन की खूबसूरत सूरत व सीरत को नवाबी-शबाबी बना दिया है। कहीं कवियों की कविताओं में सजाए हुए सावन की सरस छटा मन को लुभाती है और कहीं गीतकारों ने अपने गीतों में सजाकर सावन को अलंकृत कर दिया है।
हर कलमकार ने अपनी रचनाओं का शृंगार बना के इसके अलहड़पन का सुंदर स्वरूप प्रस्तुत किया है। कलमकारों ने आम बोलचाल की भाषा में निखार के जन-जन को इसका चहेता बना दिया है। इसी से हमें अपनी विशुद्ध परम्पराओं के दीद होते हैं व उनसे जुड़े रहने के भाव पैदा होते हैं। यही कारण है कि सावन हमारी संस्कृति व सभ्यता का आईना है। सीधे-सादे व फक्कड़ी परिवेश का प्रतीक है। सावन बेशक आज इसका रंग-रूप बदल गया है, लेकिन हमारे अतीत की समृद्धि, खुशहाली, सम्पन्नता, सौहार्द का यह पक्का गवाह है।
आज भी लोग सावन की कविताओं, गीतों, मुहावरों, लोक-उक्तियों, फिक्रों, छंद, दोहे, चौपाइयां, गजलें, शेयर-ओ-शायरियां, चुटकियां, व्यंग्य व कहानियों के माध्यम से हमारे अतीत की सुख-समृद्धि को निहार खुशी का अहसास जताते हैं।
सावन के आगमन का प्रकृति में सभी को बेसब्री से इंतजार रहता है जब बादलों की कोख से निकल कर छन-छन करती जल की बूंदों से प्रत्येक प्राणी झूम उठता है। शीतल पुरवाई के साथ मेघ गर्जन होने लगता है, तो ऐसे समूची प्रकृति हरियाली रूपी आंचल ओढ़े दुल्हन-सी दिखाई देने लगती है।
ऐसा लगता है मानो-
आई सावन की ऋतु सुहानी
बरसे धरा पर रिमझिम पानी।
धरती नाचे नाचे है अम्बर
देख के मौसम के यौवन को
मयूरी हुई दीवानी।
ऐसे सुहावने मौसम में नवविवाहिता को मायके की मीठी यादों को ताजा करने में सावन कोई कसर नहीं छोड़ता। एक ओर जहां समूची प्रकृति पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी व मानव प्राणी सावन का अभिनन्दन करते हैं, वहीं नव-विवाहिताएं भी अपने ऊपर लगे सारे अंकुशों का बन्धन तोड़ने को भी आतुर हो उठती हैं। सावन के अमृतरस का रसास्वादन हर कोई करने को आतुर रहता है। इसी सावन माह में सावनी तीज का भी उल्लेख मिलता है, जोकि महिलाओं का सबसे प्रिय त्यौहार माना जाता है। उनका हृदय अजीब-सी खुशियों की सौगात से भर जाता है। उल्लास व आनन्द में सावनी उमंग की तरंग उनके रोम-रोम को पुलकित कर देती है।
सावन न होता, तो बारिश कैसे होती? गर्मी से राहत कैसे मिलती? रिमझिम फुहारों के बीच, झमाझम फुहारों के बीच अपनों के साथ भुट्टा खाने का आनंद कैसे उठाते? ऐसे कई कारण है, जिनकी वजह से सावन का मौसम हर किसी का मनपसंद मौसम होता है। हर नुक्कड़ पर कच्चे कोयलों के लाल सुर्ख अंगारों पर लोहे की जाली के ऊपर उलट-पलट कर भुनते हुए भुट्टे, आहा! यह दृश्य और भुनते भुट्टे की सुगंध से मन ही नहीं आत्मा तक को परम आनन्द मिलता है। जब उस गर्मागर्म भुट्टे पर मसाला और नीम्बू लगवाकर भीगी बरसात में खाने का मजा लिया जाता है; तो कहना ही क्या! सच में सब पीजा, बर्गर उसके सामने व्यर्थ (बौने) प्रतीत होते हैं।
जब प्रकृति ने हरी साड़ी पहन ली हो तो किसका मन नहीं मचल उठेगा! सभी बरसात में प्रसन्न होते हैं और हरियाली देखने के लिए ही सावन की आस होती है। आजकल वैसे भी हरियाली खत्म होती जा रही है। सावन में हरी-हरी मेंहदी इस हरियाली में मिल जाती है। पेड़ों पर झूले और पेंग भरती महिलाएं तो अब कम दिखती हैं, लेकिन सावन के आते ही उनकी छवि जरूर उभर आती है मन में। इस मौसम की अगुवाई करते हैं फूल। रंग-बिरंगी दुनिया सज जाती है फूलों की। सकारात्मक ऊर्जा आती है इस मनभावन सावन में।
घनघोर घटाओं के बीच जब बिजली चमकती है और बारिश की फुहार तन-मन भिगो देती है, तब लगता है कि ‘आया है सावन झूम के’। इसी मस्ती के मौसम के लिए पूरे साल सावन का इंतजार रहता है। आसमान सें बरसता पानी बहुत रोमांचित करता है। बचपन के वे दिन तो आज भी नहीं भूलते जब आँगन में खड़े होकर सिर पर बाऊजी का काला छाता तान लेते और टप-टप गिरती बूंदों का आनन्द लेते।
मैं तो अपने बस्ते में एक बड़ा सा पारदर्शी मोमजामा जरूर रखती थी। कभी स्कूल से वापिस आते समय बारिश हुई, तो चटपट मोमजामा खोला और ओढ़ लिया। फिर ऊपर गिरती बूंदें टपाटप गिरती हुई दिखती तो थी, पर भिगो नहीं पाती थी। यह सब जादू जैसा लगता था। अब तो वे सभी बातें सपना होकर रह गई हैं।
सावन के मौसम में स्वाद को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस मौसम में घेवर, अनदरसे मिठाई की दुकानों पर खूब सजते हैं। सावन बेटियों के घर सिंदारा भेजने का समय होता है और इस सिंदारे में घेवर, गुंजिया, अनदरसे, मठरी, छाक, फिरनी जैसी चीजें भेजी जाती हैं।