Stay positive, avoid stress

तनाव एक बहुत बड़ी बीमारी है। इसका इलाज तो है, मगर जब व्यक्ति तनाव में हो, तब उसे इलाज समझ में नहीं आता है। वर्तमान स्थिति में कोरोना वायरस तनाव का एक बहुत बड़ा कारण बना है।

दरअसल कोरोना वायरस के कारण दुनियाभर के कई देशों में लॉकडाउन करना पड़ा। लॉकडाउन में घरों में बंद रहकर लोगों के तनाव का स्तर बढ़ गया है। शोधकर्ताओं का मानना है कि इस तनाव को दूर करने के लिए लोगों को सकारात्मक होने की जरूरत है।

जो लोग प्रत्येक स्थिति में सकारात्मक बने रहते हैं, वे तनाव का शिकार होने से बच जाते हैं और स्थिति फिर चाहे कैसी भी हो, वे उसे हल करने में कामयाब हो जाते हैं। पर्सनैलिटी एंड इंडिविजुअल डिफ्रेंसेस नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया है कि जो लोग भविष्य के लिए योजना बनाने के साथ-साथ अपने हर पल को बेहतर तरीके से जीते हैं, वे नकारात्मकता का शिकार हुए बिना रोजमर्रा के तनाव पर काबू पाने में सक्षम होते हैं।

रोजाना का तनाव है खतरनाक

नॉर्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता शेवुन न्युपर्ट का मानना है कि जाहिर है कि रोज के तनाव से नकारात्मक प्रभाव या खराब मूड होने की संभावना अधिक हो सकती है। हालांकि हमने विशेष रूप से उन दो कारकों को देखा, जिनको तनाव को नियंत्रित करने में प्रभावी समझा जाता है। ये कारक हैं माइंडफुलनेस और प्रोएक्टिव कोपिंग।

शोधकर्ता न्युपर्ट के अनुसार माइंडफुलनेस एक ऐसी थेरपी है, जिसके जरिए हम अपने अंदर व अपने आसपास हो रही घटनाओं या स्थितियों के प्रति जागरूकता पैदा करते हैं। यह एक तरह से ध्यान ही है। बस फर्क यह है कि ध्यान लगाने के लिए एक तय वक्त पर अलग-से कोशिश करने के बजाय माइंडफुलनेस में हम जिस पल जहां होते हैं, अपना पूरा ध्यान वहीं केंद्रित करना होता है। इसमें अतीत में रहने या भविष्य की चिंता करने की बजाय उस लम्हे को पूरी तरह महसूस करना और जीना होता है। वहीं, प्रोएक्टिव कोपिंग एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से लोग संभावित तनावों का पता लगाते हैं और उन्हें रोकने या उनके प्रभाव को खत्म करने के लिए पहले से ही एक्शन लेना शुरू कर देते हैं।

शोधकर्ता न्युपर्ट के अनुसार, हमने यह देखने के लिए कि ये कारक तनाव की प्रतिक्रियाओं को कैसे प्रभावित करते हैं, 223 प्रतिभागियों के डाटा की जांच की। अध्ययन में 60 और 90 की उम्र के बीच के 116 लोग और 18 से 36 की उम्र के 107 लोग शामिल थे। सभी प्रतिभागी अमेरिका के निवासी थे।

अध्ययन में स्पष्ट हुई ये बातें

सभी प्रतिभागियों को एक सर्वेक्षण पूरा करने के लिए कहा गया, जिसमें उनको प्रोएक्टिव कोपिंग और माइंडफुलनेस के प्रभाव को बताना था। इन आठ दिनों में प्रतिभागियों को रोजमर्रा के तनाव और नकारात्मक मूड की रिपोर्ट देने के लिए भी कहा गया। शोधकतार्ओं ने पाया कि रोज के तनावों के प्रभाव को कम करने के लिए प्रोएक्टिव कोपिंग प्रक्रिया फायदेमंद थी। लेकिन जिन प्रतिभागियों ने दोनों प्रक्रियाओं को अपनाया, उनको तनाव से निपटने में अधिक मदद मिली।

शोधकर्ताओं ने कहा कि हमारे परिणाम बताते हैं कि सकारात्मक व संतुलितन जीने वाले लोग नकारात्मक विचारों से निपटने में योग्य होते हैं।

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