सतगुरु और सतगुरु के वचनों पर जिसे भरोसा, दृढ़ यकीन होता है वही रूहानियत में कामयाबी हासिल करता है। संतों की शिक्षा का यही सार है कि ‘गुरू कहे करो तुम सोइ…।’ Editorial
मनमत के अनुसार चलने वाले लोग रूहानियत में कभी कामयाब नहीं हुआ करते। मन की चतुराइयां, सियाणपें धरी-धराई रह जाती हैं और भोले-भाले लोग, मालिक के प्यारे और अति प्यारे बन जाते हैं। रूहानियत, सूफियत में सफलता की पहली सीढ़ी है
इन्सान का अपने सतगुरु के प्रति दृढ़ विश्वास। पूज्य गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के वचनों में एक जगह आता है कि जो लोग घर के दरवाजे, खिड़कियां भी सतगुरु से पूछकर रखते हैं, मालिक भी उन्हें कोई कमी नहीं आने देता। सार यही है कि अपने सतगुरु और सतगुरु के वचनों पर दृढ़ यकीन जरूरी है। ऐसे ही दृढ़ विश्वास का एक उदाहरण वर्णनीय है। एक शख्स सतगुरु का अनन्य भक्त था, वह कैंसर जैसी भयानक बीमारी से पीड़ित था। वह बीमारी की लास्ट स्टेज पर था। चंडीगढ़ पीजीआई व ऐसे ही अन्य बड़े हॉस्पिटल में काफी दिनों तक इलाज चला, लेकिन आखिरकार जवाब मिला कि यह कुछ दिनों का मेहमान है, घर पर सेवा कर लें जब तक स्वास हैं।
वहां से वह घर जाने की बजाय अपने गुरु जी के दर्शन करने के लिए परिवार सहित यहां डेरा सच्चा सौदा में आ गया। अचानक पूज्य गुरु जी ने पीजीआई में दिखाने का वचन किया। प्रेमी शिष्य ने सत्वचन माना और परिवारवालों को पीजीआई चलने को कहा। प्रेमी का दृढ़ यकीन था, उसकी जिद्द के आगे परिवार वाले भी बेबस थे। दोबारा वहीं पहुंचे। हालांकि डाक्टर पहले ही जवाब दे चुके थे, फिर भी थोड़ा-बहुत देखा, चैकअप किया।
स्थिति तो नाजुक थी, लेकिन उन्होंने कुछ दवाईयां भी लिख दी। वहां से वापिस आ गए। परिवारवालों ने कहा कि ये दवाइयां ले लेते हैं, कहने लगा दवाइयों का तो गुरु जी ने बोला ही नहीं। पहले कुछ दिन तो बहुत मुश्किल से कटे। मुंह के रास्ते, लेटरीन के रास्ते रेशा, खून बहता रहा। इतनी ज्यादा कमजोरी भी आ गई कि चारपाई से जुड़ गया। परंतु उसके बाद स्वास्थ्य में अचानक बदलाव आने लगा। आज कुछ और, कल कुछ और इस तरह स्वास्थ्य में सुधार होता चला गया। जो बीमारी थी वह खून, पीक के द्वारा बह गई। कुछ दिनों में वह बिलकुल स्वस्थ हो गया।
उसने पूज्य गुरु जी को अपनी स्थिति बयान की और धन्यवाद भी किया। उसने यह भी बताया कि मुझे जबकि वहां से जवाब मिल चुका था, लेकिन अंदर सतगुरु के प्रति विश्वास दृढ़ था। तो जो भरोसा करते हैं सतगुरु भी उन्हें कोई कमी नहीं आने देता। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि गुरु को भी मानो और गुरु की भी मानो। गुरु कभी किसी को बुरा नहीं कहता। वो हमेशा सबके भले की, समाज व सृष्टि की भलाई की बात कहता है।
‘संत जहां भी होत हैं, सबकी मांगत खैर। सबहूं से हमरी दोस्ती, नहिं किसी से बैर। ’ वो हमेशा सबके सुख, शांति के लिए परमपिता परमात्मा से दुआ करते हैं। उनका हर कर्म मानवता, सृष्टि की भलाई के लिए ही होता है। पिछले दिनों पूज्य गुरु जी ने अपनी एक चिट्ठी में ही नहीं, बल्कि अब तक जितनी भी चिट्ठियां संगत में पढ़कर सुनाई गई हैं, साध-संगत को मानवता की ज्यादा से ज्यादा सेवा करने, जरूरतमंदों की मदद करने के लिए प्रेरित किया है और साध-संगत भी जिसे अपना फर्ज समझते हुए वचनों पर फूल चढ़ाने में प्रयासरत है।
धन्य-धन्य हैं ऐसे महान संत, जो अपने अनुयायियों को ऐसी पावन प्रेरणा देकर दुनिया के कोने-कोने में सुख व शांति का पैगाम देते रहते हैं।