हम थे, हम हैं, हम ही रहेंगे और हम ही हैं को साक्षात करती साखी -सत्संगियों के अनुभव
पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत
बहन प्यारी इन्सां पत्नी सचखण्डवासी दिवान चन्द इन्सां, निवासी सरसा, जिला सरसा (हरियाणा), पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपने पर हुई रहमतों को इस तरह ब्यान करती हैं-
सन् 1992 की बात है, हम 30-35 बहनें दरबार (शाह मस्तान शाह सतनाम जी धाम व मानवता भलाई केन्द्र डेरा सच्चा सौदा (शाह मस्ताना जी धाम) सरसा के खेतों में नरमा चुगने की सेवा करने आई हुई थी। वहां पर जिम्मेवार भाई हमें कहने लगे कि आप सब काम जल्दी खत्म कर दो, फिर आपां सब पूज्य हजूर पिताजी के दर्शन करने चलेंगे। अगर आप भावना से सेवा करोगे तो हो सकता है कि पिता जी से बात करने का भी मौका मिल जाए! मेरे मन में ख्याल आया कि पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज तो मुझे बहुत अच्छे-से जानते थे और पूज्य हजूर पिता जी तो मुझे जानते ही नहीं, फिर वो मेरे से क्या बात करेंगे?
पर मैं सेवा में लगी रही। सभी बहनों ने बहुत दिल से नरमा चुगने की सेवा की और शाम को 4 बजे तक ही सारा काम निपटा दिया। हम सभी बहनें अपने प्यारे मुर्शिद के पावन दर्शनों के लिए शाह मस्तान शाह सतनाम जी धाम व मानवता भलाई केन्द्र डेरा सच्चा सौदा (शाह मस्ताना जी धाम) सरसा में आ गर्इं। उस समय मुझे एक अलग-सी बेचैनी ने घेर लिया था। हुक्मानुसार हम सभी सेवादार भाई-बहनें तेरावास के अन्दर वाले अांगन में चले गए। मेरे मन में बार-बार विचार आ रहा था कि पूजनीय परमपिता जी तो हमेशा मुझे पूछते थे कि ‘प्यारी, कितने क्यारे चुगे हैं?’ और पूज्य हजूर पिताजी तो मेरा नाम भी नहीं जानते! इन्हीं विचारों के चलते मैं निराश होकर सभी बहनों के पीछे बैठ गई कि तुझे किसने पूछना है!
हम सेवादार बहनों के अलावा और भी कई बहन-भाई वहां बैठे हुए थे। इतने में पूज्य हजूर पिता जी सीढ़ियों से उतरते हुए नीचे आंगन में आकर कुर्सी पर विराजमान हो गए। पूज्य हजूर पिताजी ने सेवादारों से पूछा, ‘भाई, आ गए सारे?’ फिर पूज्य हजूर पिताजी ने सबको अपना पावन आशीर्वाद बख्शा और सबकी कुशलता पूछी। उसके बाद हम सभी सेवादार बहनों को अपना पावन आशीर्वाद देते हुए फरमाया, ‘बेटा! सभी बीबियां आ गई?’ फिर पूछा, ‘आज तुम्हारे साथ प्यारी नहीं गई नरमा चुगने?’ सुनते ही मुझे मानो एकदम करंट-सा (करारा-सा झटका)लगा। आगे बैठी बहनें मेरी तरफ इशारा करके कहने लगी कि पिता जी, प्यारी गई थी नरमा चुगने, वह पीछे बैठी है। फिर पिताजी ने पूछा, ‘कहां बैठी है?’
मुझे कोई होश नहीं था, किसी ने मुझे हाथ लगाया और मैं खड़ी हो गई। मेरा शरीर मानो सुन्न-सा हो गया हो! मुझे पिताजी के चेहरे के अलावा न तो कुछ और दिखाई दे रहा था और न ही उनकी आवाज के बिना कुछ और सुनाई नहीं दे रहा था। मेरे खड़े होते ही घट-घट के जाननहार पूजनीय परमपिता जी के प्रकट स्वरूप पूज्य हजूर पिता जी ने फरमाया, ‘प्यारी! कितने क्यारे चुगे हैं?’ ना एक लफ्ज इधर, ना एक लफ्ज उधर। हू-ब-हू, वही शब्द जो पूजनीय परमपिता जी मुझसे कहा करते थे! मेरी आंखों से अश्रुधारा बह निकली! मैंने कहा कि पिताजी, आज तो 3-4 क्यारे चुगे हैं। मेरी सारी बेचैनी, सारी चिंता आदि सब एक पल में ही दूर हो गई और अन्दर वैराग्य चल पड़ा।
पिता जी ने अपनी मौज में फरमाया, ‘बेटा, बहुत बढ़िया किया। नरमा चुगने जाया कर।’ पूज्य हजूर पिता जी के उक्त वचनों ने मेरा दिल तो हल्का किया ही और साथ ही मेरे सारे भ्रम भी तोड़ दिए। सच्चे सतगुरु जी ने अपने पावन वचन कि ‘हम थे, हम हैं और हम ही हैं’, साकार कर दिए। मैं वैराग्य में थी। पूज्य हजूर पिताजी ने फिर फरमाया, ‘बेटा, कोई भ्रम है तो निकाल ले।’ मैंने दोनों हाथ जोड़कर पिताजी से अर्ज की कि अब कौन-सा भ्रम! जो परमपिता जी हैं, वो ही आप जी हो। मुझे तो जो कुछ परमपिता जी से मिला, वो ही अब आप जी से मिल रहा है, आप जी ने मुझे कोई कमी नहीं छोड़ी। परमपिता जी तो आप ही हो। बस फिर क्या था, मेरे अन्दर वही प्रेम जो पूजनीय परमपिता जी के लिए था, वही तड़प पूज्य हजूर पिताजी के लिए भी जाग गई।
एक बार पूज्य हजूर पिता जी जीवोद्वार के लिए कई गांव-शहरों में सत्संग करने गए हुए थे। करीब महीना हो गया था मुझे दर्शन किए। मैं बार-बार अरदास कर रही थी कि पिताजी, अब तो आ जाओ। मैं पूज्य हजूर पिताजी के स्वरूप के आगे खड़ी होकर अर्ज करने लगी कि पिता जी, अब तो आ जाओ! दर्शन किए एक महीना हो गया है, अब और ना तरसाओ! मैं पूरी तड़प से अर्ज कर रही थी कि पूज्य पिता जी के स्वरूप से आवाज आई, ‘बेटा, दर्शन करने हैं तो सड़क पर आ जा।’ सरसा के कीर्ति नगर में मेन रोड से 3 घर छोड़कर हमारा घर है। फिर क्या था! मैंने भागते-भागते चुनरी उठाई और नंगे पैर ही सड़क की तरफ भाग ली। अभी मैं सड़क पर पहुंची ही थी कि पूज्य हजूर पिता जी की गाड़ी आ गई।
गाड़ी काफी धीरे चल रही थी और मेरे पास आकर तो और भी धीरे हो गई। मैंने जी-भरकर अपने सतगुरु प्यारे पूज्य हजूर पिता जी के दर्शन किए और पिता जी ने भी मुस्कुराते हुए दोनों हाथों से मुझे अपना पावन आशीर्वाद दिया। मैं दर्शन करके और अपने मुर्शिद प्यारे को इतना पास से देखकर निहाल हो गई। पूज्य हजूर पिता जी की गाड़ी के साथ काफिले की और भी गाड़ियां थी। मगर उस समय पूज्य सतगुरु हजूर पिता जी के आने का किसी को कुछ पता नहीं था और ना ही किसी को कुछ बताया गया था। मैं अपने मुर्शिद जी के दर्शन करके उन्हीं का धन्यवाद कर रही थी, जिन्होंने मेरी तड़प को सुनकर मुझे दीवार पर लगे फोटो-स्वरूप से स्वयं ही बोलकर बुलाया।
हो सकता है कि किसी को जानकर अचम्भा (आश्चर्य) होगा कि कभी तस्वीरें भी बोलती हैं! मगर वो ही जानें, जिसने हू-ब-हू देखा हो। पूज्य हजूर पिता जी के मुझ पर हुए परोपकारों को बताना या लिखना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। बस हम तो अपने सतगुरु प्यारे पूज्य हजूर पिताजी डॉ. एमएसजी से यही अरदास कर सकते हैं कि जिस तरह हमारी लगाई है, ऐसे ही पीढ़ी-दर-पीढ़ी को अपने पवित्र चरणों से लगाए रखना और हमारी ओड़ निभा देना जी।