Take advantage of the birth of the mind, meditate on the name, do not forget it. - Spiritual Satsang

रूहानी सत्संग: पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी धाम, डेरा सच्चा सौदा सरसा
मानस जन्म का लाभ उठाना,
नाम ध्याना, भूल ना जाना।
सतगुरु की प्यारी साध-संगत जीओ, जो भी साध-संगत आश्रम में चलकर आई है, सभी का तहदिल से बहुत-बहुत स्वागत करते हैं, जी आयां नूं, खुशामदीद कहते हैं जी। आज आपकी सेवा में जिस भजन पर सत्संंग होने जा रहा है, वो भजन है:-

मानस जन्म का लाभ उठाना,
नाम ध्याना, भूल ना जाना।

सभी धर्माें में, रूहानी पीर-फकीरों, गुरुओं ने इंसान को सबसे सर्वश्रेष्ठ क्यों बताया है? इसके जो काम-धंधे का तरीका है उस लिहाज से इसकी तुलना दूसरे जीव-जंतुओं से करके देखें तो इसलिए सर्वश्रेष्ठ कहा गया है कि इंसान जब चाहे जानवर को मारकर खा सकता है, जब चाहे उनको गुलाम बना सकता है। क्या इसलिए संतों ने इसे सर्वश्रेष्ठ कहा है? नहीं। अगर ऐसी तुलना करें तो जीव-जंतु, जानवर इंसान से कई मामलों में बेहतर हैं।

तुलना करके देखिए- इंसान सारा दिन काम-धंधा करता है तो सारा दिन जानवर भी काम धंधा करते हैं बल्कि बहुत से जानवर तो इंसानों की सेवा करते हैं। इंसान और जानवर दोनों ही अपना पेट भरने के लिए खाते हैं। अंतर इतना होता है कि इंसान अपनी इच्छानुसार खाता है और जैसा चाहता है वैसा खाने की कोशिश करता है लेकिन जानवर को जैसा मिल जाए, जब मिल जाए वो खाकर गुजारा करता है। बाल-बच्चे इंसानों के होते हैं, बाल-बच्चे जानवरों के भी होते हैं बल्कि जानवर की जीते-जी गोबर खाद के काम में आती है, मरने के बाद हड्डियां, चमड़ा सब काम में ले लिया जाता है, पर हे इंसान! तेरा तो इनमें से कुछ भी काम में आने वाला नहीं है। तो भाई! संत-फकीर जो होते हैं वो तो सच का मार्ग बताते हैं। बेपरवाह परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने अपने भजनों में जो लिखा है, उनमें मार्ग-दर्शन किया है।

मानस जनम का लाभ उठाना,
नाम ध्याना, भूल ना जाना।

सच्चे दिल से उसको याद करना, दिखावा मत करना और भूलना नहीं क्योंकि उसको याद करने से तुझे आनंद, लज्जत, खुशी है और उसे भूलने से गम, चिंताएं, टैंशन, बोझ है, जिसका इलाज बाजार से तो मिलता नहीं। आपको नशा दे देते हैं, आपको चिंता, गम हैं लेकिन उस नशे से हो सकता है गम कम होने की बजाए और बढ़ जाए। वो नशे कहीं भी ले जा सकते हैं। नशों का काम थोड़ा ठीक करना, अधिक परेशानियां, कोई न कोई रोग लग जाते हैं। आप उनके गुलाम हो जाते हैं। सही तरीका आत्मबल को जगाइए, आत्मिक शक्तियां जागृत कीजिए। आत्मबल के लिए टॉनिक, दवा सारे संसार में अगर कोई है तो वह आत्मिक-चिंतन है। अपने द्वारा अपनी आत्मा को खुराक दे दी जाए और वो आत्मिक-चिंतन के लिए है। प्रभु, मालिक, अल्लाह, वाहेगुरु का नाम, कलमा, उसी के द्वारा हम दोहराएं तो अपनी आत्मिक शक्ति यां जागृत कर सकते हैं और गम-चिंताओं से, अपने आप को मुक्त करवा सकते हैं।

भजहु गुोबिंद भूलि मत जाहु।।
मानस जनम का एही लाहु॥
यही मानस (इंसान) कहलवाने का सबसे बड़ा लाभ है।

साथ-साथ भजन चलेगा साथ-साथ बताते चलेंगे, चलो भई:-

टेक:- मानस जन्म का लाभ उठाना,
नाम ध्याना, भूल ना जाना।

1. प्रभु मिलने की मिली है ये वारी,
खाने सोने काम में जाता गुजारी।
अनमोल हीरे को यूं ना गवाना,
नाम ध्याना भूल……..

2. जन्म तो तूने पहले और भी हैं पाए,
ऐसा जन्म हाथ जल्दी ना आए।
हाथ से गया फिर पड़े पछताना,
नाम ध्याना भूल……..

3. बन कर व्यापारी काल देश में आया,
झूठे सौदे किए सौदा सच ना कमाया।
चाहिए थी पूंजी सच्चे सौदे पे लगाना,
नाम ध्याना भूल…..

4. पांच लुटेरे तेरे पीछे लगे हैं,
कीमती पूंजी दिन रात ठगे हैं।
इन चोरों से पूंजी बचाना,
नाम ध्याना भूल……..

भजन के शुरू में आया:-
प्रभु मिलने की मिली है ये वारी,
खाने सोने काम में जाता गुजारी।
अनमोल हीरे को यूं ना गवाना।

इंसान ने मन के पीछे लगकर एक कहावत बना रखी है
‘खाओ पीओ ऐश करो,
ये जग मिट्ठा अगला किसने डिट्ठा।’

खाने पीने में मांस, शराब अंडे को बेहतर समझते हैं। कोई मांस, अण्डा, शराब खाने पीने वाला किसी भक्त-जन के घर चला जाए, चाहे वो उसे मेवे, पदार्थ लाकर दे, घी ला दे कुछ भी दे, चाहे कितने स्वादिष्ट भोजन खिलाए पर जब वह वापिस अपने नशे वालों के पास आएगा तो वो पूछते हैं क्यों भाई! मेहमान बनकर गया था, काफी सेवा हुई होगी? कहता- सेवा खाक हुई। मूंग की दाल खाने वाले थे, मंूग की दाल खिला दी। घास जैसी रसोई थी।

मांस, अण्डे के बिना तो खाना-पीना ही नहीं समझते। एक बार हमने ये देखा कि एक सज्जन दूर से अपने दोस्त को मिलने आए और जिससे मिलने आए थे वो उसके दोस्त मिल गए। कहने लगा- उसका क्या हाल है? वो दोस्त कहने लगा-उसने तो खाना-पीना छोड़ दिया। कहने लगा-कितनी देर हो गई? कहने लगा-छ: महीने हो गए। कहने लगे, फिर बचा कैसे? कहते नहीं! रोटी तो खाता है। खाना-पीना मांस, अण्डे और शराब को ही मानते हैं, वो छोड़ दिया। विवाह शादियों में जाएं या फिर ससुराल जाएं। वहां पर और कुछ मिले न मिले शराब, मांस, अण्डा हो तो उसे श्रेष्ठ समझते हैं। तो ये जो मांस, शराब, अण्डा खाना है ये विज्ञान के अनुसार भी और रूहानियत के अनुसार भी बिल्कुल गलत है। विज्ञान ने सिद्ध किया है कि इंसान शाकाहारी है। हमने उन्हीं के अनुसार बताया है और धर्म भी कहते हैं कि ये बुरा है। मांस का बदला मांस देना पड़ता है।

बकरी पाती खात है, ताकी काढ़ी खाल।
जो बकरी को खात है, ता का कौन हवाल।

बकरी जो घास-फूस खाती है, उसके लिए भी बकरी को बख्शा नहीं गया। बकरी की खाल उल्टी करके उतार लेते हैं परंतु जो बकरी को खाएंगे उनका हश्र क्या होगा? तो भाई! यह सच्चाई है।

जन्म तो तूने पहले और भी हैं पाए,
ऐसा जन्म हाथ जल्दी ना आए।
हाथ से गया फिर पड़े पछताना।

इस बारे में लिखा है:-

मनुष्य जन्म दुर्लभ है। बार बार हाथ नहीं आता। यदि ये एक बार हाथ से निकल गया तो दोबारा जल्दी नहीं मिलता।
आगे आया है:-

बन कर व्यापारी काल देश में आया,
झूठे सौदे किए सौदा सच ना कमाया।
चाहिए थी पूंजी सच्चे सौदे पे लगाना।

झूठे सौदे बहुत हैंं। इंसान बहुत से सौदे करता है। जमीन-जायदाद का सौदा उसमें भी रगड़ा-रगड़ी चलती है और दुकान का सौदा, व्यापार में सौदेबाजी, झूठी गवाही देने का सौदा, किसी को मारने का सौदा, जीवित करने का सौदा! अरे! जब आप जीवित नहीं कर सकते तो मारने का हक किसने दिया है? तो ये सौदेबाजी चलती है। ये सब झूठ के सौदे, दहेज तो दिया जाता है। ये सौदेबाजी नहीं तो और क्या है? पढ़े-लिखे सज्जन अपने तरीके से मांगते हैं और अनपढ़ अपने तरीके से। तरीका बदल गया, लेकिन सौदेबाजी नहीं बदली। पढ़े-लिखे सज्जन लड़की वाले को बैठाते हैं।

चाय-पानी पिलाते हैं और कहते हैं कि मेरा लड़का इतना पढ़ा-लिखा है। इतनी देर फलां हॉस्टल में पढ़ा। इतना खर्चा आया और फिर पढ़कर अब नौकरी करने लगा है, नौकरी लगवाने में मेज के नीचे से इतना गया। तो कुल मिलाकर ये हमारा मूल है। बाकी हम मांगते नहीं। लड़की भी दे जाना और ब्याज जो आपकी इच्छा है वो दे देना। हम मांगते कुछ भी नहीं।
तो भाई! सच्चाई, वास्तविकता यही है कि झूठे सौदे बहुत चल रहे हैं। मालिक के नाम पर भी सौदेबाजी चलती रहती है और लोग मालिक को मालिक के तरीके से नहीं पाना चाहते, अपने तरीके से हासिल करना चाहते हैं और मालिक की ब्लैक तक होने लग जाती है। शायद आप न समझें इस बात को पर ऐसा हुआ था।

बहुत से सत्संगी भाइयों को दुकानदारों ने बताया कि जो हम 300 का देते थे, लोगों ने हमें बताया जो वहां पर रहते थे, आज ब्लैक में 1000 का बिक रहा है। तो क्या ये सही बात नहीं? लोगों ने हमें बताया जो वहां पर रहते थे कि महाराज जी! सवाल ही पैदा नहीं होता कि मालिक ने लिया हो। वो सारा झोलियों में से होकर पीछे हम रखा करते थे उसमें आ जाता था, हमारा दुकानदार से तालमेल था, उसको दे देते थे। फिर से वैसा ही चलता था। तो ये चला और लोगों ने कुछ नहीं देखा। अरे! हम किसी को पानी पिलाएं, रोटी खिलाएं तो वो आगे से कहता है कि तेरा भला हो, तूने मुझे पानी पिलाया। तो जो मालिक सारी सृष्टि का रचयिता है वो हमसे कुछ खाएगा और बदले में हमें दो शब्द आशीर्वाद के नहीं बोल सकता कि तेरा भला हो। ये बात कोई नहीं सोचता।

कोई ठग रहा है, ये ठगा जा रहा है, मालिक का तो सिर्फ नाम चल रहा है। इन पाखंडों से बाहर आइए। ये सही नहीं है। मालिक वो है जो आपको बनाने वाला है, मलिक वो नहीं जिसे आप बनाते हैं। मालिक, प्रभु, ईश्वर वो है जिसने सारी सृष्टि को बनाया है, आप को बनाया है उसे ढूंढिए और वो आपके अंदर बैठा है। न पाखंड, न ढोंग, न दिखावे की जरूरत पर लोग यहां भी झूठे सौदे से बाज नहीं आते।

पांच लुटेरे तेरे पीछे लगे हैं,
कीमती पूंजी दिन रात ठगे हैं।
इन चोरों से पूंजी बचाना।

पांच लुटेरे या पांच रोग कहिए, तो सही है। कामवासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और इनका सरदार है मन। सरदार से यहां मतलब मुखिया से है। मन है और माया है। आज का इंसान इन्हीं में खोया हुआ है। कामवासना में इतना उलझ गया है कि उसे रिश्ते-नाते की भी परवाह नहीं रही। आज समाज में जो बुरा हाल इंसानियत का है उसे देखकर बहुत दु:ख आता है। मालिक से प्रार्थना, दुआ भी करते हैं कि हे मालिक! इनका भला कर। कोई रिश्ता-नाता पवित्र नहीं है। अपने हाथ अपने ही जिस्म को खाए जा रहे हैं। बुरा हाल है।

अरे जानवरों में कोई रिश्ता-नाता नहीं होता। इंसानों में तो रिश्ते-नाते महापुरुषों ने बनाए हैं। भले के लिए बनाए हैं लेकिन लोग छोड़ते जा रहे हैं। किसी समय रूहानी फकीरों, संतों, पैगम्बरों और दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा था कि एक समय ऐसा आएगा जब सारे रिश्ते-नाते खत्म होंगे, स्त्री व पुरुष का रिश्ता ही रह जाएगा।
तो वो भयानक कलियुग होगा। सभी धर्मों में रूहानी फकीरों ने लिखा है कि भयानक कलियुग की निशानी यह होगी कि तब सारे रिश्ते-नाते खत्म होने लगेंगे और रिश्ता केवल स्त्री और पुरुष का रहेगा बाकी रिश्ते खत्म हो जाएंगे। तब समझ लेना सबसे भयानक युग, समय का दौर शुरू हो गया है। इतने साल पहले उन्होंने घोषणा की थी और आज वो समय लगभग आ चुका है। रिश्ते-नाते खत्म होते जा रहे हैं।

कबीर साहिब जी व शेख फरीद जी ने लिखा था कि हे इंसान! रिश्ते-नातों के प्रति वफादार रहना। अगर ऐसा नहीं करेगा तो ऐसी-ऐसी बीमारियां पैदा होंगी कि तू तड़प-तड़प कर मरेगा, तेरा इलाज नहीं हो पाएगा। आज वही बीमारियां एड्स जैसी पैदा हो गई हैं और इनमें पैदा होने का कारण लगभग यही है। जब इंसान पशु से भी नीचे गिरा तभी इन बीमारियों ने इसे घेर लिया और रिश्ते-नाते टूट गए।

अत: यह बीमारी आगे बढ़ती चली गई और लोग तड़प-तड़प कर मरते हैं। तो भाई! कितने साल पहले फकीरों ने कहा, किसी ने नहीं माना। अब वैज्ञानिक भी कहते हैं कि अपने रिश्तों के प्रति वफादारी ही सबसे सही तरीका है। तो भाई! संत-फकीर जो भी कहते हैं वो सभी के भले के लिए कहते हैं, उनकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं होती।

संत जहां भी होत हैं, सबकी मांगत खैर।
सबहुं से हमरी दोस्ती, नहीं किसी से वैर।

दोस्ती इसलिए कि सभी एक ही मालिक-प्रभु के बच्चे हैं और वैर इसलिए नहीं कि जो मालिक से प्यार करेगा वो मालिक के बच्चों से वैर कैसे करेगा? इसलिए संत सभी के भले की कहते हैं, सभी के भले के लिए कहते हैं। उनको निजी स्वार्थ नहीं होता कि बेटा! मेरा ये कर देना, मेरा वो कर देना और मैं तुझे आशीर्वाद दूंगा। वो सभी को एक जैसा ही बताते हैं। इसी तरह से क्रोध है। इसमें भी इंसान चंडाल की तरह बन जाता है।

यह भी इंसान पर छाया हुआ है। इसके कारण आत्मिक कमजोरी, बर्दाश्त-शक्ति कम होती जा रही है। किसी ने कुछ बात कह दी कि भड़क उठते हैं। बुजुर्गवार जानते हैं पहले जब कोई किसी से मिलता तो नमस्कार, राम-राम, सत् श्री अकाल, सलामे-वालेकुम या कुछ न कुछ बोलते, जिससे आपस में प्यार बढ़ता और मालिक की याद भी आती लेकिन आज का युग ऐसा है कि अगर किसी को नमस्कार कर भी दें तो आगे से कहता है , बोल, क्या चाहिए? क्या मांगता है? कुछ लेना है क्या? मतलब मुझे बुलाया क्यों? बुलाया तो जरूर कोई मतलब होगा। इंसान इतना मतलबी हो गया है। आपसी भाईचारा खत्म होता जा रहा है।

बेपरवाह शाह सतनाम सिंह जी महाराज फरमाते हैं:-

पिच्छे लगेया छडदा ना इक ठग्ग जी।
तेरे तां मगर गए पंज लग जी।
अगर किसी के पीछे एक ठग लग जाए तो वो छोड़ता नहीं। अरे! तेरे पीछे तो पांच लग गए हैं।
भज्ज लै भज्जीदा, फड़ेया के फड़ेया।
लुट लैण बस्ती ठग्गां दी वड़ेया।

भाग ले अगर बच सकता है। अपने आप को इनसे राम-नाम के सहारे, मालिक की याद के सहारे बचा ले वरन् एक तरह से तो तू ठग्गों की बस्ती में आ गया है। छोड़ेंगे नहीं। कभी गुस्सा आ गया, कभी काम-वासना के विचार आ गए। क्रोध, लोभ, लालच, अहंकार इन्हीं में खोकर पशुओं की तरह जिंदगी गुजार कर चला जाएगा। अपने आप को पहचान नहीं पाएगा और बनाने वाले (प्रभु) को देख नहीं पाएगा। इसलिए विचार कर।

इनसे बचने का तरीका नाम, शब्द कलमा है। इन शब्दों को दोहराएंगे तो आत्मबल बढ़ेगा और आत्मबल बढ़ने से बुराइयां खत्म होती हैं, भलाई नेकी के विचार बढ़ते चले जाते हैं। ये जरूरी है कि आप इनका सामना करें, इन चोरों को रोकें जो आपकी स्वासों रूपी कीमती पूंजी को लूट रहे हैं।

थोड़ा भजन और रह रहा है:-

5. काल ने दो हथियार बनाए,
मन भरमाए और माया भटकाए।
भूल गया घर वापिस जाना,
नाम ध्याना, भूल…

6. साथ ना जाए कुछ भी धन जो कमाए,
जिसके लिए सारी उमर गवाए।
सच्चा सार धन राम-नाम का कमाना,
नाम ध्याना, भूल…

7. करना जो शुभ काम आज ही करले,
फिर क्या करे जब आएगी परले।
कहें ‘शाह सतनाम जी’ होना पड़ेगा रवाना,
नाम ध्याना, भूल…।।

भजन के आखिरी अंतरों में आया:-

काल ने दो हथियार बनाए,
मन भरमाए और माया भटकाए।
भूल गया घर वापिस जाना।

मन क्या है? मन किसे कहा जाता है? इंसान के अंदर बुरी और अच्छी सोच चलती है। जो बुरे विचार या अच्छे आते हैं उनको देने वाला कौन है? संतों ने जो रिसर्च किया कि जो बुरे विचार उठते हैं उनको देने वाला या बुरे विचार जिससे उठते हैं उसी को मन कहा है। इसी मन को नफज, शैतान भी कहा जाता है और जो अच्छे-नेक विचार आते हैं उनको आत्मिक-विचार, रूहानी-विचार या जमीर की आवाज कहा जाता है।

तो ये जो मन है हमेशा बुरे ख्याल देता है। मन के पीछे कभी मत चलिए। मन के अनुसार चलने वाले लोग आपको मालिक के नाम पर भी लूटते रहते हैं, ठगते रहते हैं। कोई कहता है कि मालिक को चढ़ावा दो तो खुश हो जाएगा। कोई कहता है कि कुछ खिला-पिला दो शायद वो खुश हो जाएगा। कोई कहता ऐसे-ऐसे कपड़े पहनो फिर मालिक खुश हो जाएगा। मालिक ऐसे कभी खुश नहीं होता। अरे! जो हमें खिलाने-पिलाने वाला है उसे हम क्या खिला-पिला सकते हैं।

जो हमें बनाने वाला है वो हमारे बनाए चंद रुपए नहीं बना सकता? उसे कब जरूरत पड़ी कि बेटा मुझे 5 रुपए दे मैं होटल पर जाकर खाना खा लूं? कभी आपके पास मांगने आया? सवाल ही पैदा नहीं होता। आप जब देते हैं अपने ईश्वर, अल्लाह, वाहेगुरु, राम को, तो कभी आपने वहां दो घण्टे रुककर इंतजार किया कि उसे उठाता कौन है? क्या भगवान जी ने कभी उठाया? नहीं। आपने वहां रख कर फर्ज पूरा कर दिया। घर को चले जाते हैं और जो मालिक के आस-पास होता है वो उसको उठाता है, जेब में डाल लेता है। हमने कहा, ये क्या कर रहे हो? कहता, मैंने आदमी से थोड़ा ही लिया है, मैंने तो मालिक के चरणों में से लिया है! है ना कमाल का तरीका।

एक ने दिया, दूसरे ने खाया। बीच में रगड़ा-रगड़ी। मालिक का तो सिर्फ नाम चलाया। क्या ऐसा नहीं चल रहा? अरे जब वो ले ही नहीं रहा, जब वो मांगने नहीं आता हम जबरदस्ती उसे कैसे दे सकते हैं? वो मांगने भी आए तो हमारे पास आए, हमें दर्शन भी दे, आशीर्वाद भी दे, वो खुद आए, फिर तो देने का मजा भी है लेकिन आता इंसान है और नाम मालिक का चलाता है क्योंकि खुद के नाम पर कोई देता ही नहीं। किसी को भेज दीजिए कि मुझे दीजिए। क्या होता है, अल्लाह के नाम पर, राम के नाम पर, परमात्मा के नाम पर दे दे। यह गलत है।

आप दे रहे हैं। आपका देना भी गलत है और लेना तो हद से अधिक गलत है। देना क्यों गलत है? आपकी तो भावना है कि मालिक के भक्त को दे रहे हैं लेकिन वास्तव में होता कई बार ये है कि, वो भक्त जी गए, नशा किया, किसी को मार दिया, तो बताइए, क्या आपने घर बैठे-बिठाए पापों की गठड़ी नहीं खरीद ली? अरे! दान करना है, सारे धर्म कहते हैं करो और हम भी इस पक्ष में हद से अधिक हैं लेकिन बिचोलिया मत डालिए। बिचोलिया नहीं होना चाहिए। अरे! बिचोलिया तो विवाह-शादी में नहीं छोड़ता। न लड़की होती है न लड़का , बीच में ऐसे ही खड़का। इधर से भी कहता इतने दे दो, उधर से भी अंगूठी। बड़ी वाली अंगुली करता है कि मोटी आ जाए। अगर वो अकड़ जाए तो शादी नहीं होने देता। तो क्या भगवान जी अनजान हैं? उन्हें पता नहीं कि बिचोलिया तो विवाह-शादी में रगड़ा-रगड़ी कर रहा है, तो मेरे जो बीच में पड़ेगा लेने-देने के चक्कर में, क्या वो नहीं करेगा?

दान कहां करना चाहिए? आप अपने आस-पास देखें, कोई ऐसा गरीब आदमी जो बीमारी से तड़प रहा है। गरीबी के कारण वह अपना इलाज नहीं करवा सकता। कोई इंसान भूख से तड़प रहा है उसके यहां खाने को कुछ नहीं है। किसी के पास सिर ढकने के लिए मकान नहीं है और उस परिवार के पास कोई गुंजाइश भी नहीं है, तो आप उनसे खुद मिलें और उन जरूरतमंदों की अपने हाथों से खुद मदद करें। भूखे-प्यासे को रोटी-पानी देना, बीमार जीव-प्राणियों का इलाज करवा देना और इसी प्रकार अन्य जरूरतमंद व्यक्तियों या जीव-प्राणियों की तन-मन-धन से खुद अपने हाथों से सेवा करना इस कलियुग में सबसे बड़ा दान है।

आज का युग देखते हुए अगर आप किसी के बच्चों को शिक्षा दिलवा दें वो भी एक दान में ही आ जाता है क्योंकि कोई भी अनपढ़ को लूट सकता है। कोई भी आया मालिक की झूठी बात सुनाई और पैसे लेकर चलते बने। नहीं तो श्राप देने का डरावा देते हैं। सच्चाई यह है कि मालिक का जो भक्त है वो कभी किसी को श्राप देता है तो जो बच्चों का बाप (मालिक, ईश्वर) है क्या वो उससे प्यार करेगा? सवाल ही पैदा नहीं होता। अगर कोई पढ़-लिख जाए तो वो कम से कम समझेगा तो सही। पढ़ाई-लिखाई रूहानियत में भी जरूरी है।

महापुरुषों के रूहानी ग्रंथ पढ़ सकते हैं। पढ़कर उस पर अमल कर सकते हैं। इसी तरह से आप किसी बीमार को जिसको खून की आवश्यकता है, अगर आपका ब्लड-गु्रप उससे मिलता है, तो आप उसे खून-दान दे सकते हैं। तो भाई! आपने किसी की जान बचाने में सहायता की, करने वाला तो मालिक है। तो वो जब तक जीएगा आपको दुआएं, आशीर्वाद देगा और यकीन मानिए आत्मा से निकली हुई दुआ या बद्दुआ, आशीर्वाद या श्राप जरूर लगता है, कोई उससे बच नहीं सकता। इसलिए ये भी सच्चा दान है।

भाई! ये मन भरमाता रहता है और माया भटकाती है। माया के दो रूप हैं:-प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष।

प्रत्यक्ष में:-धन-दौलत, जमीन-जायदाद, कोठियां-बंगले, बगीचे इत्यादि

अप्रत्यक्ष:-दुनिया में जो झूठ है वो हमें सच लगता है, हम उसे छोड़ना नहीं चाहते और जो सच है उसे माया का पर्दा हमें झूठ दिखाता है। दुनिया में सभी चीजें झूठी है। हर किसी ने एक दिन जाना है। फिर भी इनमें मोह-प्यार है। राम-नाम, अल्लाह, मालिक, परमात्मा की याद बिल्कुल सच है और लोग इसे फालतू की लैक्चरबाजी का नाम देते हैं। ये सब माया का ही चक्कर है। सच को झूठ और झूठ को सच करके इंसान को भरमाती रहती है।
आगे आया है:-

साथ ना जाए कुछ भी धन जो कमाए,
जिसके लिए सारी उमर गवाए।
सच्चा सार धन राम-नाम का कमाना।
इस बारे में बताया है:-

केवल नाम का धन ही निहचल है और सब धन नाशवान हैं। इस धन को न आग जला सकती है न पानी बहा सकता है और न ही चोर उचक्का चुरा सकता है।
एको निहचल नाम धनु होरु धनु आवै जाइ।
इसु धन कउ तसकरु जोहि न सकई ना ओचका लै जाइ।

भाई! जो भी धन-दौलत कमाता है, परिवार वाले उसे बांट लेते हैं लेकिन उस दौलत के लिए जो बुरे कर्म किए, जो पाप किए क्या उनमें से भी कोई हिस्सा बंटवाएगा? आप पाप-जुल्म करके लाते हैं, घर-परिवार में लुटाते हैं। अरे! पाप जुल्म से कमाई दौलत धीमा जहर है। असर तो करेगी लेकिन धीरे-धीरे करेगी क्योंकि कोठियां बन रही हैं, कारें आ रही हैं, आपको पता नहीं चल रहा लेकिन आपको आत्मिक चैन नहीं होगा, संतुष्टि नहीं होगी। आपको बेचैनी घेरे रखेगी। चैन-सुकून की नींद आपको नहीं आएगी। जो पाप-जुल्म की कमाकर लाता है इससे आपसी प्यार घर में दिनों-दिन कम होता चला जाता है, नफरतें बढ़ती हैं, दु:ख बढ़ते हैं तो ये निशानियां हैं। तो बुरे कर्म मत कीजिए।

करना जो शुभ काम आज ही करले,
फिर क्या करे जब आएगी परले।
कहें ‘शाह सतनाम जी’ होना पड़ेगा रवाना।

परले से मतलब है कि जब आपकी मौत आ गई संसार जिंदा है या नहीं आपके लिए तो परले आ गई। समय भी निश्चित नहीं है। हर चीज की गारंटी है केवल तेरी गारंटी नहीं है। पता नहीं भाई! वो समय कब और कहां आ जाए। वो समय आने से पहले-पहले भलाई नेकी कर, अच्छे कर्म कर, प्रभु को याद कर वरन् वो समय आने पर सिवाय पश्चाताप के तेरे हाथ कुछ नहीं लगेगा क्योंकि स्वास तो खत्म हो जाएंगे।

‘तब पछताए होत क्या,
जब चिड़िया चुग गई खेत।’

जब संभाल करनी चाहिए थी तब संभाल नहीं की। अब पछताने से कोई फायदा नहीं है। भाई! समय की कदर कीजिए। समय और समुद्र की लहर कभी किसी का इंतजार नहीं करते। समय के साथ-साथ हमें चलना पड़ता है। समय की कदर हमें करनी होगी तभी हमें खुशी अनुभव होगी। हम आनंद, लज्जत हासिल कर सकते हैं।

इस बारे में बताया है:-

संतों का वचन है कि अब ही करो फिर का भरोसा न रखो। जो अब नहीं करते और आज का काम कल पर पा देते हैं वो कभी भी नहीं करते। समय की कदर करो। समय और समुद्र की लहर कभी किसी का इंतजार नहीं करते।

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में प्रलय होएगी, फेर करेगा कब॥
काल करे सो आज कर, आज है तेरे हाथ।
काल-काल तू क्या करे,
कल है काल के हाथ॥

जो मालिक के लिए, अच्छे-नेक कर्म करने के लिए तू सोचता है कि कल करूंगा, वो आज से शुरू कर और आज करने वाला है वो अब यानि अभी से शुरू कर दे क्योंकि मौत का समय पता नहीं है पर वो निश्चित जरूर है और भाई! कल कल क्या करता है, मैं कल को करूंगा, मैं परसों करूंगा। कल का समय तो तेरे हाथ में है ही नहीं। वो तो काल के गर्भ में छुपा हुआ है, तेरे लिए अच्छा है या बुरा है वो मालिक जाने, तू जान नहीं पाएगा। तो जरूरी है, जो समय तेरे हाथ में है उसका सद्उपयोग कर, जो गुजर गया उसके लिए अधिक रो मत क्योंकि रोने से वो वापिस नहीं लौटेगा। पिछला जो समय गुजरा वो तो गुजर गया, रोते-रोते ये भी गुजर जाएगा। पश्चाताप करना है तो जो बाकी है उसमें सच्चे दिल से मालिक से दुआ, प्रार्थना, अरदास कीजिए, बुराइयों से तौबा कीजिए। आने वाले समय में नेकी-भलाई करते जाइए तो वो दया का सागर, रहमत का दाता आपको जरूर क्षमा करेगा क्योंकि यही उसमें और इंसान में फर्क है।

जब हद से कोई गुजर जाता है तो उसकी बे-आवाज तलवार चलती है। उसकी तलवार चलती का पता नहीं चलता पर जब चलकर चली जाती है, शोर-शराबा रह जाता है, हर किसी को पता चल जाता है। इसका डॉक्टरी इलाज नहीं है। ये कहीं से भी ठीक नहीं हो सकता। ये ला-ईलाज है। ये चारपाई पर ही रहेगा, ये बोल नहीं पाएगा, ये उठकर रफा-हाजत नहीं जा पाएगा। ऐसे हजारों केस देखें हैं। तो भाई! ऐसी उसकी तलवार चलती तो है लेकिन समय लगता है। क्योंकि वो (मालिक) सोचता है कि इंसान को सर्वश्रेष्ठ बनाया है, हो सकता है इसे कभी न कभी समझ आ जाए और ये बुरे कर्म करने छोड़ दे, तौबा कर ले। बुरे कर्मों को छोड़ कर, नेकी-भलाई की तरफ चल पड़े।

अगर ऐसा इंसान करे तो यहां रहते हुए भी स्वर्ग-जन्नत से बढ़कर खुशियां मिल सकती हैं। तो दुआ, प्रार्थना अरदास के लिए नाम, शब्द, कलमा लीजिए। उसके लिए कोई पैसा नहीं लगता, न चढ़ावा चढ़ता है, न धर्म बदलना है। तरीका बताना हमारा फर्ज है, उस पर चलना आपके हाथ में है।
हमारा फर्ज आपको आवाज देना है कि जागते रहिए, समय बहुत भयानक है, आने वाला समय भी भयानक है, स्वार्थ बढ़ रहा है। इस स्वार्थ से, इन बुरे कर्मों से बचिए। आप खुदमुख्तयार हैं।

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