किससे क्या मांगें
आज यदि इस बात पर चर्चा करें कि हम किससे क्या मांगें तो आप सब शायद मुझे पागल कहेंगे। यही कहना चाहेंगे कि हमारे पास सब कुछ है तो हमें किसी से मांगने की आवश्यकता नहीं है। हमारे बड़े-बुजुर्ग कहा करते थे- सौ दांदिए को भी एक दांदिए की जरुरत पड़ जाती है।
अर्थात् कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जिसके पास सौ बैल हैं ऐसे समृद्ध व्यक्ति को भी एक बैल वाले से उसका बैल उधार मांगना पड़ जाता है। हम सब दुनिया की हर वस्तु पाना चाहते हैं। उसके लिए जी तोड़ परिश्रम भी करते हैं। जब हम अपना मनचाहा प्राप्त कर लेते हैं तब हमारी प्रसन्नता का पारावार नहीं रहता। हमें ऐसा लगता है कि हमसे अधिक भाग्यशाली और दुनिया में कोई नहीं है।

विचार करने योग्य बात यह है कि वह प्रभु बहुत ही न्यायकारी है। किसी के भी साथ अन्याय नहीं करता। हमारे इस जन्म और पूर्वजन्मकृत कर्मों के अनुसार देर-सवेर हमें अवश्य दे देता है। इसलिए कहते हैं-
उसके घर में देर है अंधेर नहीं।
हमारे समक्ष प्रश्न यह उठता है कि हम अपनी कामनाओं की पूर्ति करने के लिए किससे मांगें? यदि सांसारिक रिश्ते-नातों से मांगेंगे तो वे अपनी सामर्थ्य के अनुसार एकाध बार हमारी सहायता करेंगे। हर इंसान की अपनी सीमाएं होती हैं। उन्हीं सीमाओं में रहकर ही वह सहायता कर सकता है। यहां भी भेदभाव देख सकते हैं।
जिससे उन्हें भविष्य में कुछ पाने की आशा होती है, उनकी सहायता अगनित बार कर सकते हैं। वैसे जिनसे उनको स्वार्थ सिद्ध होने की उम्मीद नहीं होती उसकी एक बार ही सहायता करके न जाने कितनी बार अहसान जताएंगे। यदि व्याज पर पैसा उठाने की सोचें तो पूरा जीवन उसे चुकाने में बीत जाता है। बैंकों से यदि सहायता लेने की सोचेंगे तो वहां भी सरलता से काम नहीं होते। वहां भी सौ अड़ंगे लगाए जाते हैं।
वे भी उन्हीं लोगों के पुन:
सहायक बनते हैं जहां से कुछ प्राप्ति होती है चाहे वे उनका दिया हुआ पैसा लौटाएं या नहीं।
आम आदमी के तो नाक में दम कर देते हैं। उन्हें तो दो-चार हजार रुपयों के लिए भी अदालत में घसीटेंगे, उनके घर नीलाम कर देंगे, गाड़ी उठाकर ले जाएंगे, परन्तु करोड़ों रुपयों का उनका बकाया न चुकाने वालों की जी हजूरी करते हैं क्योंकि उनसे लाभ लेने होते हैं।
इसलिए मांगना है तो जगत के पिता उस परमात्मा से मांगो जो बिना कहे ही हमारी झोलियां अपनी नियमातों से भरता रहता है। वह निस्वार्थ भाव से अपने खजाने हम सब पर लुटाता है। कभी भी किसी पर अपना अहसान नहीं जताता, न ही वह सांसारिक लोगों की तरह दुनिया में जगह-जगह गाता फिरता है कि मैंने अमुक व्यक्ति की सहायता की है। देखो मैं कितना महान हूं?
वह चुपके से हमारी कामनाओं को पूर्ण करने के लिए हमारी सहायता कर देता है या कोई ऐसा माध्यम बना देता है कि बिना कष्ट के हमारा कार्य हो जाता है और किसी को कानोंकान खबर भी नहीं लगती। मैं तो इसी निष्कर्ष पर पहुंची हूं कि मांगना है तो उसी मालिक से मांगो जो देकर पछताता नहीं है। हम एक कदम उसकी ओर बढ़ाते हैं तो वह हमारी सहायता करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ता। वही हमारा सच्चा बंधु है। उसी का पल्लू पकड़ लो तो फिर उद्धार हो जाएगा।
-चन्द्र प्रभा सूद
































































