सुमिरन करके दिमाग का सौ प्रसेंट इस्तेमाल करो
(रूहानी सत्संग रविवार,2 अप्रैल 2017) परमपिता शाह सतनाम जी धाम, डेरा सच्चा सौदा, सरसा
मालिक की साजी-नवाजी प्यारी साध-संगत जीओ! इस कलियुग के समय में मन-इंद्रियां बड़े फैलाव में हैं। इन्सान सोचता कुछ और है, हो जाता कुछ और है। कई बार इन्सान के अंदर कुछ और होता है, बाहर कुछ और होता है। यह आम-सी बात हो गई है। यह दोगलापन, दोगली नीति कलियुग की नीति है और सब लोग इसी को फॉलो किए जा रहे हैं।
मन का काम सब्जबाग दिखाना, इन्सान को मालिक से दूर ले जाना, भटकाना है।
लेकिन यह मन क्या है? यह कहां रहता है? आदमी के दिमाग को जो नेगेटिव, गलत विचार देता है, उसे ही मन की सोच कहा जाता है। इन्सान के अंदर जो पॉजिटिव विचार आते हैं, उसे आत्मा की सोच कहा जाता है। इस कलियुग में नेगिटिविटी चारों तरफ फैली हुई है। आप कोई भी छोटे से छोटा काम करने जाते हो, तो मन में यह भय पहले आ जाता है कि मैं ये करूंगा, कहीं फेल न हो जाऊं! कोई नुक्सान न हो जाए! कहीं गलती न हो जाए! ऐसा हो जाएगा!
ये हो जाएगा! वो हो जाएगा! यानि नेगिटिव थॉट्स (गलत विचार) पहले आते हैं और पॉजिटिव विचार आने का नाम ही नहीं लेते जल्दी से। इसका कारण यह है कि यह कलियुग का समय है और यहां मन का बोलबाला है। मन कभी भी किसी के अंदर अच्छी सोच आने नहीं देता। हर समय बुरी सोच इन्सान के अंदर चलती रहती है और इसी वजह से इन्सान परेशान, दु:खी रहता है।
इन्सान सुखी रह सकता है, इन्सान नेगिटिव थॉट्स को खत्म कर सकता है, अगर इन्सान सेवा और सुमिरन करे। कितने भी बुरे विचार आपके अंदर आ गए, अगर आपने पांच मिनट भी सुमिरन कर लिया, तो आए हुए बुरे विचारों का फल आपको नहीं मिलेगा और आपकी जिंदगी पर भी उन बुरे विचारों का असर नहीं होगा। लेकिन ध्यान रखना चाहिए कि अगर नेगिटिव विचारों को आप फॉलो करने लग गए, तो उसका असर जिंदगी पर लाजिमी होता है।
आप सोचते होंगे कि दुनिया में कितने-कु लोग हैं, जो इसकी परवाह करते होंगे! पूरे वर्ल्ड में लोग परवाह ही नहीं करते! हर रोज लोगों की जो प्लानिंग होती है, उसी के अनुसार चलते रहते हैं! कइयों की कोई प्लानिंग नहीं होती! उन्हें जो दिखा, जैसा मिला वैसा ही कर डालते हैं। तरह-तरह की बातें होती रहती हैं! ये क्या है! वो लोग भी खुश हैं! वो भी सुखी हैं! लेकिन भाई, यह आपका भ्रम है।
सबसे ज्यादा सुसाइड का, सबसे ज्यादा नेगेटिविटी का शिकार वही लोग होते हैं, जो ऐसा करते रहते हैं। दिखने में तो कहते हैं कि धरती बड़ी सुंदर लग रही होती है, लेकिन पता नहीं कब भूकंप आ जाए! उसी तरह, बाहर से जो दिखता है, अंदर से वैसा होता नहीं। और अंदर जो होता है, बाहर आता नहीं। इस दुनिया में लोग इतने शातिर हैं पढ़-लिखकर या किसी भी तरीके से, मानो कि वो अपने अंदर की बात बाहर आने नहीं देते और जिनके अंदर की बाहर आ जाती है, वो छुपा नहीं पाते।
लेकिन आजकल बड़े मास्टर-मार्इंड, बड़े तेज लोग हैं, वो दिखाते कुछ और हैं व होते कुछ और हैं! बहुत कम लोग होते हैं, जो जैसे होते हैं, वैसे दिखते हैं। मतलब, जो उनके दिलो-दिमाग में बात होती है, वही वो कहते हैं, ऐसे बहुत कम लोग होते हैं।
आजकल लोगों को बनावटीपन की बीमारी लगी हुई है। दिखावा कुछ अलग होता है, बोलचाल कुछ अलग होती है और अंदर की सोच कुछ अलग होती है। इन्सान के अंदर जो चलता है, वही इन्सान को खुशी और टेंशन देता है। कोई एक ही बात आपके अंदर लगातार चलती रहती है, तो आपके दिमाग पे टेंशन बढ़ती है। उदाहरण के तौर पर, कोई आपको बोरिंग बात सुनाता है, जिसमें आपकी रूचि नहीं और वो लगातार वही बात आपको सुनाता है, तो आप क्या कहते हैं, ‘यार, अका (बोर कर) दिया।’ (आम बोलचाल में लोग ऐसे ही कहते हैं।) वैसे मार्इंड भी आपका अक जाता है, जब एक ही नेगेटिव बात को पकड़कर आप बार-बार उसे रगड़ते रहते हो, तो आपका मार्इंड भी कहता है कि यार, अका दिया। और उसका अकाना, , टेंशन को लाना है। यही है सच्चाई।
चाहे आप सार्इंस पढ़ लीजिए, चाहे रूहानियत पढ़ लें, हकीकत तो यही है कि कोई भी एक बात लेकर आप बारम्बार रगड़ा-रगड़ी करते रहते हैं। उस नेगेटिव विचार को छोड़ते ही नहीं, तो टेंशन हो जाती है। लेकिन अपने आप थोड़े ही न छूटती हैं ऐसी बातें! उसके लिए चाहिए आत्मबल, विलपावर। अगर आत्मबल, विलपावर आएगा, तभी आप इन बातों को छोड़ सकते हैं और टेंशन-फ्री हो सकते हैं।
मन का काम होता है छोटी-छोटी बातें बनाना, उनको अंदर ही अंदर रखना और टेंशन पैदा करना। अब जैसे राम-नाम में, सत्संग में किसी को छींक आ गई, तो कहता है कि मैं तो भक्ति में आया था, छींक कैसे आ गई! मुझे जुकाम क्यों हो गया! मेरा सिरदर्द क्यों हुआ! …तो क्या ये गारंटी होती है कि आप राम-नाम में आओगे, तो ये नहीं होगा! दुनिया में रहते हुए तो आप उल्हाना नहीं देते? यह सब आपकी वजह से भी तो हो सकता है! आपने खान-पान में ऐसा कुछ ले लिया हो, शरीर को इस तरह का बना रखा हो कि गर्मी-सर्दी जैसे चेंज होता है मौसम, तो नेच्युरैली वैसा हो जाता है।
हां, यह जरूर है कि राम-नाम के निरंतर जाप से, ये गारंटिड है कि आने वाले पहाड़ जैसे कर्म, बीमारियां कंकर में बदल जाया करती हैं। हमने 6 करोड़ लोगों को गुरुमंत्र बताया और करोड़ों लोग उनमें से बताते हैं कि उनके साथ ऐसा अनुभव होता है। बहुत लोग तो अपने प्रमाण-पत्र साथ लेकर आए कि चौथे स्टेज का कैंसर था! राम-नाम से जुड़ गए, दिन-रात राम का नाम जपा और दोबारा जाकर चैकअप करवाया तो वो कैंसर नाम की कोई चीज ही नहीं थी! डॉक्टर हैरान रह गए! सार्इंस के लिए ये पॉसिबल नहीं, लेकिन भगवान, राम के लिए ये चुटकी में पॉसिबल है।
अगर वो दो बूंद से आदमी बना सकता है, तो उसी के शरीर में से किसी रोग को लगाना, हटाना राम के लिए तो ऐसे है, जैसे मक्खन से बाल निकालना। … तो ऐसी शक्तियों का नजारा यहां हमने करोड़ों लोगों के साथ होते देखा है। ऐसा कोई बाईचांस नहीं होता। यह कोई भुलेखा नहीं होता। किसी की जिंदगी बच जाए, उसके लिए यह भुलेखा कैसे हो सकता है? यहां ऐसे-ऐसे डॉक्टर साहिबान आते हैं, जिनके खुद के साथ ऐसा अनुभव हुआ है। वो सार्इंस को मानने वाले, पढ़े-लिखे डॉक्टर हैं, उनके साथ ऐसा हुआ है।
वो क्यों झूठ बोलेंगे? यहां हम अपनी बड़ाई नहीं कर रहे, ये सारी बड़ाई उस ओंकार, ओम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम की है। जिसका नाम आप लोग जपते हैं और हाथों-हाथ रिजल्ट आता चला जाता है।
फकीर, संत एक टीचर, मास्टर की तरह होता है। टीचर खड़ा होकर इसलिए पढ़ाता है, क्योंकि अगर वो खड़ा नहीं होगा, तो पीछे बैठे बच्चों को वो दिखेगा नहीं और जब तक वक्ता दिखाई नहीं देता, सुनने वाले को अच्छा-सा नहीं लगता। इसीलिए हमें ऊंची जगह पर बैठना पड़ता है।
वरना हममें ऐसा कुछ नहीं कि हम आपसे ऊंचा बैठें। दूसरा कारण यह भी है, पवित्र रामायण में एक जगह लिखा है कि कलियुग में कोई राम-नाम में आकर बैठेंगे, उस समय भगवान जी वहां हर किसी को कृपा-दृष्टि से नवाज रहे होंगे। …तो हम ऊंचे इसलिए भी बैठते हैं कि भगवान जी भी दिखें और आप लोग, जो इस कलियुग में राम-नाम में बैठे हैं, आप भी हमें दिखें। जब आप सत्संग में चलकर आते हो, तो ध्यान से जरूर सुना करो।
आदमी की दिमाग की शक्ति बड़ी जबरदस्त है। हम मानकर चलते हैं कि लोगों ने 5-10 प्रसेंट अपने दिमाग का इस्तेमाल किया और सुपर कम्प्यूटर तक बन गए! मिसाइलें बन गई! खात्मे का सामान बन गया! कहीं 50 प्रसेंट दिमाग का इस्तेमाल होने लग जाए, तो जिंदगी जीने का आसान और बहुत ही आरामदायक पहलू सामने आ जाए और हर कोई आराम से खुशी-खुशी जिंदगी व्यतीत कर सके और बेगम हो जाए।
यह संभव तभी है, जब ग्राफ 50- प्रसेंट तक जाए और जाए भी पॉजिटिव तरीके से। यानि अच्छाई की तरफ सोचे और यह तभी संभव है, जब आत्मबल बढ़ेगा और आत्मबल बढ़ता है प्रभु का नाम लेने से। जब तक आप सुमिरन नहीं करते, गुरुमंत्र का जाप नहीं करते, तो आत्मबल नहीं बढ़ता। आत्मबल इन्सान के अंदर होता है। यह कहीं बाहर से खरीदा नहीं जाता। आप सबके अंदर आत्मबल और दिमाग की सौ प्रसेंट शक्ति है। अब कौन, कितनी इस्तेमाल करता है, यह अलग बात है।
एक सज्जन था और उससे पूछा गया कि अगर दिमाग की कीमत चुकानी हो, तो कैसे चुकाएगा, जैसे, कोई बहुत बड़ा आॅफिसर है, उसके नीचे बहुत लोग काम करते हैं। सारी कंपनी की जिम्मेदारी उस पर है, अगर मानें, तो 100 रुपए में से उसे कितने रुपए देगा? वो कहता कि मैं 50 रुपए उसको दे दूंगा। फिर उसने पूछा कि अगर कोई वक्ता है, वकील है, सारा दिन बोलने वाला है, उसे कितने देगा? वो कहता कि उसे मैं 25 रुपए दे दूंगा।
दूसरा कहने लगा कि एक इन्सान ऐसा है, जो काम तो करता है, लेकिन बोलता कम है, ज्यादा काम नहीं करता! वो कहने लगा कि उसको मैं 75 रुपए दे दूंगा। फिर उसने पूछा कि जो काम करता ही नहीं, मजे से सोता है, खाता-पीता है? वो कहता कि उसे 100 रुपए दे दूंगा। दूसरा हैरान हो गया! उसने कहा कि मैंने तुझे कहा था कि दिमाग का मूल्य लगाना, ये तूने कैसे जवाब दिए! वो कहने लगा कि जो सारा दिन बोलता है, काम करता है, उन्होंने तो अपना दिमाग खर्च कर लिया। मैं खरीदूंगा, तो उनमें बचा ही क्या है! और जो सारा दिन सोता है, खाता-पीता है, करता कुछ नहीं, उसका दिमाग तो नया का नया पड़ा है। इसलिए मैं उसका 100 रुपए मूल्य लगाता हूं।
…तो हम कहते हैं कि हम नहीं चाहते कि आपका दिमाग 100 रुपए मूल्य लगाने के काबिल रह जाए! जैसे लाए हो, वैसा ही वापिस मत ले जाना! दुनिया में आए हो, इससे काम लो, बहुत ताकत है इस मार्इंड में। इससे अच्छे, भले विचार लो और काम करो। नेगेटिव काम इन्सान को शैतान बना देते हैं और पॉजिटिव इन्सान को इन्सान से महान् बना देता है और यहां तक कि भगवान से मिला देता है। इसलिए अपने दिमाग से अच्छे काम लिया करो।
आप अपने दिमाग को जितना इस्तेमाल में लाओगे, जितना इससे काम लोगे, उतना ही ये आपके लिए बढ़ता जाएगा, आपके और ज्यादा काम आता रहेगा। कोई भी पहेली आप बूझो, एक बार दिमाग लगाओ, हल नहीं मिला! फिर दिमाग लगाओ, हल नहीं मिला! फिर दिमाग लगाओ! फिर लगाओ और आखिर में समझ आ जाती है, तो समझ लो कि दिमाग की शक्ति थोड़ी बढ़ गई! एक बार दिमाग लगाकर छोड़ दिया कि हट, कौन मत्था मारे…!
तो आपका दिमाग जितना है, उतना ही रहेगा। आप सुमिरन, भक्ति-इबादत करो, तो सोचने की शक्ति बढ़ती है और सोचने की शक्ति बढ़ने से आप दिमाग को ज्यादा इस्तेमाल में लाते हैं और मालिक की कृपा-दृष्टि आप पर ज्यादा बरसती है।