Anger महाभारत में कुरूक्षेत्र के युद्ध की समाप्ति के उपरांत पांडव श्रीकृष्ण के साथ धृतराष्टÑ के पास आए और अत्यंत विनम्रतापूर्वक खड़े हो गए। धृतराष्टÑ ने भीम को अपने पास बुलाया। श्रीकृष्ण ने देखा कि पुत्र-शोक के कारण धृतराष्टÑ अत्यंत क्रोध में हैं अत: उन्होंने भीम को धृतराष्टÑ के निकट भेजने के बजाय भीम की एक लौह-प्रतिमा दृष्टिहीन धृतराष्टÑ के सामने लाकर खड़ी कर दी।
वृद्ध धृतराष्टÑ ने जैसे ही भीम की लौह-प्रतिमा को अपने आलिंगन में लिया वैसे ही उसे याद आया कि इसी भीम ने मेरे अनेक पुत्रों को मार डाला है। यह विचार मन में आते ही धृतराष्टÑ ने क्षोभ से प्रतिमा को छाती से लगाकर कस लिया। प्रतिमा चूर-चूर हो गई। इसके बाद धृतराष्टÑ को होश आया तो पछताने लगे और कहने लगे कि हाय क्र ोध में आकर मूर्खतावश मैंने यह क्या कर डाला। मैंने भीम की हत्या कर डाली। इसके बाद श्रीकृष्ण ने उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत कराया तो उन्हें कुछ सांत्वना मिली और उन्होंने अपने क्र ोध को शांत करके पांडवों को आशीर्वाद देकर विदा किया। क्या दैनिक जीवन में हम भी इसी प्रकार क्र ोधाधिक्य को परिवर्तित कर उसे आशीर्वाद में बदल सकते हैं?
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हमारे जीवन में कई बार ऐसे क्षण भी आते हैं जब हम किसी के व्यवहार से अत्यंत मर्माहत होकर उसके प्रति घृणा और Anger क्रोध से भर उठते हैं। विवशता भी ऐसी होती है कि न तो हम अपने गुस्से का इजÞहार ही कर पाते हैं और न घृणा ही कम हो पाती है। घृणा और क्र ोध को लंबे समय तक मन में दबाए रखना और भी घातक है क्योंकि ये मनोभाव अंदर ही अंदर विस्फोटक रूप धारण कर लेते हैं। जब इनका अचानक विस्फोट होता है तो स्थिति नियंत्रणातीत हो जाती है। वैसे भी नकारात्मक भाव हमारे भौतिक शरीर के लिए अनिष्टकारी हैं क्योंकि इनके कारण शरीर की स्वाभाविक रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और हम आसानी से विभिन्न व्याधियों के शिकार हो जाते हैं। अत: यथा शीघ्र मन में दबी घृणा और क्र ोध को निकाल कर बाहर कर देना अत्यावश्यक है।
फिÞल्मों के कुछ दृश्य देखिए। नायक और नायिका के बीच मनमुटाव हो जाता है अथवा एक दूसरे पर बेवफाई और ख़ुदग के आरोप प्रत्यारोप शुरू हो जाते हैं तो क्या होता है? जो पीड़ित होता है वह दूसरे को हानि पहुँचाने की अपेक्षा या तो स्वयं को हानि पहुँचाता है या फिर सामने जो कुछ भी आता है, उसे तोड़ना-फोड़ना शुरू कर देता है।
इस तोड़-फोड़ में भी उसे सुकून मिलता है। यह हानि भी उसे लाभ पहुँचाती है क्योंकि इससे उसका क्र ोध, उसकी घृणा तथा उसका दुख कम हो जाता है। यदि आपके मन में भी क्र ोध, घृणा अथवा हिंसा के भाव उत्पन्न हों तो ऐसा ही कीजिए। नकारात्मक घातक मनोभावों का परिष्कार करने के लिए किसी व्यक्ति की बजाए किसी जड़ या निर्जीव वस्तु का सहारा लीजिए।
यदि ग्स्से तथा तनाव से मुक्त होना चाहते हैं तो एक तरीकÞा यह भी है कि घर के अधूरे पड़े कामों अथवा कबाड़ पर हाथ आजÞमाएँ। कई बार कुछ अधूरे काम पड़े होते हैं जिन्हें हम निपटाना चाहते हैं अथवा साफÞ-सफÞाई करना चाहते हैं। ग्Þाुस्से अथवा घृणा की अवस्था में हम घर के कूड़े-कबाड़े से आसानी से मुक्ति पा सकते हैं जैसे पुराना टूटा फÞर्नीचर, पुराने कपड़े, पुराने अख़बार, पत्र-पत्रिकाएँ व निरर्थक पुस्तकें, पुराने बिल, रसीदें व गारंटी कार्डस तथा ऐसे दस्तावेजÞ जो किसी भी तरह जÞरूरी नहीं होते।
कई बार मोहवश हम घर की पुरानी तथा बेकार चीजÞों को एकत्र करते रहते हैं। जब हम ग्Þाुस्से या घृणा की अवस्था में होते हैं तो किंचित निर्मम हो जाते हैं। ऐसी अवस्था में बेकार चीजÞों के प्रति मोह कुछ हद तक कम हो जाता है जिससे अनुपयोगी तथा बाधा डालने वाली वस्तुओं से छुटकारा पाना सरल हो जाता है। बेकार की चीजÞों को तोड़ने-फोड़ने अथवा कागÞजÞों को फाड़कर फेंकने की प्रक्रि या में ग्Þाुस्सा और घृणा जैसे मनोभाव भी तरल होकर तिरोहित हो जाते हैं।