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सिवानी के यशपाल सिहाग ने दिखाई खेती को नई राह Yashpal Sihag of Sewani showed new path to agriculture

देश की केंद्र व हरियाणा सरकारें चाहे किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुना करने की दिशा में कार्य कर रही हों, लेकिन परम्परागत किसानी छोड़ आधुनिक खेती करने वालों के लिए माडर्न किसान सिवानी बोलान (हिसार) निवासी यशपाल सिहाग आधुनिक कृषि में रोल मॉडल साबित हो सकते हैं। कभी शिक्षा व टैक्नोलॉजी के क्षेत्र में देश भर में झंडा गाड़ने वाले यशपाल सिहाग ने समुद्रतल से 11500 फुट से अधिक ऊंचाई पर हिमालयी क्षेत्र में मिलने वाली कीड़ा जड़ी (यारसागुंबा) को हिसार में अपनी लैब में पैदा करके किसानों के लिए नई उम्मीद जगाई है। agriculture

करीब दो वर्ष पहले यशपाल सिहाग ने वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से हिसार-तोशाम रोड पर दस बाई दस के तीन कमरों में लैब बना कर कीड़ाजड़ी का व्यावसायिक उत्पादन आरंभ किया। उसके बाद से अब तक वे इसकी प्रति वर्ष तीन फसलें पैदा करते हैं। वे इससे प्रति वर्ष 25 से 30 लाख रुपये कमा रहे हैं। वे बताते है कि उनका लक्ष्य लैब से सालाना दस करोड़ रुपये की कीड़ाजड़ी का उत्पादन करना है।

मेडिकल साईंस में आयुर्वेदिक प्रयोग

कीड़ा जड़ी को अलग-अलग रूप व स्वरूपों में उपयोग किया जाता है। मुख्यतौर पर रक्त शर्करा को नियंत्रित करने, श्वसन प्रणाली को बेहत्तर बनाने, किडनी व लीवर संबंधित रोगों से बचाने में, शरीर में आक्सीजन की मात्रा बढ़ाने, पुरुष और महिलाओं में प्रजनन क्षमता व शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने में उपयोगी है। इसके अलावा प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत करने, यकृत, फेफड़े और गुर्दे को मजबूत करने व इससे रक्त और अस्थि मज्जा के निर्माण में सहायता मिलती है। इसके अलावा यह व्यक्ति की कार्य क्षमता व पुरुषों के गुप्त रोगों व जीवन रक्षक दवाओं में भी उपयोग किया जाता है।

680 प्रजाति हैं कीड़ाजड़ी की

राह गु्रप फाउंडेशन के बेस्ट फार्मर का अवार्ड प्राप्त कर चुके मॉडर्न किसान यशपाल सिहाग के अनुसार कीड़ाजड़ी की विश्व में 680 प्रजातियां हैं। जिनमें से कॉर्डिसेप्स मिलिट्रिस का थाईलैंड, वियतमान, चीन, कोरिया आदि देशों में ज्यादा उत्पादन होता है। इसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारी मांग है। इससे पाउडर और कैप्सूल के साथ चाय भी तैयार की जाती है। बाजार में इसके दाम तीन से चार लाख रुपये प्रति किलो है।

क्या होती है कीड़ाजड़ी

सामान्य तौर पर समझे तो ये एक तरह का जंगली मशरूम है जो एक खास कीड़े की इल्लियों यानी कैटरपिलर्स को मारकर उस पर पनपता है। इस जड़ी का वैज्ञानिक नाम है कॉर्डिसेप्स साइनेसिस। स्थानीय लोग इसे कीड़ा-जड़ी कहते हैं, क्योंकि ये आधा कीड़ा है और आधा जड़ी है और चीन-तिब्बत में इसे यारशागुंबा के नाम से जाना जाता है।

विश्व की सबसे महंगी मशरूम की किस्म

साधारण भाषा में कहें, तो विश्व की सबसे महंगी मशरूम की किस्मों में से एक कीड़ा जड़ी भी एक मशरूम की ही किस्म है। कोई भी किसान चाहे तो सिर्फ एक छोटे से कमरे में इसकी खेती शुरू कर सकता है। गौरतलब है कि यशपाल सिहाग ने भी पहले एक ही लैब बनाई थी। अब वे अपनी तीन लैबों में इसका उत्पादन कर रहे हैं।

7 से 10 लाख रुपए आता है खर्च

यशपाल सिहाग के मुताबिक, अगर कोई किसान इस लैब को कम से कम 1010 के कमरे से शुरू करना चाहता है तो इसमें तकरीबन 7 से 10 लाख रुपये का खर्च आएगा। उनके मुताबिक विशेष प्रकार की लैब बनाने के बाद किसान 3 महीने में एक बार यानी कि एक वर्ष में तीन से चार बार कीड़ा जड़ी की फसल आसानी से ले सकते हैं।
डॉ.संदीप सिंहमार

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