Health Care Kids कहीं जीवन को बेरंग न कर दें ‘ये रंग’ रिसर्च: फास्ट फूड में आर्टिफिशियल कलर्स का बेतहाशा प्रयोग खतरनाक
फास्ट फूड आजकल युवाओं के लिए ही नहीं, अपितु करीब प्रत्येक इन्सान के लिए लाइफस्टाइल बनता जा रहा है। या यूं कहें कि फास्ट फूड इन्सान की दिनचर्या बन चुका है, इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। बर्गर, पिज्जा, मंचूरियन जैसी दर्जनों ऐसी डिशेज पसंदीदा तौर पर खाई जाती हंै। लेकिन ये डिशेज स्वास्थ्य के नजरिए से कितनी फायदेमंद हैं, इस बारे में कभी किसी ने कोई विचार नहीं किया। इस विषय को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट बड़ी डरावनी है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि फास्ट फूड को तैयार करने में उपयुक्त होने वाले आर्टिफिशियल कलर्स सेहत के लिए नुकसानदेह हैं। आंकड़े बताते हैं कि भारत में अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड इंडस्ट्री बड़ी तेजी से ग्रोथ कर रही है।
वर्ष 2011 से 2021 के दरमियान इस उद्योग में रिटेल बिक्री में 13.37 फीसदी का वार्षिक इजाफा दर्ज हुआ है, जो अपने आप में हैरानीजनक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दर्शाये संभावित खतरे को भांपते हुए कर्नाटक सरकार ने हाल ही में राज्य में कई तरह के आर्टिफिशियल कलर्स पर प्रतिबंध लगा दिया है। विभाग ने बकायदा चेतावनी दी है कि सरकारी आदेश का उल्लंघन करने पर सात साल से लेकर उम्रकैद और 10 लाख रूपये तक जुर्माना किया जा सकता है। कर्नाटक राज्य के के स्वास्थ्य विभाग ने फूड सिक्योरिटी एंड स्टैंडर्ड एक्ट 2006 के तहत ऐसे आर्टिफिशियल कलर्स के इस्तेमाल को प्रतिबंधित किया है, जिससे उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा है।
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ये रंग सुरक्षित क्यों नहीं? Health Care Kids
दरअसल, कर्नाटक प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग के पास ऐसे अनेकों मामले आए, जिसमें फास्ट फूड व अन्य व्यंजनों की खराब क्वालिटी को लेकर शिकायतें दर्ज हुई। जब विभाग ने इस पर संज्ञान लेते हुए खाद्य सामग्री के 39 नमूने लिए तो टेस्टिंग लैब में पाया कि 8 सैंपलों में आर्टिफिशियल कलर्स का इस्तेमाल किया गया है। इन रंगों को मानवीय जीवन के लिए असुरक्षित माना गया। इन सैंपलों में सनसेट येलो व कारमोइसिन नाम के रंगों का मिश्रण पाया गया।
एलर्जी सहित इन बीमारियों का खतरा
एनवायरमेंट हेल्थ पर्सपेक्टिव्स नर्जल की रिसर्च में दावा किया है कि सनसेट येलो और तीन अन्य आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले रंगों के सेवन से एलर्जी की आशंका रहती है। इसमें त्वचा में सूजन हो सकती है। दमा रोगियों को सांस लेने में तकलीफ भी बढ़ सकती है। अध्ययन के अनुसार, जो लोग आर्टिफिशियल रंगों का सेवन करते हैं, उनमें यह जोखिम 52 प्रतिशत ज्यादा होता है। बता दें कि सनसेट येलो कलर्स का आमतौर पर कैंडी, सॉस और बेकरी उत्पाद बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। वहीं कारमोइसिन लाल फूड कलर है, जो खाने की चीजों में रंग दर्शाने के लिए प्रयुक्त होता है।