One who can see his back from behind will not go into hell

जो पीठ पीछे से भी दर्शन कर लेगा, नरकों में नहीं जाएगा One who can see his back from behind will not go into hell
पे्ररक प्रसंग सतगुरु के रहमो-करम की एक प्रत्यक्ष मिसाल

सुमेर सिंह इन्सां अपनी आप बीती उपरोक्त एक प्रत्यक्ष घटना का जिक्र इस प्रकार करते हंै:-

पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी सच्चे रहबर ने जब पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को 28 फरवरी 1960 को अपना उत्तराधिकारी बनाया तो यह वचन फरमाए थे कि हम सरदार सतनाम सिंह जी को अपने सतगुरु दाता सावण शाह जी के हुक्म से सचखण्ड से लेकर आए हैं।

इस सतनाम नाम को जपती-जपती दुनिया मर गई, पर यह किसी को भी प्रत्यक्ष रूप में नहीं मिला। इसकी शरण में जो भी आएंगे वह आसानी से अपना जन्म सफल करके सतलोक-सचखण्ड चलें जाएंगे। जो इनके पीछे से पीठ के भी दर्शन कर लेंगे, वह भी नरकों में नहीं जाएंगे।

इस वचन को सार्थक करती हुई एक सच्ची घटना पूज्य हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने निम्नअनुसार बताई-

एक बार पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज किसी गाँव में सत्संग फरमाने गए हुए थे। उस गाँव में एक परिवार का एक व्यक्ति अत्याधिक शराबी-कबाबी व दुराचारी था। पारिवारिक सदस्य उसकी कुकृत्य हरकतों से अत्यन्त परेशान व दु:खी थे। उन्होंने उसे समझाया कि आज अपने गाँव में सच्चे सौदे वाले बाबा जी का सत्संग है, तू भी हमारे साथ सत्संग में चलकर अपनी इन बुराइयों से पीछा छुड़ा ले और अपना जीवन सुखमय बना ले।

गुरु जी ने तेरे जैसे लाखों व्यक्तियों की बुराइयां छुड़ा कर उनका जीवन सुखमय कर दिया है। उनके उस सदस्य ने उनकी बात मानने की बजाए उस दिन शराब का अत्याधिक सेवन किया। अत्याधिक नशे से उसने अपनी होश तक भी गंवा ली। उसका कोई पूर्वला संस्कार उदय हुआ। पूज्य परम पिता जी की रहमत से वह सत्संग समाप्त होने पर सत्संग पण्डाल की तरफ आ गया। तब तक परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज नाम शब्द अभिलाषियों को नाम (गुरुमंत्र) देकर अपनी गाड़ी पर विराजमान हो गए थे।

उस शराबी व्यक्ति को परम पिता जी के दर्शन नहीं हुए। उसको पीछे से जा रही गाड़ी के दर्शन हो गए। उसकी आयु भी शेष कम थी। कुछ दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गई। अपने बुरे कर्माें के अनुसार उसकी आत्मा चौरासी लाख जूनी यानि पशु जूनी में शेर की जूनी में आ गयी। अभी वह दो चार दिन का बच्चा ही था कि अकेले में तड़पते उस बच्चे की कोई सत्संगी-प्रेमी उठा कर दरबार में ले आया। उस शेर के बच्चे को पूज्य हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की हजूरी में पेश कर दिया।

पूज्य हजूर पिता जी उस शेर के बच्चे से बहुत प्यार करते। एक दिन सुबह की मजलिस के उपरांत मैं (सुमेर इन्सां) भी पूज्य पिता जी के दर्शन करने के लिए तेरावास में चला गया। पूज्य पिता जी तेरावास के हाल कमरे में कुर्सी पर विराजमान थे। शेर का बच्चा उस समय ऊपर छत पर था। पूज्य पिता जी के अन्दर पहुँचने की आहट सुनने से वह बच्चा झट से सीढ़ियों द्वारा नीचे आ गया और पूज्य पिता जी के चरणों को अपने पंजों से पकड़ने लगा गुरु जी के पवित्र चरण कमलों में आकर बैठ गया।

पूज्य हजूर पिता जी ने अपने चरणों से जूता उतार कर उसे सहलाना शुरू कर दिया। जैसे-जैसे शहनशाह जी उसे सहला रहे थे वैसे ही खुश होकर वह बच्चा पिता जी के चरणों को अपने पंजों से कस कर पकड़ने लगा। लगभग दस मिण्ट तक यह क्रम चलता रहा। तत्पश्चात पिता जी ने अपने कर-कमलों से पकड़ कर उसे मेज पर अपने सामने बिठा लिया। फिर अपने पावन कर-कमलों से उसे खूब मसलने लगे। जैसे ही पूज्य पिता जी उसे मसले जा रहे थे उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। कुछ समय मसलने के उपरान्त पूज्य पिता जी ने उसे फरमाया, ‘चल अब सुमेर के पास’।

मैं भी वहीं पिता जी के पास बैठा हुआ था और यह सब कुछ देख व सुन रहा था। शेर का बच्चा पिता जी के इतना मात्र कहने से ही एक दम मेज से छल्लांग मार कर मेरे पास आ कर मेरी गोदी में बैठ गया। मैं भी उसे अपने हाथों से सहलाने लगा। कुछ समय बाद पूज्य पिता जी ने फरमाया, ‘अब चल बहुत समय हो गया है।’ पूज्य पिता जी का इतना कहना ही था कि वह(शेर का बच्चा) मेरी गोद से निकल कर सीढियों द्वारा फिर से छत पर चला गया। उसके चले जाने पर पूज्य पिता जी मुझे कहने लगे, सुमेर, तुझे पता है यह कौन है? मैंने कहा पिता जी, मैंने तो आज इसे पहली बार ही देखा है। इस पर पूज्य पिता जी ने उपरोक्त सारी कहानी बताई।

इस कहानी से शहनशाह मस्ताना जी महाराज के वचनों की पुष्टी हो जाती है कि जो सतनाम जी के पीठ से भी दर्शन करेगा वह नर्काें में नहीं जाएगा।

अत: अब परम पिता जी ने अपनी दया मेहर से इस शेर के बच्चे का उद्धार कर दिया है।
पूर्ण संत महात्मा जो भी सहज-स्वभाव वचन करते हैं उन्हें पूरा भी करते हैं। उनके वचन अटल होते हैं। जमीन-आसमान बदल सकते हैं, सन्तों के वचन ज्यों के त्यों पूरे होते हैं। जैसे, ‘संत वचन पलटे नहीं पलट जाए ब्रह्मण्ड’।

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