पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत
‘असीं तो कल ही रानियां गए थे, तुसीं सोए पड़े थे’ ‘Asini had gone to queens yesterday, you had slept’
सत्संगियों के अनुभव
सतपाल बड़ा काका इन्सां निवासी रानियां जिला सरसा से परम पूजनीय हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत का वर्णन करता है जो उसने सन् 2003 में हजूर पिता जी की हजूरी में ब्यान किया है:-
मेरे सोहणे दातार जी! मैं आप जी की दया मेहर से यह बात पूरे दावे से कहता हूँ कि आप जी गुफा(तेरावास) में नहीं होते। जहाँ-जहाँ जीव आप को पूरी तड़प से याद करता है, आप जी वहाँ जाकर जीव को दर्शन देते हो जी।
पिता जी, कई जग बीती सुनाते हैं, मैं अपनी हड्डबीती सुना रहा हूँ जी। मेरा सारा परिवार सेवा पर आया हुआ था। अलार्म खराब था। मैं शिखर की छत्त पर जाकर सो गया। मैं ख्यालों में आप जी को कह रहा था, पिता जी (हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) चार बजे उठा देना जी, विनती बोलनी है, भूल न जाना जी। आज मैं घर में अकेला ही हूँ जी। यह सोचते-सोचते मैं सो गया। पौने चार बजे मेरी चारपाई को किसी ने जोर से हिलाया।
मैं नींद में कह रहा था कि दूध फ्रिज में से लेना, मेरी नींद क्यों खराब करता है? क्योंकि पड़ोसी का दूध हमारे फ्रिज में था। थोड़ी देर बाद फिर एक झटका-सा लगा तो मैं उठकर बैठ गया। आस-पास में देखा, कोई नहीं था। फिर ऊपर से उतर कर नीचे चौबारे में आ गया। दीवार घड़ी पर टाईम देखा तो चार बजे का टाईम था।
आपजी को कहा था, आप जी ने आकर उठा दिया। परन्तु मैं अपराधी पहचान न सका। बाद में मैं बहुत पछताया व सोचा, प्यारे पिता जी, दस मिनट और रुक जाते, दोनों बाप-बेटा दूध में पत्ती डाल कर पीते, बातचीत करते। पिता जी, आप तो आए और गए। पिता जी, जब परिवार सेवा करके वापिस लौटा, हमारे नीचे वाले मकान में एक मैडम किराए पर रहती है। वह मेरी पत्नी को कहने लगी, ‘दीदी! आज सुबह चार बजे मैंने मकान की छत्त पर सरसे वाले आपके गुरुजी (हजूर पिता जी) को देखा है।’
वाह दयालु पिता जी, आप धन्य हो। आप जी ने उसको भी दर्शन दिए। कुछ दिनों के उपरान्त वह मैडम हमारे साथ सरसा दरबार में आई, आप जी के दर्शन करके वैराग्य में आ गई और रोने लगी। हमें कहने लगी, पूजनीय हजूर पिता जी में से मुझे हमारे गुरु-महाराज के दर्शन हुए हैं। जब आप सरसा दरबार जाया करो तो मुझे जरूर ले जाया करो।
उसी समय के दौरान रानियां के प्रेमियों ने गुफा में पूजनीय हजूर पिता जी के आगे अर्ज की कि पिता जी! आप जी रानियां में चरण टिकाएं जी! तो आप जी ने फरमाया, ‘भाई! असीं तो कल ही रानियाँ में गए थे, तुसीं सोए पड़े थे। दरबार में चारपाइयां पड़ी हुई थी। चद्दरें बिछी हुई थी।’ यह सुन कर सारी संगत ने कान पकड़े और कहा पिता जी हम भूल जाते हैं, आप अपने वादे पर पक्के रहते हो जी।
पिता जी! इन बातों से पता चलता है कि आप जी गुफा में नहीं होते, जहां-जहां आप जी को कोई याद करता है, वहाँ-वहाँ जाकर दर्शन देते हो जी। आप जी फरमाते हो,‘भाई हजम किया करो, दर्शन हों तो।’ पिताजी हमसे तो आप जी को बताए बिना नहीं रहा जाता। आप जाणो आप का काम जाणे। हमने तो सच जो देखा, सुना कानों से तेरावास में सुना, लिख दिया। अब आप जाणो, आप का काम जाणे।
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