king is the king

जिसका बादशाह बादशाहत भी सारी उसी की Whose king is the king of all रूहानियत में यह नियम अटल है कि जो अपने गुरु सच्चे मुर्शिदे कामिल के वचनों को दृढ़ता से मान लेता है वही परमपिता परमात्मा की हर खुशी का हकदार बनता है। ‘जो तेरी रमज पछाण गया उह कुल इलमां नूं जाण गया’। बादशाह ने एक बार नुमाइश लगाई। सारा सामान सुई से जहाज तक, आटा-दाना, नोट, सोना-चांदी हीरे-जवाहरात आदि सबकुछ एक बड़े मैदान में सजा दिया गया। मुनादी कर दी गई कि एक बार में कुछ भी कोई ले जा सकता है।

बादशाह खुद भी बैठ गया वहां मैदान में। king is the king

लोग आते गए और अपनी जरूरत व सामर्थ्य के अनुसार सामान पदार्थ झोले भर-भर के ले जाते गए। कोई नोटों तक पहुंचा, कोई हीरे-जवाहरातों तक भी पहुंचा। एक शख्स ऐसा भी आया, उसे जिज्ञासु कह लें, वह आखिर तक पहुंचा। खुद बादशाह भी वहीं था कहने लगा, बादशाह सलामत, कुछ भी ले जा सकता हूं? बेशक! बादशाह ने कहा। तो उसने झट से बादशाह की बांह पकड़ ली कि मैंने तो आपको लिया। बादशाह वचनों में बंधा था, कहने लगा कि ठीक है! मैं तेरा हो गया! उस शख्स ने कहा कि आप मेरे हैं तो यह सब सामान भी मेरा हो गया, फिर लूट क्यों? तो यह सच है कि जिसका बादशाह है बादशाही भी सारी (सारा साजो-सामान) उसी की है।

रूहानी महापुरुषों के अनुसार, ईश्वर की दया-मेहर, रहमत के भण्डार तो सबके अंदर भरपूर हैं, लेकिन पाता वोही है जो अपने सतगुरु को परमेश्वर स्वरूप में दृढ़ निश्चय से मानता है, वही उसके रहमो-करम को पाने का पात्र बनता है। वही शख्स असली हकदार है। यह भी कोई जरूरी नहीं कि पीर-फकीर की संतान ही रूहानियत से भरपूर होती है। ऐसा नहीं हुआ करता रूहानियत में।

रूहानियत में बात तो अमलों यानि वचनों को दृृढ़ता से मानने पर निर्भर करती है। समाज में आदरणीय संतान का रुतबा बहुत ऊंचा और परम सत्कार योग्य है, क्योंकि उनके जन्मदाता महान संत कहलाए हैं, लेकिन जो रूहानी संपदा उन गुरु, पीर-फकीर के पास थी, अपनी वो अपार दया-मेहर, रहमत तो वो उसी पर अता फरमाते हैं जो उनको सबसे ज्यादा अजीज हैं। अर्थात परमेश्वर की तरफ से जिसे वो योग्य पाते हैं, केवल उसी पर ही वो अपने रूहानी राज जाहिर करते हैं।

रूहानियत की यही युगो,

युग की रीत है कि सच्चे मुर्शिदे-कामिल के वचनों को जो दृढ़निश्चय से मान लेता है वो ही परम पिता परमात्मा की हर खुशी का हकदार बन पाता है। अर्थात् मुर्शिदे-कामिल जिस जीव पर अपनी दया-मेहर अता फरमाता है, वो अल्लाह, राम, वाहेगुरु अपने सारे राज, अपनी दया-मेहर का वो गैबी खजाना उसी को ही बख्शता है। यही रूहानियत का सार है। रूहानियत में यही सच्चाई सर्वाेपरि व सर्वमान्य है।

स्पष्ट है कि रूहानियत के सब राज सच्चे गुरु में समाए हैं जो जीव अपने गुरु , मुर्शिदे-कामिल के वचनों ंको दृढ़ता से मानता है, दृढ़ विश्वास से चलता है वो ही उसकी बादशाहत रूहानी सल्तनत, गैबी नूरी खजाने को पाने का हकदार बनता है। इसलिए सच ही कहा है कि जिसका बादशाह बादशाही भी सारी उसी की। अपने गुरु, मुर्शिदे-कामिल को परमेश्वर के स्वरूप में निहारें और उनके वचनों को ईश्वरीय वचन मान कर चलें तो पौ बारा पच्ची है।

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