सतगुरु की रहमत से कैंसर ठीक हुआ -सत्संगियों के अनुभव
पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत
डॉ. पृथ्वी राज नैन इन्सां, चेयरमैन डेरा सच्चा सौदा सरसा से अपना करिश्मा इस प्रकार ब्यान करते हैं:-
मैं ( डॉ. पीआर नैन इन्सां) ने 2001 में एक दिन अपनी थायराईड में एक गाँठ महसूस की। मैंने इसे अपने साथी डॉ. एम.पी. सिंह (सर्जन) से चैक करवाया। वह इसका निरीक्षण करके हैरान हो गया। मैंने उसके चेहरे के भावों से अनुभव किया कि कुछ चिन्ताजनक बात है।
अगले दिन मैं ऐम्स नई दिल्ली गया और थायराईड सर्जन से सलाह ली। मेरे एफएनएसी सहित थायराईड कैंसर के कई टैस्ट करवाए गए। दुर्भाग्यवश थायराईड कैंसर के सारे ही टैस्ट पॉजिटिव निकले और हर्थर सैल कारसीनोमा नामक बहुत ही घातक प्रकार की कैंसर निकली। मेरे लिए यह आकस्मिक मुसीबत थी और मौत मेरे सामने खड़ी थी। एक डॉक्टर बहुत बुरा मरीज होता है, क्योंकि वह बीमारी के बारे में सब जानता है कि मैं ऐसा ही मरीज था।
आंखों में आंसू, रूंधा हुआ गला और दु:खी हृदय लिए, मैं गुरु जी (पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) को मिला और अपनी बीमारी के बारे में उन्हें बताया। गुरु जी ने मुझे सांत्वना देते हुए कहा, ‘बेटा, यह एक छोटी-सी गांठ है इसको निकलवा दो और चिन्ता न करो। दिन-रात नाम का सुमिरन करो और मानवता की सेवा करो।’ मैं पुन: ऐम्स नई दिल्ली गया और अपने साथी डॉ. थायराईड सर्जन को मिला और उसे कहा कि आॅप्रेशन में आपने केवल थायराईड की गांठ निकालनी है, सारी थायराईड ग्लैंड नहीं निकालनी, क्योंकि यह मेरे गुरु जी का वचन है कि गांठ निकलवा लो। डॉक्टर ने गांठ निकाली और बायोप्सी के लिए भेज दी।
जब बायोप्सी की रिपोर्ट आई, तो मेरे साथी डॉ. सुनील चुम्बर हैड आॅफ सर्जरी यूनिट ने मुझे बुलाया और कहा कि आओ एक-एक कप कॉफी लेते हैं। और वह मुझे कॉफी रूम में ले गया। मैं अपने आपको बुरी खबर के लिए तैयार कर रहा था। उसने मुझे रिपोर्ट दिखाई जोकि एक साधारण गांठ थी। वहां कैंसर नाम की कोई चीज नहीं थी। मेरे अन्दर एक प्रबल विचार उठा कि गुरु जी ने मेरी मृत्यु टाल दी है। मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
मैं फिर गुरु जी को मिला और प्रार्थना की कि हे मेरे मालिक! मेरे पास कोई शब्द नहीं है, जिससे मैं आपका आभार प्रकट कर सकूं। आपने मेरी मृत्यु को टाल दिया है। मैंने पूज्य गुरु जी को अपनी रिपोर्ट दिखाई। सच्चे दातार जी मुस्कुराए और मुझसे पूछा कि ‘क्या अब तू खुश है?’ मैंने प्रार्थना की कि हे मेरे भगवन्, कृपया मुझे अपने पवित्र चरणों में रखना। पूज्य गुरु जी ने मुझे पुन: समझाया कि बेटा, आजीवन मानवता की सेवा करो और नाम का सुमिरन करो।
जब कभी भी अपने महान गुरु जी का वह परोपकार याद करता हूं, तो अपने गुरु के प्रति कृतज्ञता, धन्यवाद और आभार प्रकट करते हुए विचारों की एक कड़ी चल पड़ती है। विचारों की उस कड़ी के अन्त में मेरी आंखों में अश्रुधारा बह उठती है और मेरे शब्दकोश में ‘ओ मेरे महान गुरु, तू धन्य है’ के अलावा कोई शब्द नहीं आता।