कोरोना महामारी: 21वीं सदी का आदमी है बहुत लापरवाह
चाहे कोई माने या ना माने, लेकिन यह कटु सत्य है कि कोरोना को हमने अब खुद ही न्यौता दिया है। हमारी ही गलतियों का यह परिणाम है कि आज कोरोना ने अपने पैर पसारे हैं।
लाखों लोगों की जिंदगी चली गई है। यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि 2020 से सीखकर हमने 2021 में जो प्रबंध करने चाहिए थे, वे नहीं कर पाए। साथ ही कुछ हद तक आमजन भी इसके फैलाव में दोषी है।
कोरोना की 2021 में जोरदार पुनरावृत्ति और वर्तमान परिदृश्य में इसके प्रबंधन के कारणों पर चिंता व्यक्त करते हुए यह निष्कर्ष निकाला है हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के मानव संसाधन प्रबंधन के पूर्व निदेशक प्रोफेसर राम सिंह ने। उनका कहना है कि कोरोना का प्रबंधन 2020 में भारत के लिए एक शानदार सफलता थी। समय पर लॉकडाउन से बीमारी के प्रबंधन में आवश्यकताओं को पूरा करना। कुछ मौकों को छोड़कर जैसे कि कुछ धार्मिक मंडलियां, श्रम पलायन और सब्जी बाजार में कोविड प्रोटोकॉल को लागू करने में विफलता आदि।
तब फेस कवर या मास्क और दो गज सामाजिक दूरी है जरूरी और सेनिटाइजर का इस्तेमाल हर जगह हर किसी के लिए एक आदत बन गया था। परंतु 2021 की शुरुआत से और टीका जारी होने के पश्चात समाज के सभी वर्गों ने इसे हल्के में लिया। इसका परिणाम यह निकला कि कोरोना वायरस को अधिक खतरनाक रूप में उभरने का अवसर मिला।
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बच्चों, युवाओं में अधिक संक्रामक
2020 में कोरोना ने ज्यादातर बुजुर्गों को अपना शिकार बनाया, अब 2021 में यह युवाआें और बच्चों पर कहर ढा रहा है। फेफड़ों पर त्वरित हमला, लोगों के सभी उम्र समूहों पर हमला, प्रतिरक्षा प्रणाली को दरकिनार करना, अधिक घातक और साथ में हवा से फैलना आदि जानकारी आम आदमी तक पहुंचाई जानी चाहिए। इसलिए आइये देश के विद्वान डॉक्टरों और वैज्ञानिकों द्वारा निर्देशित कोरोना श्रृंखला को तोड़ने का प्रयास करें।
केवल टीकाकरण और एंटीवायरल दवाओं की व्यवस्था से ऐसे आबादी वाले देश के लिए एकमात्र तत्काल समाधान नहीं हो सकता। हमें संघीय सरकार द्वारा सुझाए गए एकीकृत दृष्टिकोण का पालन करने की आवश्यकता है। जिसमें मानव व्यवहार में परिवर्तन, धैर्य और रोग के परिवर्तन के अनुसार प्रतिक्रिया के कार्यान्वयन की गाइडलाइन को अपनाना है।
अब आत्म निरीक्षण का है समय
प्रोफेसर राम सिंह कहते हैं कि सरकारों के साथ सहयोग करें, धीरज से काम करें। डॉक्टरों की सुनें और साहस के साथ जीवन की हानि का सामना करें। क्योंकि जो कुछ •ाी हो रहा है वह मानव आबादी के संतुलन को बहाल करने के लिए हो रहा है। यूं कहें कि अधिक कठिन आपदाओं के लिए हमें तैयार करने के लिए समय का परीक्षण चल रहा है।
अब आत्म निरीक्षण का समय है। प्राकृतिक व्यवस्था को बहाल करने तथा धरती पर हर जीव के कल्याण के लिए अनियंत्रित मानव गतिविधियों और आबादी को रोकने के लिए मानव बुद्धि का उपयोग करने का अवसर है।
-संजय कुमार मेहरा, गुरुग्राम।