लेट-लतीफी को करें बाय-बाय
आॅफिस का वक्त हो तो सड़कों पर ट्रैफिक का नजारा पागल कर देने वाला नजर आता है। एक आपाधापी सी मची होती है। लोग सड़कों पर बदहवास से वाहन दौड़ाते देखे जा सकते हैं। यूं लगता है मानो जान हथेली पर लेकर चले जा रहे हों। उन्हें अपने जीवन की जरा भी परवाह नहीं होती।
समय से बाजी मारने की कोशिश में लोग आॅफिस या फैक्टरी में समय से पहुंचना चाहते हैं, लेकिन ट्रैफिक तो ट्रैफिक है। उसके साथ ही लाल बत्तियां भी रूकावट बनती हैं और किसी रोड रेज (सड़क पर होने वाले झगड़े) में फंस गए तो और मुसीबत। कार्यालय में फिर भी देर हो ही जाती है। कभी-कभी वाहन भी दगा दे जाता है। ऐन टाईम पर पंक्चर या ब्रेकडाउन भी लेट करा देता है।

‘हैबिट इज सेंकड नेचर’, इसे बदल पाना आसान नहीं। कार्यालय में देर से जाना भी आदत में शुमार हो जाता है। एक ऐसी बुरी आदत जो एक इजी चेयर की तरह होती है जिसमें बैठना तो आसान है लेकिन फिर उठ पाना मुश्किल होता है। लेट-लतीफ कहलाना अपने आप में शर्मनाक है। आपको अगर समय की कद्र नहीं है तो आपको जिंदगी की कद्र भी नहीं है। आप जिंदगी में सफल तभी हो सकते हैं जब आप समय की महत्ता को समझेंगे। इसीलिए आजकल टाईम मैनेजमेंट पर बहुत जोर दिया जाने लगा है।
थोड़ा मार्जिन रखकर घर से चलने की आदत आपको बहुत सी मुसीबतों से बचा सकती है। इनमें मुख्य है तनाव जो कई बीमारियों, गलत निर्णय और दुर्घटनाओं का कारण होता है। जितना एक्सट्रा समय आपने समय पूर्व पहुंचने के लिए खर्च किया है वो समय आपका वेस्ट कतई नहीं हुआ है। जिंदगी में हर चीज केलक्युलेट करके उसे लाभ-हानि के तराजू पर नहीं आंका जाना चाहिए। कई बार कुछ ऐसे लाभ होते हैं जो प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देते लेकिन उनकी महत्ता प्रत्यक्ष दिखने वाले लाभ से अधिक होती है।
यह एक्सट्रा समय जो आपने समय से पहुंचने पर खर्चा है वह जाने कब अनजानी बाधाओं के आने पर आपके काम आ जाए। इन्हीं सब बातों को मद्देनजर रखते हुए लेट-लतीफी छोड़िए और स्मार्ट बन जाइए और मन ही मन ये मंत्र दोहराएं बाय-बाय टू लेटलतीफी एंड वेलकम टू पंक्चुअलिटी। -उषा जैन शीरीं



































































