सहयोग का पाठ पढ़ाते हैं ये मूक पशु-पक्षी

विकासवाद के प्रणेता चार्ल्स डार्विन के मतानुसार प्रकृति में हर जगह व हर क्षण अस्तित्व हेतु संघर्ष चल रहा है। इस संघर्ष में वही जीव अपना अस्तित्व कायम रख पाते हैं जो योग्यतम होते हैं किन्तु प्रकृति में ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं जो यह सिद्ध करते हैं

कि संसार-चक्र परस्पर संघर्ष व उपयोगितावाद के सिद्धांत पर नहीं बल्कि परस्पर विश्वास, आत्मीयता, सहयोग तथा ’जीयो और जीने दो‘ के सिद्धांत से संचालित है। ये उदाहरण शायद यह सिद्ध करना चाहते हैं कि सृष्टि का मुकुटमणि व परमात्मा का वरिष्ठ राजकुमार कहलाने वाला मनुष्य भले अपने अस्तित्व हेतु परस्पर संघर्ष कर उपयोगितावाद में विश्वास करें किन्तु नीच कहलाने वाले ये पशु इस नीचता से ऊपर हैं।

आइये इनकी दोस्ती व परस्पर सहयोग से हम भी कुछ सीखें।

  • जमीन पर चलने वाले चीतल और पेड़ पर रहने वाले बंदर की पारस्परिक मित्रता बड़ी दिलचस्प होती है। इनकी यह दोस्ती देखकर तब मानव अपना सिर झुका देता है जब नि:स्वार्थ भाव से बंदर पेड़ से फल गिराते रहते हैं और उनका मित्र चीतल उन्हें आराम से खाता है।
  • राजगीध किसी शिकार को पा लेने पर भी अकेले नहीं खाता। आकाश में सांकेतिक गति से उड़ान भरते हुए दूर-दूर तक अपने साथियों को मृतक भोज की दावत देता है। यह बात और है कि उसके पुरस्कार स्वरूप उसे ही भोग की शुरूआत करने व शरीर के कोमल भाग को खाने का लाभ मिलता है।
  • शुतुर्मुर्ग पाश्चात्य संस्कृति में प्रचलित ’बेबी सिटिंग‘ परम्परा (एक निश्चित वेतन लेकर दूसरे के बाल-बच्चों की देखरेख करना) का मूर्त संचालक हैं। शुतुर्मुर्ग की मादा अपने तथा अपनी जाति के बच्चों के अतिरिक्त विभिन्न जातियों के अनेकों बच्चों की देखभाल करती है किन्तु कितनी महानता के बदले में कुछ भी नहीं लेती? है न इसका जीवन ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के आदर्श से ओत-प्रोत?
  • संयुक्त परिवार में वृद्धजनों का यह उत्तरदायित्व होता है कि वे अपने अधीनस्थों व वंशजों की उचित सेवा-सुश्रुषा करें। डाल्फिन जाति की मछलियों में यह परम्परा चिरकाल से जारी है। कोई मादा डाल्फिन जब गर्भावस्था में होती है तब उसी जाति की वृद्ध माता बहू और नाती की सुरक्षा के लिए उन्हें अपनी पीठ पर तब तक चढ़ाये घूमती है जब तक शिशु का जन्म न हो जाएं।
  • शेर जैसा खूंखार जीव भी आपातकाल में सहयोग करना नहीं भूलता। कदाचित किसी प्रसूता शेरनी की मृत्यु हो जाए तो पालिका शेरनी सगी मां की तरह नवजात सिंह शावक का लालन-पालन करती है।
  • बोनीलिया जाति की मादा अपने पेट की थैली में अपने शौहर को आजीवन सुरक्षित रखती है। वहीं थैली में ही उसे आहार, विश्राम आदि सब कुछ मिलता रहता है। यह उदाहरण रूप व सौन्दर्य के उपासक मानवीय दंपति के मुंह पर तमाचा के समान है कि आपसी प्रेम का आधार स्वार्थ ही नहीं पर कल्याणार्थ स्वकष्ट सहन भी है।
  • बाल-बच्चों का लालन-पालन सिर्फ मादा का ही नहीं बल्कि पुरुष का भी उत्तरदायित्व है। फ्रांस में पाया जाने वाला ’मेल मिडवाइफ टोड‘ नामक मेंढक इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाता है जो मादा को बच्चे सेने का कष्ट नहीं देता। वह तब तक अण्डे को अपनी टांग से चिपकाए रखता है जब तक उनसे बच्चे निकल न जाएं।
  • जिराफ व जेबरे की दोस्ती भी परस्पर सहयोग का अनोखा उदाहरण है। जेबरा जिराफ को खाना खिलाता है, आगत संकट की जानकारी देता है और कभी-कभी अपने प्राण देकर भी अपने मित्र की रक्षा करता है।
  • पानी में तैरते दरियाई घोड़े तथा उनकी पीठ पर बैठी चिड़ियों के मध्य की दोस्ती भी अनुकरणीय है। घोड़े की पीठ पर बैठी इन चिड़ियों को जहां एक ही साथ सैर करने तथा आहार उपलब्ध होने का लाभ मिलता है वहीं दरियाई घोड़े के शरीर व मुंह पर लगी गन्दगी की सफाई भी ये चिड़िया कर देती हैं। है न परस्पर सहयोग का उदाहरण?

उपर्युक्त उदाहरण यह स्पष्टरूपेण बतलाते हैं कि सृष्टि का कार्य-व्यवहार परस्पर संघर्ष से नहीं परस्पर सहयोग से संचालित है। क्या परस्पर घृणा व द्वेष की आग में जल रहा मानव निरीह कहलाने वाले प्राणी ‘पशु’ से इतना भी सीख सकेगा।
-विपिन कुमार

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