What is Dementia

वृद्धावस्था को कष्टप्रद बना देती है डिमेंशिया की बीमारी ( What is Dementia )

मस्तिष्क हृास या डिमेंशिया वृद्धावस्था की एक ऐसी बीमारी है जो रोगी की याददाश्त को धीरे-धीरे कम करने लगती है। डिमेंशिया एक सामान्य रोग है जो आयु के अनुसार धीरे-धीरे रोगी को अपने गिरफ्त में लेती चलती है। 65 वर्ष से 80 वर्ष की आयु वालों में इस बीमारी को अधिकांशत: होते देखा गया है। स्त्री और पुरूष दोनों में ही यह बीमारी हो सकती है।

डिमेंशिया की बीमारी होते ही रोगी अपना चश्मा, चाबी या अन्य वस्तु को रखकर भूलने लगता है। परिचित व्यक्ति को भी रोगी भूल जाता है। भोजन, चाय, नाश्ता करने की बात तक रोगी को याद नहीं रहती। रोगी की विचार क्षमता में धीरे-धीरे कमी होने लगती है। छोटी-छोटी समस्याओं पर वह झुंझलाने लगता है और भूल जाने की आदत के कारण वह तनावग्रस्त रहने लगता है।

जब बीमारी अधिक बढ़ जाती है, तब रोगी की बातचीत असंगतपूर्ण होने लगती है। डिमेंशिया के रोगी कभी-कभी किसी एक ही बात को बार-बार दोहराते रहते हैं। रोग की अधिकता के कारण रोगी मलमूत्र त्याग में भी उचित-अनुचित का ध्यान नहीं रख पाता। वह प्राय: कपड़ों में भी मलमूत्र त्याग करने लगता है।

Also Read: वृद्धावस्था को बनाएं सुखमय ?

भावनात्मक स्तर पर भी रोगी छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करने लगता है। यहां तक कि वह गाली-गलौज से भी नहीं चूकता। कभी-कभी रोगी उदास होकर रोने भी लग जाता है। रोगी की शारीरिक क्षमताएं भी धीरे-धीरे घटने लग जाती हैं। बीमारी की अधिकता के कारण रोगी का चलना फिरना भी बंद हो सकता है।


डिमेंशिया रोग के रोगी पर रोग का प्रभाव सायं और रात्रि को अधिक बढ़ जाता है। नतीजतन रोगी रात के समय क्र ोध करने लगता है। वह बिना वजह शक करने लग जाता है। नींद लाने वाली गोली के सेवन करने से रोगी का व्यवहार और अधिक असामान्य हो जाता है।

मस्तिष्क में रक्त प्रवाह की कमी, मस्तिष्क की कोशिकाओं का हृास, मदिरापान, औषधियों का दुष्प्रभाव, मस्तिष्क में ट्यूमर होना, थायराइड ग्रंथि के स्राव में कमी, मस्तिष्क की चोट, फेफड़े का रोग, हृदय रोग, लिवर से सम्बंधित रोगादि के कारण मस्तिष्क में होने वाले रक्त प्रवाह में कमी आ जाती है और डिमेंशिया का शिकार होकर वृद्धावस्था में व्यक्ति स्मरण शक्ति को खोने लगता है।

एक बार शुरू हुआ यह रोग धीरे-धीरे प्राय: बढ़ता ही चला जाता है और व्यक्ति की समस्त क्षमताएं कम होने लगती हैं। इस मानसिक रोग के कारण रोगी में अन्य शारीरिक रोग भी पनपने लगते हैं और कभी-कभी रोगी की मृत्यु तक हो जाती है।

उचित समय पर चिकित्सा करने से 8-10 प्रतिशत रोगियों को लाभ भी होता है और वे ठीक हो जाते हैं। वृद्धावस्था में इस बीमारी के लक्षण पाते ही उपचार शुरू करवाना चाहिए। डिमेंशिया से ग्रस्त रोगी की उपेक्षा कतई नहीं करनी चाहिए।

चिकित्सा विज्ञान में अभी तक ऐसी कोई औषधि नहीं खोजी जा सकी है जिससे डिमेंशिया को होने से रोका जा सके या उसकी गति को धीमा किया जा सके। औषधियों के प्रयोग से रोग के कुछ कुप्रभावों को दूर किया जा सकता है, किन्तु रोग को पूरी तरह दूर नहीं किया जा सकता। यह ऐसा रोग है जो एक बार पकड़ने पर धीरे-धीरे बढ़ता ही चला जाता है।

रोगी को अच्छे तथा साफ सुथरे वातावरण में रखा जाना चाहिए। परिवारजनों का प्यार तथा सहानुभूति रोगी को राहत पहुंचाने में सहायक होते हैं। समय पर नाश्ता, भोजन एवं फलों को देते रहने से रोगी का मानसिक तनाव बढ़ता नहीं है और वह संयमित रहता है।

किसी भी प्रकार से रोगी के मन पर अधिक दबाव पड़ने से यह रोग बढ़ने लगता है और रोगी काफी चिड़चिड़ा हो जाता है। यूं तो वृद्धावस्था में अनेक रोग उत्पन्न होने लगते हैं किंतु डिंमेशिया वृद्धावस्था की अत्यन्त कष्टकारी बीमारी मानी जाती है।
-आनन्द कुमार अनन्त

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here
Captcha verification failed!
CAPTCHA user score failed. Please contact us!