Come on, devotee! Promised to recite the name

7पूजनीय बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी महाराज का पावन रहमो-करम
‘‘चल उठ भक्ता! वायदा किया था नाम जपने का…’’ “Come on, devotee! Promised to recite the name… ”

प्रेमी चरण दास पुत्र श्री गंगा सिंह गांव ढण्डी कदीम तहसील जलालाबाद जिला फाजिल्का से बेपरवाह शहनशाह मस्ताना जी महाराज के एक अलौकिक करिश्में का वर्णन कुछ इस तरह करता है:-

सन् 1957 की बात है कि बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने मलोट मण्डी में श्री हरबंस के घर के सामने खाली जगह में सत्संग किया। उस समय डेरा सच्चा सौदा धाम मलोट (पंजाब) अभी बना नहीं था। मुझे उस समय सत्संग पर रात के अढ़ाई बजे नाम की दात प्राप्त हुई थी। नाम की बख्शिश करते हुए दयालु सतगुरु जी ने वचन फरमाए, ‘बड़े-बड़े राजे-महाराजे, देवी-देवता इस नाम को तरसते हैं पर असीं तुम्हें मुफ्त में दे रहे हैं।

इसकी कदर करना। पांच दिन रात को उठकर नाम जपना। अगर तुम्हारा कुछ गुम हुआ तुम्हें न मिले तो बात करना’। उस समय मेरे मन में ख्याल आया कि शहनशाह जी उठाओगे तो नाम जप लूंगा। नाम लेने के बाद मैं घर आ गया। उस समय हमारा सारा परिवार मलोट के नजदीकी गांव कबरवाला तहसील मलोट जिला श्री मुक्तसर साहिब में रहा करता था। उस दिन ही मैं बैलों से जमीन जोतने खेत में चला गया। सारा दिन खेत में काम किया और शाम को घर आ गया। लंगर खाया व फिर जल्दी ही सो गया, क्योंकि मैं बहुत थका हुआ था और पहले वाली रात को भी सोया नहीं था।

उस रात डेढ़ बजे का समय था। मुझे किसी अज्ञात व्यक्ति ने आवाज दी। मैंने अपने घर वालों से पूछा कि मुझे आवाज किसने दी है? घर वाले कहने लगे कि हमने तो कोई आवाज नहीं सुनी। मैं फिर सो गया। कुछ देर बाद किसी ने मेरा हाथ पकड़ कर खींचा। मैं फिर उठा और घरवालों से पूछा कि मेरी बाजू किसने खींची है तो उन्होंने कहा हमने तो खींची नहीं और न ही हमें इस बारे में पता है। मैं फिर सो गया, क्योंकि एक तो मैं पिछली रात सोया नहीं था व दूसरा सारा दिन खेतों में काम करने की थकावट थी।

कुछ देर बाद मुझे किसी अज्ञात व्यक्ति ने दोनों कानों से पकड़ कर बैठा दिया और वचन फरमाए, ‘दूसरों को कहता है किसने आवाज लगाई है, किसने बाजू खींची? हमसे वायदा नहीं किया था, उठाओगे तो नाम जप लूंगा, अब जप।’ मैंने अपने आगे-पीछे देखा तो मुझे कुछ भी दिखाई नहीं दिया।

अब मुझे असली बात की समझ आ गई थी। मैंने जो अपने प्यारे मुर्शिद से वायदा किया था, वह भी मुझे याद आ गया था। फिर मैंने लगातार नाम का सुमिरन करना शुरू कर दिया व मालिक की दया से अब तक मैं अपने वायदे पर पक्का हूं। मुझे सतगुरु ने जो नजारे दिखाए हैं व दिखा रहे हैं उनका शब्दों से वर्णन नहीं किया जा सकता। मैं अपने सतगुरु के उपकारों का बदला कभी भी नहीं चुका सकता। बस! धन्य-धन्य ही करता हूँ।

सच्ची शिक्षा हिंदी मैगज़ीन से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें FacebookTwitter, LinkedIn और InstagramYouTube  पर फॉलो करें।

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here
Captcha verification failed!
CAPTCHA user score failed. Please contact us!