Experiences of Satsangis

अधिकारी जीवात्मा को दिया ऊँचा मुकाम -सत्संगियों के अनुभव – पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम

मेरी माता को शंका हो गई कि कहीं हमारे वाला कुत्ता ही ना आ गया हो! उसने खड़े होकर देखा तो अपने कुत्ते को पहचान लिया और कहा कि यह तो हमारा कुत्ता है। हम तो इसे घर में संगली से बांधकर आए थे, ये कैसे संगली तुड़वा कर आ गया! शहनशाह जी ने सेवादारों को फरमाया, ‘भाई! यह कोई बिछुड़ी हुई रूह आज चौरासी कटवाने आई है। भई, इसको भगाओ मत। इसको बूंदी का प्रशाद डालो और इसे अपने मालिक के पास बैठने दो।’

प्रेमी पृथ्वी राज इन्सां सुपुत्र सचखंडवासी प्रेमी फूल चंद जी, गांव धारनियां जिला फतेहाबाद से लिखते हैं कि यह दिसम्बर 1957 की बात है। उस दिन नेजिया खेड़ा गांव में बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी महाराज का सत्संग था। मैंने इससे पहले अपनी माता के साथ सुचान कोटली में बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी महाराज के दर्शन किए तथा सत्संग सुना था। उस समय मैंने देखा कि शहनशाह जी के चेहरे पर बेअंत चमक थी। नूरानी चेहरे का रंग पूरा लाल था। उनका चेहरा बब्बर-शेर की भांति पूरा रोहबदार था। ऐसे लगता था जैसे उनके मुखड़े पर कोई अलौकिक बारिश हो रही हो। मैंने घर आकर अपनी मां को बताया तो वह बोली, बेटा! यह तो अमृत-धारा ऊपर से आ रही थी। उसने कहा कि सुना है, खुद खुदा धरती पर उतर कर आया है। हम अगली सत्संग पर नाम ले ही लेंगे।

उस समय हम ‘सिंचाई विभाग’ के रैस्ट हाऊस में सुचान कोटली जिला सरसा में रहते थे, क्योंकि मेरे पिता जी सिंचाई विभाग में नौकरी करते थे। अगले सत्संग वाले दिन उस रेस्ट हाऊस में किसी बड़े अफसर ने आना था, इसलिए उस दिन हम डेरा सच्चा सौदा सरसा सत्संग पर कुछ देरी से पहुंचे। उस समय तक शहनशाह जी सत्संग की समाप्ति करके अपने तेरावास में ऊपर चौबारे पर चले गए थे।

जैसे ही हम दरबार के अंदर प्रवेश हुए तो शाह मस्ताना जी महाराज हमारी पुकार और तड़प को देखकर एकदम चौबारे से बाहर आए और वचन फरमाया, ‘भाई, सतगुरु के प्यारे बच्चे कितनी दूर से, तड़प, प्रेम से आए हंै! हम बिल्कुल नजदीक चले गए थे। शहनशाह जी बोले, ‘बेटा, लंगर छको और भजन बंदगी करो। फिर भई शाम को सत्संग सुनना।’ घर पर जरूरी काम की वजह से उस दिन भी हम बिना नाम लिए वापिस लौट आए। कुछ दिनों बाद नेजिया में सत्संग वाले दिन हम दो साइकिलों पर घर से चले। एक साईकिल पर मेरा चाचा, मैं तथा मेरी बहन थे और दूसरी साइकिल पर मेरे पिता, मेरी माता जी तथा मेरा छोटा भाई था। हम अपने घरेलू कुत्ते को रोटी-पानी खिला पिला कर अपने घर संगली से बांधकर आए थे।

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जब हम नेजिया खेड़ा गांव में सत्संग पर पहुंचे, उस समय शहनशाह मस्ताना जी महाराज सत्संग फरमा रहे थे। वहां पर बहुत लोग ऊंटों, घोड़ों, साइकिलों पर तथा बहुत लोग पैदल भी चलकर आए हुए थे। हम सत्संग सुनने के लिए सत्संग पंडाल में बैठ गए। इतने में हमें पता चला कि सेवादार एक कुत्ते को संगत के बीच में आने से रोक रहे थे और इधर-उधर भगा रहे थे। अचानक बेपरवाह जी की दृष्टि उस कुत्ते पर पड़ी। शहनशाह जी सेवादारों से पूछने लगे कि ‘क्या बला पड़ गई? एक सेवादार बोला कि सार्इं जी, यह कुत्ता अपने मालिक के पीछे संगली तुड़वा कर संगली समेत ही आ गया है और संगत में अपने मालिक की पहचान कर रहा है।

मेरी माता को शंका हो गई कि कहीं हमारे वाला कुत्ता ही ना आ गया हो! उसने खड़ी होकर देखा तो अपने कुत्ते को पहचान लिया और कहा कि यह तो हमारा कुत्ता है। हम तो इसे घर में संगली से बांधकर आए थे, ये कैसे संगली तुड़वा कर आ गया! शहनशाह जी ने सेवादारों को फरमाया, ‘भाई! यह कोई बिछुड़ी हुई रूह आज चौरासी कटवाने आई है। भई, इसको भगाओ मत। इसको बूंदी का प्रशाद डालो और इसे अपने मालिक के पास बैठने दो।’ कुत्ता हमारे पास आकर चुपचाप बैठ गया।

सत्संग की समाप्ति पर हमने नाम लेना था, इसलिए कुत्ते को हम अपने किसी जान-पहचान वाले के घर नेजिया में बांध आए थे। मैं अपनी माता, बहन व भाई के साथ अपने पिता और चाचा को बताए बिना ही नाम लेने वालों में हम तीनों बहन-भाई बैठने लगे। मेरी माता ने अंदर जाने से पहले जूते उतार दिए थे, क्योंकि खुद-खुदा सतगुरु जी के पास जाना है। उस समय शहनशाह जी सामने खड़े थे तो शहनशाह जी ने फरमाया, ‘भई किसी ने जूते नहीं निकालने। यह कोई वो चीज़ नहीं है। ये धुर अनामी वाली ताकत सच्चे सौदे आई है। जो आपको समेत जोड़े पार लेकर जाएगी।’ तो माता ने जूते पहन लिए और बोली, सार्इं जी ने दिल की बात बता दी।

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हम राम-नाम में बैठ गए। सार्इं जी ने फिर फरमाया, ‘भई वो कुत्ता जिसको तुम भगा रहे थे, यदि उसके मालिक नाम में बैठे हैं तो उस कुत्ते को भी अंदर आने दो।’ माता जी ने मुझे कहा कि कुत्ता तो हम बांधकर आए हैं। परंतु कुत्ता तो संगली तुड़वा कर वहाँ बाहर दरवाजे पर आया खड़ा था। जैसे ही बेपरवाह जी ने कुत्ते के बारे में फरमाया तो सेवादारों ने कुत्ते को अंदर आने की छूट दे दी और वह अंदर आकर सीधा हमारे पास बैठ गया। बेपरवाह जी ने सेवादारों को फरमाया, ‘भई, तुम तो कुत्ते को भगा रहे थे। कुत्ते के मालिक के भाग देखो, आज समेत कुत्ते तर रहा है।

आज से इस कुत्ते की चौरासी खत्म।’ पूजनीय शहनशाह जी ने इतने रहमत भरे वचन करके हमें नाम वाले जीवों के साथ नाम बख्श दिया। उसी दिन शाम के समय ढोल नगाड़ों के साथ बेपरवाह जी पैदल चल कर रेत के ऊंचे-ऊंचे टीलों वाली जगह पर आए। उस समय काफी साध-संगत शहनशाह जी के पीछे-पीछे चल रही थी। वहाँ एक ऊंचे टिब्बे पर डंगोरी लगाकर शहनशाह जी ने फरमाया, ‘यहाँ पर ताकत अपना पूरा रंग दिखाएगी।’ इस तरह उस दिन पूजनीय शाहनशाह जी ने शाह सतनाम शाह मस्ताना जी धाम का अपने पवित्र वचनों द्वारा एक तरह से पहले ही उद्घाटन कर दिया था।
पूजनीय सच्चे दाता रहबर की पावन तीसरी बॉडी पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां से यही प्रार्थना है कि आप जी की दया-मेहर, रहमत परिवार पर हमेशा बरसती रहे जी।