ईश्वर की खोज कहाँ से कहाँ तक -सम्पादकीय
दुनिया में दो प्रकार के लोग हैं। एक आस्तिक और दूसरे नास्तिक। ईश्वर के प्रति जो लोग समर्पित हैं, वो उसकी खोज में, उसके ध्यान में लगे रहते हैं और अपने आस-पास उसको महसूस भी करते हैं। वे हमेशा उसको पाने, खोजने में प्रयासरत रहते हैं और उनकी खोज का मार्ग बाहरी न होकर भीतरी मार्ग रहा है। इसमें हृदय की निर्मलता, विचारों की पवित्रता और सिर्फ और सिर्फ उसी एक का ही सहारा लेकर चलने की जरूरत होती है।
जैसे मीरा बाई उसकी टेक लेकर चली तो उसे मिल गया। धन्ने जट्ट ने भोले भाव से खोजा, उसे मिल गया। आम धारणा है कि ईश्वर की ओर साधारण लोग या कम पढ़े-लिखे ही चलते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। उसको जिसने खोजा, उसे वो मिल जाता है। पढ़े-लिखे या बड़े राजा-महाराजाओं ने भी उसकी खोज की और उसे पाया है। राजा भृतहरि, राजा जनक जैसे उदाहरण हमारे सामने हैं। जो भी कोई उसका खोजी होगा, वो उसे खोज ही लेगा। तो क्या ईश्वर भी खोज का विषय है? क्यों नहीं! अगर खोज का विषय नहीं होता, तो भक्त तो तन-मन से लगे रहते हैं, फिर आज की सार्इंस की दिलचस्पी न होती।
यदा-कदा सार्इंस की थ्यौरी (विज्ञान के सिद्धांत) में भी ईश्वर की चर्चा छिड़ ही जाती है। क्योंकि वो कितना भी इस चीज से दूर जाएं, लेकिन कोई तो एक शक्ति है, जो उन्हें अपनी ओर आकर्षित करती रहती है। यही कारण है कि जब भी कोई अपनी थ्यौरी (सिद्धांत) में भगवान की चर्चा करता है, तो पूरी दुनिया उस पर गौर करती है। अब सार्इंस के द्वारा भगवान के बारे में नया पत्र रिलीज हुआ है। जैसे अभी 8 मार्च को भगवान के बारे नई अवधारणा को जन्म दिया। हार्वर्ड युनिवर्सिटी के भौतिक विज्ञानी डॉ. विलीसून ने अपनी शोध प्रस्तुत की। उसने भगवान के प्रति अपनी खोज का नया फार्मूला बताया, जिसे ‘फाईन टयूनिंग अर्ग्युमेंट’ का नाम दिया है।
उनके इस शोध पत्र को पूरी दुनिया में पेश किया गया, जिसने दुनिया के मीडिया में पूरी सुर्खियां बटोरी। भगवान के लिए उसकी खोज का केन्द्र बिंदु ब्रह्मण्ड था। दूसरे शब्दों में कहें तो ब्रह्माण्ड की अद्वितीय रचना उसकी सोच को भगवान तक ले गई। पूरे सौर मण्डल का उसने गहराई से विश्लेषण किया और आखिर इस नतीजे पर पहुंचा कि केवल भगवान ही चीजों को इस प्रकार बना सकता है। उसके ‘फाईन टयूनिंग अर्ग्युमेंट’ के अनुसार ब्रह्मण्ड के भौतिक नियम धरा पर मनुष्य जीवन के लिए बड़े सटीक हैं और जो गणित की थ्यौरी से पूरे मेल खाते हैं।
उसने गणितीय सिद्धान्तों को आधार बनाया, इसका विश्लेषण किया और दुनिया को बताया कि भगवान जैसा कोई गणितिज्ञ हो ही नहीं सकता। भगवान ने ब्रह्मण्ड को बहुत सुन्दर व शक्तिशाली बनाया है। उसका संतुलन भी बड़े सुचारू रूप से कायम कर रखा है और यह सब एकदम से नहीं हुआ। मतलब भगवान ने बड़े इत्मीनान के साथ इसको डिजाईन किया है। उसके ‘फाईन टयूनिंग अर्ग्युमेंट’ का सार था कि ‘भगवान ने हमें यह प्रकाश दिया है, ताकि हम उसको फॉलो करें और सर्वश्रेष्ठ करें।’ ये है सार्इंस की भगवान के लिए एक नई खोज। उनकी यह खोज महत्वपूर्ण भी है। भगवान के लिए सोचने का, उसको समझने का उनका यह नजरिया है, अनुभव है। वो अपनी इस खोज में कहाँ से कहाँ तक गया, ये उनका निजी अनुभव है और जो उसने दुनिया को सांझा कर दिया।
बात है खोज की। भगवान के प्रति लग्न की। जिसने खोजा उसको वो मिल गया और जिसको जहां उसका पता मिला, वो वहीं चला गया। सन् 1948 में लोगों को जब पता चला कि भगवान को पाने का पवित्र स्थान सरसा में है, तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। जब लोगों ने देखा कि गुरु परम्परा के अनुसार शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने सच्चा सौदा बनाया है, तो वो दौड़े चले आए। शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने अपने परमात्मा को खोजने का अन्दुरुनी मार्ग बताया और नाम-शब्द की संजीवनी प्रदान की, तो लोगों के वारे-न्यारे हो गए। आज वो ही सच्चा सौदा पूरे विश्वपटल पर रूहानी केन्द्र के रूप में चमक रहा है और पूज्य गुरु संत डॉ. एमएसजी के पावन मार्ग-दर्शन में करोड़ों लोग अपने सतगुरु के दर्श-दीदार व आलौकिक प्यार से निहाल हो रहे हैं। धन्य-धन्य है ऐसा सतगुरु। हर कोई अपने सतगुरु की सिफ्त गा रहा है और उसकी सलामती के लिए अपने जिन्दाराम से दुआ मांगते हैं। जैसे सूफी फकीर सुल्तान बाहू ने भी कहा है:
अल्फ अल्लाह चम्बे दी बूटी, मुर्शिद मन विच लाई हू,
नबीं असबात दा पानी मिलिआ, हर जगे हर जाई हू
अंदर बूटी मुश्क मचाईआ, जां फूलन पर आई हू
युग-युग जीवे कामिल मुर्शिद बाहू, जिस एह बूटी लाई हू।