परम पूजनीय परम संत शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने यह डेरा सच्चा सौदा रूपी बाग लगाया और इस इलाही बाग के द्वारा हजारों रूहों रूपी भंवरों को अपनी अपार रहमत का अलौकिक रस पान करवा कर अमर पद (सतलोक) पहुंचाकर हमेशा-हमेशा के लिए अमर कर दिया। कार्तिक पूर्णिमा का यह पावन दिन सच्चा सौदा के लिए मुबारक दिन है क्योंकि इस पवित्र दिन को वाली दो जहान परम पूजनीय परम संत शहनशाह मस्ताना जी महाराज सृष्टि का उद्धार करने के लिए मातलोक पर प्रकट हुए थे।
आप जी गांव कोटड़ा, तहसील गंधेय, रियासत कुलैत-बिलोचिस्तान (जो कि अब पाकिस्तान में है) के रहने वाले थे। आप जी के पिताजी का शुभ नाम पूज्य श्री पिल्ला मल्ल जी तथा माता जी का शुभ नाम पूज्य माता तुलसां बाई जी था। आप जी खत्री वंश से संबंध रखते थे। पूज्य माता-पिता जी के यहां चार लड़कियां ही थीं, परंतु लड़का कोई नहीं था। इसलिए पुत्र की कामना की इच्छा से उन्होंने बहुत से फकीरों से भेंट की।
एक बार एक फकीर ने उनकी सेवा भावना व सच्ची तड़प को देखकर खुश होते हुए वचन फरमाया, ( वह फकीर अल्लाह, प्रभु का सच्चा भक्त व बहुत ही कमाई वाला साधु, उच्च कोटि का पहुंचा हुआ फकीर था।) कि लड़का तो आपके घर जन्म ले लेगा लेकिन वो आपके काम नहीं आएगा। यदि यह शर्त मंजूर है तो बताओ? इस प्रकार उस सच्चे फकीर की सच्ची दुआ से पूज्य माता-पिता जी की सच्ची व हार्दिक कामना पूरी हुर्ह।
कुल मालिक परमपिता परमात्मा ने परम पूजनीय परम संत शहनशाह मस्ताना जी महाराज के रूप में सन् 1891 को कार्तिक की पूर्णिमा के दिन सृष्टि-जगत पर अपना अवतार धारण किया। चांद के समान सुन्दर, शांत व सुखदायक नूरी चेहरा और सूर्य के समान तेजस्वी माथा तथा सुन्दर रब्बी स्वरूप को अपने घर आंगन में निहारकर पूज्य माता-पिता जी प्रसन्नता से झूम उठे।
पूज्य माता पिता जी बहुत खुश थे क्यों जो उनके घर में मालिक, (प्रभु) की जोत, स्वयं कुल मालिक, उनके वारिस पैदा हुए हैं और यह खुशी का समाचार पल-क्षण में लगभग पूरी रियासत भर में फैल गया। यह शुभ समाचार पाकर अपने पीर, खुद-खुदा, कुल मालिक के नूरी दर्शन करने के लिए पूज्य पिता पिल्ला मल्ल जी के घर पर रियासत की भीड़ उमड़ पड़ी। जो भी सोहणे बाल-मुख को निहार लेता, बस धन्य-धन्य करता ही जाता।
पूज्य माता पिता जी ने रब्बी नूर को प्रकट हुआ देखकर अत्यन्त खुशियां मनाई। गरीबों को अन्न, वस्त्र आदि का दान दिया गया और खूब मिठाइयां बांटी गई। पूज्य माता पिता जी ने आप जी का नामकरण करते हुए, आप जी का नाम ‘खेमा मल्ल जी’ रखा, परंतु जब आप अपने प्यारे मुर्शिद कामिल हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज के पावन सम्पर्क में आए, तो उन्होंने आप जी के अंदर प्रभु की सच्ची इलाही मस्ती को देखते हुए, आप जी का नाम ‘शाह मस्ताना’ जी रख दिया।
Table of Contents
सेवा भावना:-
आप जी को बचपन से ही साधु-संतों की सेवा का शौक था। एक बार की बात है, आप अपने घर से खोए की मिठाई का भरा थाल लेकर बेचने के लिए निकले ही थे कि रास्ते में आप जी का मिलाप एक साधु से हो गया। बस, फिर क्या था। मिठाई का थाल सिर से उतार कर नीचे रख दिया और सब कुछ भूलकर बैठ गए प्रभु भक्ति की बातें सुनने। बातों-बातों में आप जी ने सेवा भावना के तौर पर कुछ मिठाई उस महात्मा को पेश की। बहुत ही स्वादिष्ट और अलौकिक आनंद था उस खोए की मिठाई में। उसने कुछ और मिठाई खाने की इच्छा प्रकट की।
आप जी ने कुछ मिठाई और भेंट कर दी। इस प्रकार थोड़ी-थोड़ी करके वह महात्मा (वो फकीर) आप जी की सारी मिठाई खा गया और आखिर में यह कहते हुए कि ‘बच्चा! तू दोनों जहानों का बादशाह बनेगा,’ एक पल में ही आंखों से ओझल हो गया।
थाल खाली हो चुका था लेकिन पैसा एक भी नहीं आया (बिक्री में) था। पूजनीय शहनशाह जी ने सोचा कि अगर खाली हाथ घर गए तो पूज्य माता जी नाराज होंगी, इसलिए आप जी ने किसी जमींदार के यहां दिन भर मजदूरी की। आप जी की आयु उस समय लगभग 8-9 वर्ष की होगी। इतनी छोटी आयु में इतने सख्त परिश्रम और इतनी लगन से काम करते देखकर वह भाई भी यह बात सोचने पर मजबूर हो गया कि ये बालक आम बच्चों की तरह नहीं है, बल्कि कोई विशेष हस्ती है। उसने आप जी से जब हकीकत पूछी तो आप जी ने उसे सारी बात बता दी।
फिर वह आप जी को लेकर पूजनीय माता जी के पास आया और पूरा वाक्या बताया। पूज्य माता जी को जब इस सच्चाई का पता चला कि आप जी दिन भर सख्त परिश्रम करके 10-15 सेर अनाज लेकर आए हैं तो वे भावुक हो गई। कुछ बड़े हुए तो आप जी ने अपने घर में ही मिठाई की दुकान बना ली। आप जी के पवित्र कर-कमलों से बनी मिठाई इतनी स्वादिष्ट होती कि आप जी की दुकान दूर-दूर तक मशहूर हो गई लेकिन साधु-महात्मा जो भी मिलता उसे मुफ्त में ही खिला दिया करते और बदले में वो आप जी को दुआएं देते चले जाते।
सच्ची हमदर्दी:-
कोई भी गरीब व जरूरतमंद व्यक्ति आप जी को मिलता, आप जी उसके प्रति अपनी पूरी हमदर्दी प्रकट करते और उसकी हर संभव सहायता भी करते।
एक बार ऐसा ही हुआ। आप जी अपने घर से पैसे लेकर किसी दुकान से कुछ सौदा लेने गए। वहां पर कुछ अन्य व्यक्ति (मजदूर) दुकानदार से उधार सौदा मांग रहे थे, परंतु दुकानदार उनकी बात सुनने को भी तैयार नहीं था, बल्कि बुरी तरह से उन्हें बुरा भला बोल कर फटकार भी रहा था। हालांकि उन बेचारों ने अपनी विवशता का बहुत वास्ता भी दिया, परंतु दुकानदार ऐसा पत्थर दिल था जिसे उनके छोटे-छोटे बच्चों पर भी जरा तरस नहीं आ रहा था जो कई दिन से भूख से व्याकुल (तड़प रहे) थे।
आप जी को उनकी तरस योग्य हालत पर बहुत रहम आया। आप जी ने उसी वक्त अपने पैसों से सौदा खरीदकर उन्हें दे दिया और खुद मजदूरी करके उसका राशन लेकर घर लौटे। जब पूज्य माता जी को इस सच्चाई का पता चला तो वे बहुत खुश हुए ।
घर गृहस्थी:-
आपजी लगभग हर समय ही प्रभु की अलौकिक मस्ती में मगन रहते। यह देखकर पूज्य माता जी ने आप जी को घर गृहस्थी के मोह-जाल में बांधने की कोशिश की। आपजी की शादी कर दी गई। आप जी के यहां एक पुत्र ने भी जन्म लिया लेकिन पारिवारिक मोह जाल भी आप जी की उस ईश्वरीय अलौकिक मस्ती में अधिक समय तक रूकावट नहीं बन सका और आप जी ज्यादा से ज्यादा समय पहले की भांति ही प्रभु-भक्ति में लीन रहते।
सच की तलाश और सतगुरु का मिलाप:-
आप जी ने अपने घर में ही भगवान सत्यनारायण जी का मंदिर बना रखा था और उसमें रखी सत्यनारायण जी की सोने की मूर्ति की पूजा किया करते थे। पूज्य पाठ व भक्ति में आप जी कई-कई घंटे लगातार बैठे रहते। इसके बाद आप जी सब कुछ छोड़कर सच की तलाश में निकल पड़े।
इसी दौरान आप जी की भेंट एक बहुत ही उच्च विचारों वाले महात्मा से हुई। उसने बताया कि सत्नारायण भगवान वो मालिक, प्रभु तो इन्सान के अंदर है, इसलिए अगर आप उसे पाना और उसके दर्श-दीदार करना चाहते हैं तो जड़ पूजा आदि साधन छोड़कर किसी पूरे गुरु से मिलाप करें।
आप जी को उस महात्मा की बात जंच गई। इस पर आप जी ने उसी दिन से ही जड़ पूजा को छोड़ दिया और सच्चे व पूरे गुरु की तलाश आरंभ कर दी। आप जी ने उत्तरी भारत के लगभग सभी तीर्थ स्थानों का भ्रमण किया। इस दौरान आप जी का मिलाप कई साधु-महात्माओं और बड़े-बड़े ऋषि-मुन्नियों से हुआ।
आप जिस भी महात्मा से मिलते सब से केवल प्रभु परमात्मा के मिलाप का ढंग ही पूछते। त्रिलोकी के अंदर जहां तक भी किसी की रसाई होती तथा ऋद्धियां सिद्धियां का ढंग तो वे आप जी को बता देते लेकिन सतपुरुष कुल मालिक को मिलाने में उन्हें असमर्थ पाकर आप जी एक को छोड़कर दूसरे, और दूसरे को छोड़कर अन्य महात्मा के पास गए। उस दौरान आप जी ने कई महात्माओं से भेंट की। इस प्रकार सच की प्राप्ति के लिए आप जी लगभग 9 वर्ष तक निरंतर घूमते रहे। आखिर में आप जी डेरा ब्यास में पूज्य बाबा सावण शाह जी महाराज से मिले।
आप जी ने वहां पर कुछ दिन रहकर परम पूजनीय हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज के दर्शन किए और रूहानी व सच्ची सत्संग सुनी। मन को पूरी तसल्ली हो गई कि पूज्य बाबा जी ही पूरे सतगुरु खुद-खुदा हैं। आप जी ने पहली नजर में ही पूज्य बाबा जी को सच्चे हृदय से अपना पीरो, मुर्शिद, सतगुरु मान लिया और अपनी जिंदगी उन्हीं के पवित्र चरण-कमलों में न्यौछावर कर दी। इस प्रकार आप जी के दृढ़ निश्चय और सच्ची लगन को देखते हुए परम पूजनीय हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज ने आप जी को सच्चे नाम शब्द के साथ-साथ अपनी बेअंत बरकतें भी बख्शिश में दी।
उन्होंने फरमाया, मस्ताना शाह! हमने आपको अन्दर वाला गुरु बख्श दिया है। बिलोचिस्तान में जाकर सतगुरु का यश करो। मैं तुम्हें अपनी दया मेहर भी देता हूं जो सारा काम करेगी।’
सरसा गुफा में भजन करना:-
परम पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी महाराज अपने मुर्शिद प्यारे दातार जी की पावन हजूरी में 70 हजार में से अकेले ही नाचा करते थे। (उस समय पूजनीय हजूर बाबा जी के सत्संगी जीवों की संख्या 70 हजार के करीब थी।) आप जी अपने पैरों तथा कमर में मोटे-मोटे घुंघरू बांधकर लोक लाज की प्रवाह किए बिना ऐसे मस्ती से नाचा करते कि कुल खुदाई उस अलौकिक मस्ती में झूम उठती। आपजी के ऐसे सच्चे इश्क और खुदा की सच्ची मस्ती से परम पूजनीय हजूर बाबा जी बहुत खुश होते और आप जी पर अपने इलाही वचनों की बौछार कर दिया करते। एक बार ऐसा ही एक मनमोहक दृश्य वर्णन योग्य है।
सत्संग लगा हुआ था। पूजनीय हजूर बाबा जी स्टेज पर विराजमान थे। आप जी अपने प्यारे सतगुरु मुर्शिद की पावन हजूरी में खुदा के इलाही प्रेम व मस्ती में नाचते जा रहे थे और पूजनीय हजूर बाबा जी खुश, बहुत ही खुश होकर अपने इलाही वचनों की बराबर बौछार करते जा रहे थे। जा मस्ताना! असीं तेरे को अखुट भंडार दिया। जा मस्ताना शाह! असीं तेरे को सब दातां दी कुज्जी दी। जिसको मर्जी दे। सोना, चांदी, पैसा, पुत्र, धी दे, चाहे जो मर्जी कर। जा मस्ताना! तेरे को पीर भी बनाया और अपना स्वरूप भी दिया। तू किसी का गुलाम नहीं।
जा मस्ताना शाह तेरे को बागड़ देश का बादशाह बनाया, इत्यादि अपने इलाही वचन फरमाते हुए सत्संग स्टेज से उतरकर आप जी के पीछे-पीछे ऐसे फिर रहे थे जैसे गाय अपने बछड़े के मोह में उसके पीछे-पीछे फिरती है। इसके कुछ दिनों बाद ही आपजी अपने प्यारे रहबर खुद-खुदा जी के हुक्म द्वारा सरसा में आ गए और सरसा शहर में स्थित पुराने सत्संग घर में कुटिया बनाकर भजन-सुमिरन करने में लीन हो गए।
हालांकि आप जी अपने प्यारे पीर खुदा सतगुरु से एक पल के लिए भी दूर नहीं होना चाहते थे लेकिन सरसा में जाने का हुक्म भी तो उन्हीं (मुर्शिद-कामिल प्यारे दातार जी) का ही तो था।
डेरा बनाने व सत्संग लगाने का हुक्म:-
सरसा कुटिया में रहते हुए पूजनीय शहनााह मस्ताना जी महाराज अपने प्यारे मुर्शिद जी के हुक्मानुसार दिन रात सुमिरन में लीन रहते। इस दौरान आप जी बहुत कम मात्रा में खुराक लिया करते। खुराक में शलगम की सब्जी का पानी या कभी थोड़ी बहुत खिचड़ी और चाय की एक प्याली पूरे दिन में लिया करते परंतु कई बार तो ऐसा भी होता कि कई-कई दिन बिल्कुल भी कुछ नहीं लिया करते आप जी कई-कई दिन तक गुफा से भी बाहर नहीं आया करते थे और कभी आते तो करीब आधी रात के बाद ही जब तक कि लगभग सभी लोग गहरी नींद में सोय होते।
एक बार सरसा शहर की साध-संगत परम पूजनीय बाबा सावण सिंह जी महाराज के दर्शनों के लिए डेरा ब्यास में गई। इस पर पूजनीय हजूर बाबा जी ने वचन फरमाया, आप लोग वहीं पर (सरसा में) मस्ताना जी के ही दर्शन किया करो, वे हमारा ही स्वरूप है। साध-संगत ने प्रार्थना की कि पूज्य बेपरवाह मस्ताना जी महाराज तो अपनी गुफा से कभी बाहर ही नहीं आते। अगर कभी आते भी हंै तो देर रात को ही आते हैं। इस पर पूज्य बाबा जी ने फरमाया, ‘हम खुद वहां आएंगे और उनकी डयूटी लगाएंगे कि साध-संगत को मिला करें और सत्संग लगाया करें।’
एक दिन परम पूजनीय हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज स्वयं सरसा में आए और पूज्य बेपरवाह जी की गुफा में प्रवेश किया। पूज्य बेपरवाह जी ने अपनी मातृभाषा (बिलोचिस्तानी बोली) में अपने प्यारे मुर्शिद दातार जी के स्वागत में अर्ज की, ‘‘पांजी गुफा पान देख’’ अर्थात् अपनी गुफा आप जाकर देखें।
पूजनीय बाबा सावण सिंह जी महाराज ने उस गुफा में अपने पवित्र चरण टिकाते हुए वचन फरमाया, मस्ताना शाह! ये तो अखुट भंडार है। यह कभी नहीं खुटेगा। एक बात याद रखना, कि बिलोचिस्तान के लिए हमने तुम्हें आठ आने ताकत दी थी, पंजाब के लिए बारह आने और बागड़ के लिए पूरा सवा रुपया ताकत आप को दी है। बागड़ तुम्हारे सुपुर्द है।’’ बागड़ को तार। सत्संग लगा और दुनिया को नाम जपा।’
नारा मंजूर करवाया:-
‘धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ का यह पवित्र नारा भी साध-संगत को परम पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी महाराज की ही पावन बख्शीश है जो आप जी ने अपने मुर्शिदे-कामिल से खुद बख्शवाया है। आप जी अपने मुर्शिद की हजूरी में स्वयं भी धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा, धन-धन दाता सावणशाह सार्इं निरंकार तेरा ही आसरा बोला करते थे। आप जी ने अपने प्यारे सतगुरु बाबा सावण सिंह जी महाराज से प्रार्थना की, सच्चे पातशाह जी! आप जी का हुक्म सत्वचन है परंतु असीं कोई नया धर्म नहीं चलाना चाहते। असीं धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा बोलना चाहते हैं, जिसको सभी धर्मों वाले मानें और हर कोई अपने सतगुरु परमात्मा का धन-धन करे। परम पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी महाराज के पवित्र मुख से मानवता की भलाई और सर्व-धर्म की सांझी बात सुनकर पूजनीय हजूर बाबा जी ने अपनी इलाही मौज व पूरी खुशी में आकर पवित्र मुख से वचन फरमाया, अच्छा, मस्ताना शाह! तुम्हारी मौज!
जा तेरा ‘धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ सारी दुनिया में तो क्या दोनों जहानों में काम करेगा। तो शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने सर्वधर्म के पवित्र नारे को मंजूर करवाया जो हर किसी के लिए सांझा है।
इसी प्रकार डेरा सच्चा सौदा में मौजूदा पूज्य गुरु डा. एमएसजी लायनहार्ट संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां भी यही फरमाते हैं, ‘‘सतगुरु परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज और परम पूजनीय परम संत शहनशाह मस्ताना जी महाराज द्वारा बख्शे इस पवित्र नारे में बहुत ही महान शक्ति है।
यह इलाही बख्शिश है, जो इन्सान को मौत के मुंह से भी सुरक्षित निकाल लेता है। इसलिए हर प्रेमी के लिए हुक्म है कि यह पवित्र नारा, ‘धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ पूरा बोलना चाहिए।
शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने 29 अप्रैल 1948 को डेरा सच्चा सौदा की नींव रखी और दुनिया को सच से अवगत करवाया। आप जी ने दिन-रात लोगों को सरल सीधी भाषा में भक्ति का मार्ग दिखाया और लोगों में सोना-चांदी, हीरे आदि बांट-बांट कर प्रभु-भक्ति के साथ जोड़ा। आप जी का ईलाही प्यार, ईलाही नूर आज भी मौजूदा पूज्य गुरु डॉ. एमएसजी के रूप में लोगों को मालामाल कर रहा है।
पूरी दुनिया में डेरा सच्चा सौदे का डंका बज रहा है। करोड़ों लोग आज सर्वधर्म संगम सारे धर्मों की सांझी इस पावन धर्म-स्थली से जुड़कर अपने जीवन को सफल बना रहे हैं। कार्तिक पूर्णिमा का पवित्र यह दिन इस बार 14 नवंबर को मनाया जा रहा है। यह पावन भंडारा मुबारक, लख-लख बधाई हो जी।
सच्ची शिक्षा हिंदी मैगज़ीन से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook, Twitter, Google+, LinkedIn और Instagram, YouTube पर फॉलो करें।