works which seems impossible turns possible with the blessings of satguru experiences of satsangis - Sachi Shiksha

पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत
प्रेमी किरणपाल इन्सां पुत्र रामदिया इन्सां गांव बात्ता तहसील कलायत जिला कैथल से परम पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की प्रत्यक्ष रहमत का वर्णन करता है:-

मैं आप जी की(हजूर पिता जी) रहमत से मार्च 2001 से सी.आर.पी.एफ में भर्ती हुआ। मई 2003 में मेरी शादी हो गई। शादी के दो-अढ़ाई साल बाद तक कोई औलाद नहीं हुई और न ही हमने कोई ध्यान दिया। मैंने घर-परिवार व समाज को देखते हुए वर्ष 2005 से इलाज करवाना शुरू किया। उस समय मेरी ड्यूटी अवन्तीपुरा(श्री नगर) जम्मू कश्मीर में थी। वहां पर मैंने जिला स्तर के सरकारी हस्पताल पाम्पुर में तीन वर्ष तक इलाज करवाया, परन्तु कोई फायदा नहीं हुआ।

सन् 2008 में मेरा स्थानांतरण दिल्ली में हो गया। मैंने फिर से इलाज करवाना शुरू किया। मैं अपनी पत्नी की सारी रिपोर्टें साथ लेकर भारत के सबसे ऊंचे स्तर के हस्पताल अखिल भारतीय अयुर्विज्ञान संस्थान में पहुंचा। डाक्टरों ने कहा कि आप बच्चा गोद ले लो तो अच्छा रहेगा, क्योंकि आपकी पत्नी की दोनों ट्यूबस खत्म हो चुकी हैं। यह सुनकर मुझे पसीना आ गया। मैंने अपनी पत्नी को कुछ नहीं बताया। मैंने फिर से दोबारा डाक्टरों से निवेदन किया कि मैडम जी, क्या मेरी पत्नी का अब कोई इलाज नहीं है? तो उन्होंने कहा कि इलाज तो है लेकिन खर्चा ज्यादा पड़ेगा क्योंकि इसका अब आधुनिक प्रणाली से इलाज होगा। यदि आप सहमत हो तो मैं लिख देती हूं। मैंने कहा, डाक्टर मैम, हम सहमत हैं। उन्होंने कहा, ठीक है। उसके पश्चात हम घर आ गए और रुपयों का इन्तजाम किया।

एक हफ्ते के पश्चात हमने अस्पताल में 65000 रुपये जमां करवा दिए और इलाज शुरू करा दिया। इलाज यह था कि जिसे हम टैस्ट टयूब बेबी कहते हैं, आई. वी. एफ. भी कहते हैं। तीन महीने इलाज चला लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
इलाज करवाते हुए आठ-नौ वर्ष बीत गए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। आई.वी.एफ का इलाज करने के पश्चात तो डाक्टरों की टीम ने बिल्कुल ही स्पष्ट कर दिया कि अब बच्चा नहीं होगा। उसके बाद हम थक हार कर तीस दिन का अवकाश लेकर दिसम्बर 2013 में अपने गांव बात्ता आ गए। घर वालों से सारी आप बीती सुनाई। मेरे डैडी जी ने कहा कि एक बार फिर से दोबारा आई.वी.एफ करवा लो तो हमने कहा कि ठीक है, छुट्टी पूरी होने बाद दिल्ली जाकर करवा लेंगे। लेकिन इससे पहले हमारे ब्लाक की कलायत में नाम चर्चा थी, जिसमें हम भी गए थे।

तो वहां पर हजूर पिता (संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) जी की दया-दृष्टि का किन्नू का प्रशाद आया हुआ था। हमने भी वह किन्नू का प्रशाद लिया और मालिक सतगुरु के नाम का सुमिरन करके खा लिया। छुट्टी के दौरान सतगुरु जी की ऐसी रहमत हुई कि हमें लगा कि अब की बार कुछ उम्मीद है। अवकाश पूरा होने के बाद हम डरते-डरते हुए एम्स में गए और डाक्टरों को कहा कि ऐसा लग रहा है कि हमें कुछ उम्मीद है। डाक्टरों की पूरी टीम वहीं पर मौजूद थी। क्योंकि बार-बार जाने से डाक्टर हमसे अच्छी तरह से परिचित हो चुके थे। लेकिन उन्होंने कहा कि नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। डाक्टर मैडम बोली, रोगी को लेकर आओ, हम अभी उसका स्कैन करके देखेंगे।

लेडी डाक्टर मेरी पत्नी को स्कैन रूम में ले गई और मैं वहीं खड़ा होकर मन ही मन नारे का जाप करता रहा। कभी सुमिरन करने लग जाता, कभी नारा लगाता। बहुत डर लग रहा था। कुछ ही समय पश्चात वहां की स्टाफ सिस्टर बाहर आई और मेरा नाम पुकारा। वह मुझे कहने लगी कि आपको मैम ने बुलाया है। मालिक की ऐसी रहमत हुई कि हमारा जो विचार था वो सही निकला। डाक्टरों की सीनियर व आई.वी.एफ की सीनियर डाक्टर ने कहा कि आपकी सारी रिपोर्ट दोबारा से दिखाओ। मैंने सारी रिपोर्ट डाक्टर मैम को दिखाई। मालिक के इस करिश्मे के सामने डॉक्टर भी हैरान हो चुकी थी। उनकी बेचैनी का एक आलम था और मेरे दिल में खुशी थी। सतगुरु की रहमत से प्रभावित होकर सीनियर डॉ. नीता सिंह ने अपनी कुर्सी से खड़ी होकर मुझ से हाथ मिलाया और मुझे बधाई दी और कहा- बेटा, यह गॉड- गिफ्टिड है।

इसका पूरा पूरा ख्याल रखना है। आपको मुबारिक हो और इलाज करवाते रहना है। प्यारे सतगुरु (परम पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) की रहमत ने सब कुछ काया पल्ट कर दिया था। सतगुरु जी ने न होने वाले कार्य को हां में बदल दिया था। मेरी और मेरी पत्नी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
इलाज चलता रहा और सतगुरु की दया-मेहर से सातवें महीने 19 जुलाई 2014 को लड़के की अनमोल दात प्राप्त हुई जब कि डॉक्टरों ने अक्तूबर 2014 का समय दिया था। मालिक की अंश ने जुलाई 2014 में ही आना था। हमने लड़के का नाम चिराग रखा है। मेरी परम पूजनीय हजूर पिता जी के चरणों में अर्ज है कि पिता जी, ऐसे ही रहमत बनाए रखना जी। पिता जी, हम फौजी आदमी हैं, सत्संग में कम आ पाते हैं, दया मेहर करना जी। आपका फौजी-किरण पाल इन्सां।

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