सब्जियों की पत्तियों पर बनी आकृतियों का सच
हरियाणा में 90 के दशक में यह भ्र्रम खूब फैला था कि सब्जियों के पौधों की पत्तियों में सांप के आकार की आकृति (सुरंग) कोई अपशगुन है। लोगों ने ऐसे सुरंग या लाइन वाली पत्तियों के पौधों पर लगी सब्जियां भी खाने से परहेज करना शुरू कर दिया था। वैज्ञानिक इसे कोई अपशगुन का सूचक नहीं मानते, बल्कि यह तो माइनर कीट की सुंडी के पत्ती खाने से बनी सुरंग होती है।
उस दौर में तोरई समेत अन्य कई हरी सब्जियों, फसलों की पत्तियों में सांप जैसी आकार की सुरंगों को देखकर किसान, सब्जी उत्पादक, उपभोक्ता और यहां तक कि आम आदमी भी हैरान होता था। सभाी लोग इसे कोई अपशगुन मानते थे। वैज्ञानिकों और मीडिया द्वारा इस भ्रम को स्पष्ट करने में लगभग एक महीने का समय लगा कि लीफ माइनर कीट की सुंडी द्वारा खाने के कारण यह सुरंग बन जाती है। मतलब सांप के आकार की पौधों की पत्तियों में सुरंग केवल कीड़ों के कारण होती है।
प्रोफेसर राम सिंह, पूर्व निदेशक, मानव संसाधन प्रबंधन और प्रमुख, कीट विज्ञान विभाग, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार ने हरियाणा सहित भारत में कीट द्वारा पत्तियों में जिग-जैग सुरंग बनने की घटनाओं पर पर्याप्त जानकारी जुटाई है। उनका कहना है कि उत्तर भारत में लीफ माइनर्स कीट की 50 से अधिक प्रजातियां मौजूद हैं। जो 100 से अधिक पौधों की प्रजातियों की पत्तियां में सुरंग प्रक्रिया से नुकसान पहुंचाती हैं।
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पौधों की प्रजातियां
प्रो. सिंह के मुताबिक भारतीय सरसों,
- गोभी,
- शलजम,
- तरबूज,
- टमाटर,
- बैंगन,
- कस्तूरी तरबूज,
- ककड़ी,
- तोरई, लौकी
- या अन्य खीरे की फसल, देशी बीन, फ्रेंच बीन, मटर, लोबिया, भिंडी, प्याज, चीनी गोभी, लहसुन, मूंगफली, चेनोपोडियम, गुलदाउदी, क्रोटेलारिया, सूरजमुखी, अरंड, आलू, सोंचस (सोथिस्टल), सेनेसियो (ग्राउंडसेल), बरसीम घास, एंटीरिनम, नास्टर्टिनम और अलसी की पत्तियां में सुरंग आसानी से देख सकते हैं।
भारत में इस कीट की उपस्थिति
यह कीट आंध्र प्रदेश, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडू, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में व्यापक रूप से मौजूद है।
पत्तियों में इन कीटों का जीवन-चक्र
हरियाणा सहित उत्तरी भारत में आम तौर पर दो प्रजातियां, क्रोमैटोमिया हॉर्टिकोला और लिरियोमायजा ट्राइफोली आम हैं। वयस्क दो पंखों वाली मक्खियां होती हैं, जिनमें भूरे काले मेसोनोटम और पीले रंग के अग्रभाग होते हैं। यह दिसंबर से अप्रैल या मई तक सक्रिय रहती हैं। माना जाता है कि शेष वर्ष मिट्टी में पुतली (प्यूपा) की अवस्था में बीत जाता है। मक्खियां दिसंबर की शुरूआत में निकलती हैं और पत्ती के ऊतकों में अंडे देना शुरू कर देती है।
अंडे की अवधि 2-3 दिन, सुंडी की अवधि 5 दिन (तीन लार्वा इंस्टार) और प्यूपा की अवधि 6 दिनों की होती है। इनका जीवन-चक्र 13-14 दिनों में पूरा होता है। यह कीट दिसंबर से अप्रैल-मई तक कई पीढ़ियों से गुजरता है। मक्खियों को मेजबान पौधों के आसपास उड़ते हुए या पत्ती की सतहों पर तेजी से चलते हुए पाया जा सकता है। जब वयस्क मादाएं अंडे देती हैं तो वे अपने दांतेदार ओविपोसिटर का उपयोग करके आमतौर पर पत्ती के ऊपरी हिस्से में एक छेद बनाती हैं। अंडे के धब्बे अंडाकार होते हैं और खाने वाले धब्बों से भेद करना मुश्किल होता है।
पत्तों में इन सुरंगों से नुकसान के लक्षण
प्रो. राम सिंह का कहना है कि पत्तों की निचले और ऊपरी परतों (एपिडर्मिस) के बीच सुंडी द्वारा बनाई गई बड़ी संख्या में सुरंगें प्रकाश संश्लेषण और पौधों की उचित वृद्धि में हस्तक्षेप करती हैं, जिससे वे क्षतिग्रस्त दिखते हैं। जब सुंडी अंडे से बाहर निकलती है तो पत्ती में खाना शुरू कर देती है। वह मेसोफिल ऊतक में नीचे की ओर जाती है, जहां व्यापक सुरंग के कारण क्षति होती है। जिससे पत्ती की बाहरी परतें बरकरार रहती हैं। विभिन्न पौधों की पत्तियों में नुकसान पत्ती की स्पंजी मेसोफिल परत में सुंडी की वजह से क्षति पहुंचना और मादाओं के भोजन और पंचर के कारण होता है। फीडिंग पंचर, जिसे स्टिपलिंग कहा जाता है।
यह प्रकाश संश्लेषण को कम करता है और पौधों के रोगजनकों के लिए प्रवेश स्थल बना सकता है। सुंडी खनन भी प्रकाश संश्लेषण दर और ऊतक चालन को कम कर सकता है। युवा सुंडी पत्तियों में जिग-जैग गैलरीज बनाती है। प्यूपा बनने से कुछ समय पहले, विकसित सुंडी पत्ती में एक दरांती के आकार के निकास छेद को अपने मुंह से काट देती है। लगभग एक घंटे के बाद सुंडी पत्ती पर रेंग कर जमीन पर गिर जाती है। यह सुबह के समय होता है। सुंडी प्यूपा बनने के लिए मिट्टी में उपयुक्त स्थान खोजती है। प्यूपा से मक्खियां दिसंबर की शुरूआत में निकलती हैं।
प्रो. राम सिंह
– संजय कुमार मेहरा
गुरुग्राम।