अपने गुरु-मुर्शिद का अवतार दिवस-सत्संगियों के लिए बहुत बड़ा और पवित्र पर्व होता है। वो महान सतगुरु जिसने जीवों को अपना ईश्वरीय प्यार बख्श के संसार सागर से मुक्त किया दुनिया के झमेलों से जिन्होंने उनका जीते-जीअ पीछा छुड़ाया, ऐसे परम दयालु सतगुरु का साध-संगत स्वास-स्वास से शुक्रगुजार है, धन धन गाती है। सतगुरु मौला आज के दिन दुनिया पर अवतार धार के आए और दुखी-पीड़ितों तथा अपने मन व कर्माें के सतायाओं के हृदयों पर ठंडक बरसाई।
अपने सतगुरु मुर्शिदे-कामिल का पावन अवतार दिवस साध-संगत हमेशा धूम-धाम से मनाती है। महापुरुषों की पवित्र वाणी में दर्ज है कि परम पिता परमेश्वर अपना हर कार्य अपने अवतार संत-महापुरुषों के रूप में करता है। ‘संतां हत्थ-सौंपी पूंजी’। चाहे कोई माने या न माने परन्तु यह सौ फीसदी सच है। और यह भी बिल्कुल सच है कि भगवान को मिलने का रास्ता जिसने भी बताया, जिसने उसके भक्तों को भगवान से मिलाया, वो माता की कोख से पैदा हुए एक संत ही थे। वो परम दयालु संत, जिसने हमें धर्माें का पता बताया, जिसने हमें धर्म-मर्यादा अनुसार चलना सिखाया, जिसने इन्सान को भगवान से मिलाया वो कोई और नहीं, वो संत ही थे।
अलग-अलग धर्मांे की भाषा में उन्हें गुरु, पीर-फकीर, मुर्शिदे-कामिल आदि कुछ भी कहें, थे तो हमारे और आपकी तरह एक इन्सान ही। संतों की वाणी में आता भी है, ‘ब्रह्म बोले काया के ओहले। काया बिन ब्रह्म क्या बोले।’ तो यह कहा जा सकता है कि सारे पूर्ण गुरु, संत, पीर-फ कीर जो परम पिता परमात्मा में अभेद है, जिसने अल्लाह, राम वाहेगुरु, गॉड को अपने अंतर-हृदय में प्रकट कर लिया है, जब-जब भी वो धरत पर आए वो एक इन्सान के रूप में ही आए।
नाम चाहे कोई रखा गया था, एक माता की कोख से पैदा हुए और पिता के साय में पले, बड़े हुए तथा अन्य सारी क्रियाएं भी उनकी एक इन्सान (हमारे-आप) जैसी रही हैं, तो कहने का मतलब कि उस परम पिता परमात्मा ने दुनिया में भूले-भटकों, अपने धर्म-कर्म व परमेश्वर को भूले हुओं, परमेश्वर के आस्तित्व से गुमराह हुओं को समझा-बुझा के सीधे रास्ते पर चलाने के लिए हर युग व हर समय-काल में गुरु, संत का चोला धारण किया।
भाव एक इन्सान के रूप में जन्म लिया, अवतार धारण किया। इसी पवित्र कड़ी के अंतर्गत परम पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां का विस्तार पूर्वक जीवन वर्णन डेरा सच्चा सौदा के पवित्र इतिहास में मिलता है। आप जी डेरा सच्चा सौदा में बतौर तीसरे गुरु डॉ. एमएसजी के नाम से डेरा श्रद्धालुओं के दिलों में बसते हैं।
पावन जीवन झलक:-
पूजनीय गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां गांव श्री गुरुसर मोडिया तहसील सूरतगढ़ जिला श्री गंगानगर (राजस्थान) के रहने वाले हैं। आपजी का जन्म 15अगस्त 1967 Avatar day को पूजनीय पिता नम्बरदार सरदार मग्घर सिंह जी के घर, परम पूजनीय माता नसीब कौर जी इन्सां की पवित्र कोख से हुआ। आपजी सिद्धू वंश से संबंध रखते हैं। 15 अगस्त 1967 का पावन दिवस रूहानियत के इतिहास में सुनहरी अक्षरों में दर्ज है जिस दिन परम पिता परमेश्वर पूजनीय गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के रूप में बंदी-छोड़ बन कर आए, मानवता व सृष्टि के उद्धार के लिए खुद अवतार धारण किया। पूजनीय गुरु जी अपने पूज्य माता-पिता की बहुत ही लाडली इकलौती संतान हैं। आप जी के पवित्र जन्म के साथ अनेकों-अनेक दिलचस्प घटनाएं जुड़ी हुई हैं, जो कि इस प्रकार वर्णन योग्य हैं।
पूज्य संत त्रिवैणी दास जी का गांव श्री गुरुसर मोडिया में बहुत ज्यादा मान-सम्मान था और पूजनीय बापू जी का उनके प्रति हद से ज्यादा स्रेह, प्यार व सत्कार था। लगभग 18 वर्ष विवाह को बीत गए थे, परन्तु कोई संतान नहीं हुई थी। कभी-कभी बहुत ही गमगीन अवस्था में पूज्य बापू जी अपने अंदर की इस पीड़ा को संत त्रिवैणी दास जी के सामने बता दिया करते कि इतने बड़े खानदान का एक वारिस तो होना चाहिए। पूज्य संत जी को परम पिता परमेश्वर की भक्ति के बल पर अपने अंतर-हृदय में बहुत ज्ञान था।
वह पूज्य बापू जी की अंदरूनी अवस्था से भलीभांति जानकर थे। जब भी कभी ऐसी बात होती वह पूज्य बापू जी को भरपूर हौंसला देते कि नम्बरदार जी, आप हौसला रखें। आप जी के घर कोई ऐसा-वैसा बच्चा नहीं, बल्कि खुद रब्ब का रूप जन्म लेगा, दिल छोटा न करो, वो जरूर आएगा। और जब समय आया, पूजनीय गुरु जी ने अपने पूज्य माता-पिता के घर 18 वर्षाें के बाद अवतार धारण किया। पूजनीय गुरु जी के अवतार धारण करने पर संत त्रिवैणी दास जी ने पूज्य बापू जी को ढेर सारी बधाईयां देते हुए कहा कि खुद परम पिता परमेश्वर ने आप जी के घर अवतार धारण किया है।
उन्होंने यह भी बताया कि यह आप जी के पास 23 साल तक ही रहेंगे और उसके बाद अपने मकसद की पूर्ति के लिए, ईश्वरीय कार्य यानि जीव व समाज उद्धार के लिए उनके पास चले जाएंगे जिन्होंने इन्हें आप जी के घर आप जी का लाडला बना कर भेजा है।
आप जी अपने पूज्य माता-पिता जी के बहुत ही लाडले हैं। विशेष करके पूज्य बापू जी तो अपने से एक पल के लिए भी आपजी को दूर नहीं करना चाहते थे।
उम्र मात्र चार कु साल, पूज्य बापू जी आप जी को अपने कंधों पर बिठा कर खेतों में जा रहे थे। अचानक आप जी ने वहां पास ही एक खेत की तरफ उंगली का ईशारा करके पूज्य बापू जी से कहा, ‘इधर अपने खलिहान हुआ करते थे।’ यह सुनकर पूज्य बापू जी भी एकदम हैरान हो गए थे कि हमारे सांझे खलिहान तो वाकई वहां ही हुआ करते थे, परन्तु वो बहुत अरसा पहले की बात है। मतलब, पूजनीय गुरु जी के जन्म से भी कई साल पहले।
फिर तुरंत संत त्रिवैणी दास जी के वचन भी याद आ गए कि ‘आपके घर स्वयं भगवान स्वरूप आए हैं।’ Avatar day
इसी प्रकार एक और जिक्र है, पूज्य बापू जी अपनी कुछ जमीन हर साल ठेके पर दे दिया करते थे। इस बार जब वोही ठेकेदार भाई पूजनीय बापू जी से अगले साल के लिए ठेके की बात कर रहे थे तो पूजनीय गुरु जी ने (उसी बाल अवस्था में) अपने पूज्य बापू जी से उस जमीन पर खुद काश्त करने को कहा। इस पर ठेकेदार भाईयों ने पूज्य बापू जी से अपील की कि आप जमीन नहीं दोगे तो हम खाएंगे क्या! हम तो फिर भूखे मर जाएंगे! तो पूजनीय गुरु जी ने अपनी दूसरी साईड वाली जमीन देने के लिए कहा कि वो वाली जमीन उन्हें दे दें।
इस पर पूज्य बापू जी ने खुद भी हामी भरते हुए कहा कि ‘काका ठीक कहता है।’ असल में पूज्य बापू जी ने अपने प्रत्यक्ष अनुभवों के द्वारा अपने लाडले में परमात्मा की झलक को महसूस कर लिया था और इसीलिए बापू जी अपने लाडले की हर बात पर अपनी सहमति जताया करते थे, वास्तव में इस हकीकत का राज भी संत त्रिवैणीदास जी ने पूज्य बापू जी को शुरू में बता दिया था। उसी जमीन पर उस वर्ष बापू जी ने चनों की बिजाई करवाई। ईश्वर की कृपा से बारिशें अच्छी हुई और उस बरानी जमीन पर उस वर्ष चनों की भरपूर फसल हुई। ईश्वरीय माया को निहार कर पूज्य बापू जी का अपने लाडले के प्रति विश्वास और दृढ़ हुआ। ये थी पूज्य गुरु जी के नूरी बचपन की कुछ दिलचस्प घटनाएं।
यहां जो कुछ भी उपरोक्त अनुसार वर्णन किया जा रहा है यह किसी किस्म के किस्से-कहानियों का हिस्सा नहीं है बल्कि सौ फीसदी असलियत व सच्ची घटनाएं हैं और श्री गुरुसर मोडिया का लगभग हर समकालीन शख्स इस वर्णनों की छाती ठोक कर हामी भरता है।
उन्हीं दिनों गांव में बरसाती पानी को एक बड़े आकार की डिग्गी में संग्रह करने की चर्चा चली। गांव के बड़े बुजुर्गाें का यह सुझाव प्रशंसनीय था। सभी ने सहमति प्रकट की। अपने इस कार्य की आज्ञा लेने के लिए अथवा यह कह लें कि संतों के बचन करवाने के लिए, क्योंकि गांव का हर सांझा कार्य संतों के वचनानुसार ही किया जाता था, ताकि इतना बड़ा कार्य निरविघ्नता से सफलतापूर्वक पूरा हो, गांव के कुछ मुखिया लोग संत त्रिवैणी दास जी को मिले। सारे गांव वासियों का संत जी में दृढ विश्वास था, क्योंकि संत जी हमेशा गांव तथा गांव वासियों की भलाई की ही बात करते थे।
संत जी उनके फैसले से बहुत खुश थे। उन्होंने डिग्गी की खुदाई करने का जहां महूरत (दिन-समय) बताया साथ ही यह भी कहा कि डिग्गी खुदाई के कार्य का शुभ-आरम्भ नम्बरदार साहिब के बेटे (पूज्य हजूर पिता जी) से पहला टक लगवा के करेंगे। वैसे तो सभी की सौ प्रतिशत सहमति थी, सभी ने सत् वचन कहा, परन्तु हो सकता है दो-चार व्यक्तियों ने शायद अपने मत अनुसार कहा हो कि वो तो (पूज्य गुरु जी) अभी बहुत नन्हा, छोटा बच्चा है, कसी-फावड़ा कै से उठा सकेगा? परन्तु संत जी ने ज़ोर देकर अपने वचनों को दृढ़ता पूर्वक कहा कि ‘पहला टक तो आपां नम्बरदार के बेटे से ही लगवाएंगे।’ पूज्य संत जी के मार्ग-दर्शन में वह समस्त कार्य सफलता पूर्वक पूर्ण हुआ।
गांव में खुशी का माहौल था। प्रचलित प्रथा के अनुरूप मीठे चावलों का यज्ञ किया गया। समस्त गांव वासियों ने पुण्य के इस कार्य में अपना बढ़चढ़ कर सहयोग किया। संत जी ने समूह गांव वासियों को यह वचन किया कि इस डिग्गी का पानी कभी खत्म नहीं होगा चाहे पानी का कितना भी प्रयोग होता रहे। क्योंकि इसका मुहूर्त आपां एक उस महापुरुष, शख्सियत से करवाया है, जिन की महान हस्ती का पता समय आने पर सब को चलेगा। ये हैं पूज्य गुरु जी के नूरी बचपन की कुछ सच्चाईयां। और भी कई ऐसी अदभुत व दिलचस्प घटनाएं हैं जो आप श्री गुरुसर मोडिया के सत्कारयोग्य गांव वासियों से मिलकर जान सकते हैं।
कर्मठता की मिसाल:-
पूजनीय गुरु जी कर्मठता की मिसाल हैं। Avatar day यह बात हम पहले ही बता चुके हैं कि पूजनीय गुरु जी का जन्म एक बहुत ही बड़े लैण्डलॉर्ड (जमीदार) परिवार में हुआ है। आप जी ने 7-8 वर्ष की आयु में ही पूज्य बापू जी के इतने बड़े ज़मीदारा कार्य को पूर्ण तौर पर संभाल लिया था। राजस्थान के इस एरिया में जब से नहरें आई, आप जी ने अपनी सख्त मेहनत से, जहां पहले केवल 20 एकड़ जमीन में पानी लगता था, पूरी की पूरी जमीन में नहरी पानी से सिंचाई होने लगी है।
ट्रैक्टर तो आप जी ने 7-8 वर्ष की आयु में चलाना शुरू कर दिया था। चाहे ड्राईवर सीट पर बैठे आप जी के पैर कलच-बे्रक पर नहीं पहुंच पाते थे (सीट से खडेÞ होकर कलच -बे्रक लगाना पड़ता था) परन्तु आप जी ने अपनी ज़मीन पर बहुत सख्त मेहनत की। इस सच्चाई को हर गांव वासी जानता है और यह सच्चाई भी सब भली-भांति जानते हैं कि जब से आप जी ने कृषि कार्यों को अपने हाथ में लिया था, पढ़ाई भी करना और साथ-साथ गेम्ज भी खेलना, फसल भी दोगुनी-चौगुनी तथा आमदन भी पहले से दोगुनी, चौगुनी होती रही है।
खेतीवाड़ी का सारा कार्य आप जी स्वयं अपने हाथों से किया करते, हालांकि सहयोग के लिए पूज्य बापू जी के कितने ही सीरी, नौकर आदि भी थे। इसी तरह डेरा सच्चा सौदा में आकर आप जी ने अपनी सख्त कर्मठता की मिसाल पेश की। आप जी की सख्त मेहनत व प्रेरणा से ही डेरा सच्चा सौदा शाह सतनाम जी धाम में वो कौन-सा फल व सब्जियां हैं (नाशपती, सेब, चीकू, आडू, केला जैसे फल तथा बादाम, अखरोट जैसे ड्राईफ्रूट) जो यहां के रेतीले टीलों को उपजाऊ बना के न उगाए हों। पूजनीय गुरु जी की ऐसी सख्त मेहनत के हर कोई देखने-सुनने वाले कायल हैं।
हम तुझ में तुम मुझ में:-
जैसे-जैसे पूजनीय गुरु जी अपनी आयु के पड़ाव में आगे बढ़ते गए आप जी के मानव-हितैषी और समाज भलाई कार्याें का दायरा भी और बड़ा होता गया और खास करके डेरा सच्चा सौदा में आने के बाद मानवता की सेवा की दिन-रात चर्चा होती, ईश्वरीय मर्यादा के अनुसार आपजी ने अपने सच्चे मूर्शिदे-कामिल परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज से 5-6 साल की आयु में नाम-शब्द, गुरुमंत्र प्राप्त किया।
ज़ाहिर है, जैसे आप जी ने अपने प्यारे-मुर्शिद को परम पिता परमात्मा के रूप में पाया, उसी तरह पूजनीय परम पिता जी ने नाम-शब्द, गुरुमंत्र के रूप में अपना ईलाही स्वरूप प्रदान करके अपने भावी जानाशीन, उत्तराधिकारी के रूप में आप जी को पा लिया। और जब सही वक्त आया यानि 23 सितम्बर 1990 को पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने आप जी को 23 वर्ष की आयु में ही डेरा सच्चा सौदा में बतौर तीसरे पातशाह विराजमान करके इस वास्तविकता को पूरी दुनिया पर जग-ज़ाहिर कर दिया कि ‘हम तुझ में तुम मुझ में’, कोई शंका भ्रम भी किसी के मन के अन्दर नहीं-रहने दिया जब यह वचन भी किए कि हम थे, हैं और हम रहेंगे।
एक और दिलचस्प व आश्चर्यजनक सच कि पूजनीय परम पिता जी ने गुरगद्दी के बारे वसियत भी कई दिन पहले ही बनवा ली थी। वसियत में विशेष तौर पर सेवादारों को यह लिखने के लिए हुक्म फरमाया कि ‘आज से ही’ डेरा सच्चा सौदा की जमीन-जायदाद और साध-संगत की सेवा संभाल आदि हर तरह की जिम्मेवारी ‘आज से ही’ (यह शब्द विशेष तौर पर दर्ज करवाए) इनकी (पूजनीय गुरु संत डॉ. गुरमीत राह रहीम सिंह जी इन्सां की) है।’ हालांकि वसियत का आमतौर पर मतलब हमारे बाद होता है , परन्तु पूजनीय परम पिता जी ने गुरगद्दी बख्शिश करने से कई दिन पहले ही तैयार करवाई अपनी वसियत में ‘आज से ही’ शब्द लिखवाए।
जब पूजनीय परम पिता जी स्वयं अपनी वसियत में यह सब लिखवा रहे हैं, तो किसी के किंतु-परन्तु का सवाल ही नहीं हो सकता।
रूहानियत व मानवता का करवां दिन दोगुनी रात-चौगुनी:-
पूजनीय गुरु जी 23 सितम्बर 1990 में डेरा सच्चा सौदा गुरगद्दी पर विराजमान हुए। इसके साथ ही समाज व मानवता भलाई के कार्याें की जैसे बाढ़ आ गई हो। एक तरफ जहां मालिक परम पिता परमात्मा का रूहानी कारवां दिन-रात बढ़ता चला गया और दूसरी तरफ साथ ही साथ डेरा सच्चा सौदा साध-संगत के भरपूर सहयोग से विश्व-स्तरीय भलाई कार्य करके बच्चे-बच्चे के मन में घर कर गया। पूजनीय गुरु जी के मार्ग-दर्शन में डेरा सच्चा सौदा द्वारा चलाए 134 मानवता भलाई कार्याें से आज पूरा विश्व वाकिफ है।
भलाई कार्याें के विश्व रिकार्ड:-
पूजनीय गुरु जी की पाक पवित्र प्रेरणा और साध-संगत का हौसला व सहयोग वर्णन से परे है। साध-संगत जिस भी कार्य को(सेवा-कार्य को) हाथ-डालती वो ही कार्य विश्व रिकार्ड बन जाता। साध-संगत के सहयोग से डेरा सच्चा सौदा ने रक्तदान के क्षेत्र में तीन विश्व रिकार्ड स्थापित किए है। पहला-7 दिसम्बर 2003 को 15432 यूनिट, दूसरा 10 अक्तूबर 2004 को 17921 यूनिट और तीसरा 8 अगस्त 2010 को 43732 यूनिट रक्तदान करने पर। इसी तरह पौधारोपण पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में चार विश्व रिकार्ड इस प्रकार हैं।
पहला 15 अगस्त 2009 को 1 घंटे में 9,38007 पौधे लगाने पर और इसी दिन पूरे दिन यानि 8 घंटों में 68,73451 पौधे लगाने पर दूसरा विश्व रिकार्ड बना। तीसरा 15 अगस्त 2011 को एक घंटे में 19,45,535 पौधे और चौथा विश्व रिकार्ड 15 अगस्त 2012 को 1 घंटे में 20,39,747 पौधे लगाने पर बना।
इसके अतिरिक्त अन्य भी अनेकों समाज भलाई के क्षेत्र में अनेक विश्व रिकार्ड डेरा सच्चा सौदा के नाम पर दर्र्ज है और ये सारे विश्व रिकार्ड गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड रिकार्डज में डेरा सच्चा सौदा के नाम दर्ज हैं। इस के अतिरिक्त डेरा सच्चा सौदा के दो रिकार्ड लिम्का बुक आॅफ रिकार्डज में भी दर्ज हैं और दर्जनों अन्य रिकार्ड एशिया व इण्डिया बुक आफ रिकार्डज में भी डेरा सच्चा सौदा के नाम हैं।
सफाई महा अभियान:-
हो पृश्वी साफ मिटे रोग अभिशाप के बैनर तले 21 व 22 सितम्बर 2011 को देश की राजधानी दिल्ली से शुरू हुए सफाई महा अभियानों के द्वारा पवित्र तीर्थ-स्थान ऋषिकेष व श्री हरिद्वार में पवित्र गंगा जी, तीर्थ धाम श्री जगन्नाथ पुरी(ओडिशा), श्री अजमेर शरीफ समेत दर्जनों सफाई अभियान चला कर पूजनीय गुरु जी ने साध-संगत के सहयोग से कई राज्यों के बड़े-बड़े शहरों व महानगरों को महासफाई की सौगात प्रदान की, जो दुनिया-भर में आज भी याद किया जाता है। बल्कि विदेशों के कई हिस्सों में वहां की साध-संगत द्वारा सफाई अभियान, पौधा-रोपण जैसे अनेकों भलाई कार्य आज भी ज्यों के त्यों किए जा रहे हैं।
रक्तदान जीवन दान:-
रक्तदान करने की अब जहां कहीं बात होती है डेरा सच्चा सौदा के श्रद्धालु खुद वहां पर पहुंच के अपना रक्तदान करते हैं। पूजनीय गुरु जी ने डेरा सच्चा सौदा में रक्तदानियों को ‘चलते-फिरते ब्लड पंप’ कहकर नवाजा है। पिछले दिनों वर्ल्ड थैलेसीमिया दिवस पर देश भर के ब्लड बैंकों से डेरा सच्चा सौदा के यहां रक्तदान सम्बंधी आई मांग के आधार पर कोरोना महा बीमारी के कहर की परवाह न करते हुए डेरा श्रद्धालुओं ने पीड़ित बच्चों के लिए 7980 यूनिट रक्तदान किया जो थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों के लिए ‘एक मुस्कान’ देने में समर्थ हुआ। पूजनीय गुरु जी की प्रेरणा अनुसार डेरा श्रद्धालुओं ने भी यह प्रण किया हुआ है कि रक्त की कमी के कारण किसी को भी मरने नहीं दिया जाएगा और हमारी यह कोशिश हमेशा लिए जारी रहेगी।
समाजोत्थान (समाज उपकार) की मिसाल:-
समाज उपकार की बात करें तो किसी के ज़हन में भी वेश्याओं व किन्नरों के उद्धार का ख्याल तक नहीं आया होगा। पूजनीय गुरु जी का यह उपकार अति सराहनीय है कि पूजनीय गुरु जी ने कई वेश्यायों को गंदगी भरी जिंदगी से निकाल के उन्हें शुभ देवी के रूप में अच्छे खानदानों में शादी-विवाह करके घर व वर दिया है। इसी तरह किन्नर भाईचारे को सुखदुआ समाज का नाम देकर देश की सर्वोच्च अदालत(सुप्रीम कोर्ट) से उन्हें थर्ड जैंडर के नाम से देश की नागरिकता दिलवाईऔर साथ ही देश के नागरिक होने के नाते उन सभी सुविधाओं का हकदार बनाया जो देश के किसी आम नागरिक को मिलती हैं। इस प्रकार पूजनीय गुरु जी द्वारा निर्धारित मानवता भलाई कार्याें की बहुत लम्बी फहरिश्त है और यदि इन 134 भलाई कार्याें का विस्तार से वर्णन किया जाए तो कलम व जुबान भी थक जाएगी, इन्हें वर्णन नहीं किया जा सकेगा।
राष्टÑ के प्रति एक और उपकार:-
पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने अपने पावन अवतार दिवस पर यानी 15 अगस्त, को देश की आज़ादी की वर्षगांठ के अवसर पर हर साल ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने एवं वातावरण सुरक्षा(पर्यावरण संरक्षण) के आह्वान पर केवल देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अनेक स्थानों पर साध-संगत पृथ्वी को हरा-भरा बनाने की जी जान से कोशिश करती है। इस प्रकार पूज्य गुरु जी के मानवता के प्रति उपकारों को कभी कोई भुला नहीं सकता।
पूजनीय गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पवित्र 53वें अवतार दिवस 15 अगस्त की सारी सृष्टि को बधाई हो जी।
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