Changes in ground water after saving rain water and canal water

बरसाती एवं नहरी पानी को संजोकर बदली भूजल की तासीर
हरियाणा के पश्चिम दिशा के आखिरी छोर पर बसा एवं राजस्थान सीमा से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित है गांव मुन्नावाली, जहां के एक युवा किसान ने भविष्य की जमापूंजी कहे जाने वाले भूमिगत जल को संजोने का एक नया तरीका निकाला है, जो उसके सुनहरे भविष्य को और खुशहाल बना सकता है। उसने बारिश के पानी के अलावा फालतू नहरी पानी को संजोने के लिए उसे इधर-उधर बिखेरने की बजाय अपने टयूबवैल में स्टोर करने का तरीका खोजा, जो उसके लिए फायदेमंद साबित हुआ है। अब उसको भूजल को लेकर ज्यादा चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि पूर्व में खारे पानी का स्त्रोत टयूबवैल भी अब मिट्ठे पानी का जलप्रपात बन गया है।

दरअसल गांव मुन्नावाली की कुछ भूमि नहरी तथा कुछ बिरानी है, जिसके चलते यहां पर गेहूं, सरसों, चना, नरमा, कपास व बाजरा इत्यादि की खेती की जाती है। क्षेत्र में जमीनी पानी नमकीन किस्म का है। किसान जय सिंह कासनिया बताते हैं कि उसने लगभग 12 वर्ष पहले खेती-बाड़ी का कार्य शुरू किया था। शुरुआती दिनों में पढ़ा-लिखा होने की वजह से खेती कार्य में मन नहीं लगता था। घरेलू हालात सही ना होने कारण मैंने ग्रेजुएट करने के बाद नौकरी की बहुत तलाश की, लेकिन कहीं नौकरी की व्यवस्था नहीं बन पाई। आखिरकार फिर से खेतीबाड़ी की ओर रुख कर लिया। उन दिनों गांव में नलकूप तो थे, परंतु बिजली के कनेक्शन बहुत ही कम मिलते थे।

बिजली की सिक्योरिटी भरकर अपने नलकूप पर कनेक्शन करवाया। मेरा खेत नहर की टेल के आखिरी छोर पर स्थित होने के कारण यहां अकसर पानी की किल्लत बनी रहती थी। नहरी पानी की कमी के साथ-साथ ट्यूबवेल का पानी भी पहले की बजाए ज्यादा नमकीन हो गया था। जिसकी वजह से फसल उगाने में बहुत सी समस्याएं पेश आने लगी। बेमौसमी बरसात या जुलाई-अगस्त के महीने मेंं अधिक बारिश के चलते नहरी टेल पर पानी की मात्रा बहुत बढ़ जाती थी। प्रशासनिक अधिकारी हमें नहरी मोगा बंद नहीं करने देते थे, ऐसे में नहर का पानी व्यर्थ में ही खालों में बहता रहता था, जिससे कई बार फसल भी खराब हो जाती थी। वही पानी मैंने अपने टयूबवैल में डालना शुरू कर दिया। उन दिनों टयूबवैल में लगातार पानी ढलता रहा। कुछ दिन बाद जैसे ही टयूबवैल को चलाया तो आस-पड़ोस के जमीदारों ने भी पानी के स्वाद को चखा तो हूबहू नहरी पानी जैसे ही पाया।

जय सिंह बताते हैं कि लगभग 2 वर्ष पहले सीकर जिले के मेरे एक दोस्त ने मुझे यह सुझाव दिया कि ट्यूब्वैल में जब खेतों में जरूरत न हो तो नहरी पानी व बरसात का पानी ट्यूब्वैल डाल सकते हैं। उससे प्रेरित होकर मैंने मेरे खेत के पास से गुजर रहे सरकारी खाल से लगभग 15 फुट दूरी से अपना निजी खाल बनाकर ट्यूबवैल में पानी डालना शुरू कर दिया। वर्तमान में मेरे खेत में लगे ट्यूबवैल में पानी के जलस्तर में भी काफी सुधार हुआ है। अब हम जब खेतों में जरूरत होती है तो इसके पानी का प्रयोग निरंतर कर रहे हैं। इस विधि से पैदावार में भी काफी बढ़ोतरी होने लगी है।

यह विधि खेत में डिग्गी बनाने से कम खर्च पर तैयार हो जाती है। इस विधि के प्रचार-प्रसार का यह फायदा हुआ कि अब बहुत से किसान इस विधि को अपनाने लगे हैं। इससे भूजल स्तर ऊपर उठने से डार्क जोन बनने का खतरा कम हो गया है। कि सान भाइयों को सुझाव है कि इस विधि को अपना कर नहरी पानी व बारिश के पानी को अपने टयूबवैल में एकत्रित करें। यही पानी बाद में सिंचाई में प्रयुक्त होगा, जिससे पैदावार बढ़ेगी और उसके साथ-साथ भूजल स्तर में भी सुधार आएगा।
-अनिल गोरीवाला

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