भाई ने खींची खुशहाली की ‘रेखा’ तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो-क्या गम है जिसको छुपा रहे हो, रेखाओं का खेल है मुकद्दर-रेखाओं से मात खा रहे हो। मशहूर गजलकार जगजीत द्वारा फिल्म-अर्थ में गाये गये इस गजल-गीत में इंसान के जीवन के कई पहलुओं को छुआ गया है। मगर दुनिया में ऐसे भी शख्स हैं जिन्होंने रेखाओं से मात खाकर नहीं रेखाओं को मात देकर इस गीत की लाइनों के मायने बदल दिये। आज हम उनके जब्बे को अपनी कलम के माध्यम से सलाम कर रहे हैं।
भाई-बहन के प्यार के प्रतीक रक्षाबन्धन के त्योहार पर हम आपको ऐसे भाई-बहन से रूबरू करा रहे हैं, जिन्होंने कम उम्र में अधिक दुख झेलकर जीवन के संघर्ष में गहरे प्रेम की लंबी रेखा खींचकर रक्षा बंधन की पवित्रता को और गहरा कर दिया है।
Real Story – Raksha Bandhan
27 वर्षीय रेखा के इकलौते भाई राकेश अहलावत (हिसार) के जीवन से जुड़ी यह कहानी अनोखे रिश्ते की मिसाल है। इसे बदकिस्मती ही कहा जायेगा कि जिस उम्र में हर कोई अपनी आने वाली जिन्दगी के लिए अच्छे सपने देखता है और उन्हें पूरा करने का प्रयास करता है, उस उम्र में पेट में दर्द क्या हुआ, रेखा (उस समय उम्र 25 साल) की बदकिस्मती शुरू हो गई। सामान्य उपचार से बात नहीं बनी तो रोहतक पीजीआईएमएस तक जांच कराई। वहां भी बीमारी पकड़ में नहीं आई, लेकिन अंदेशा कैंसर का जताया गया। क्योंकि पेट में गांठ बनी हुई थी। इसी अंदेशे ने परिवार को झकझोर कर रख दिया।
रेखा को भाई राकेश रोहतक पीजीआई से देश के सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली) में लेकर पहुंचे। वहां डाक्टर भीमराव अम्बेडकर इंस्टीट्यूट रोटरी कैंसर अस्पताल में ओपीडी कराई। ओपीडी के बाद करीब एक महीने तक रेखा की चिकित्सा जांच हुई। तब जाकर यह पता चला कि रेखा को ब्लड कैंसर है। इस विकट घड़ी में बहन की हिम्मत को भाई ने कभी टूटने नहीं दिया। छह सदस्यों के इस परिवार (पिता साधू राम, बहन पूनम, भाई राकेश, भाभी किरन, भतीजा मयंक) ने रेखा को भी अकेलेपन का अहसास नहीं होने दिया।
हालांकि रेखा की बड़ी बहन पूनम की शादी हो चुकी है। इस छोटे से परिवार में जो खुशियां थी, वो रेखा की इस बीमारी से प्रभावित हुई, फिर भी परिवार का हर सदस्य इस दुख के दरिया से सकारात्मक (पॉजिटिव) सोच के साथ पार पाने को आश्वस्त था। खैर, रेखा का उपचार एम्स में एक माह की चिकित्सा जांच के बाद नियमित रूप से शुरू हुआ। ब्लड कैंसर था, इसलिए लोगों के मुंह से तरह-तरह की बातें सुनने को मिलीं।
हिम्मत देने वाले कम और यूं कहें डराने वाले ज्यादा थे। समाज के नकारात्मक लोगों के बीच परिवार में सदा सकारात्मकता बरकरार रही। बता दें कि भाई राकेश और बहन रेखा के बीच एक पात्र और हंै, जिनके पॉजिटिव रवैये से परिवार खुशियों की सौगात के साथ रह रहा है। वह है रेखा की भाभी किरन। चाहे कितने भी दुख आये, कितनी भी समस्यायें आई, उनके मुंह से सदा ये ही निकला कि-चिंता की कोई बात नहीं, सब ठीक हो जायेगा। हिसार से दिल्ली एम्स तक करीब 200 किलोमीटर का चार-पांच घंटे में सफर तय करके उपचार को आना, फिर समय रहा तो उसी दिन वापसी, नहीं तो रात्रि विश्राम दिल्ली में ही। भाई-बहन के इस सफर में किरन भी हमसफर रही।
समय बीतता गया। 2017 का साल बदला और 2018 में प्रवेश करके परिवार में उम्मीद की नई किरणें जगी। रेखा की कीमो थैरेपी अंतिम पड़ाव पर थी। आखिरी कीमोथैरेपी 19 मार्च 2018 को हुई। इसके कुछ दिन बाद डॉक्टर ने जांच कराकर रिपोर्ट देखी। रिपोर्ट पूरी तरह से पॉजिटिव मिली। यानी रेखा के शरीर में बह रहे रक्त से कैंसर रूपी बीमारी खत्म हो चुकी थी। यूं कहें, रेखा ने कैंसर की बीमारी को मात देकर जिन्दगी की जंग जीत ली।
आज रेखा स्वस्थ हंै, खुश हंै और हिसार में ही अपना ब्यूटी पार्लर चलाती है। रेखा के एम्स में उपचार की प्रमुख पात्र नर्सिंग आॅफिसर एवं बड़ी बहन पूनम की जेठानी इंदू बाला ने व्यक्तिगत रूप से प्रयास करके रेखा के उपचार में बड़ी भूमिका निभाई।
धर्म-कर्म से जोड़ते हुये इंदू बाला ने रेखा को डेरा सच्चा सौदा में पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां से नामदान भी दिलवाया। क्योंकि वे खुद बचपन से ही डेरे से जुड़ी हैं। अटूट आस्था के चलते वे रेखा को सदा नाम के सुमिरन के लिये प्रेरित करती रही। संजय कुमार मेहरा
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