कड़ाके की ठंड में भी किसान उगा सकेंगे सब्जियां
संजय कुमार मेहरा, गुरुग्राम।
फसलों को जोखिम से बचाने और उत्पादन की लागत को कम करने के लिये भारत के किसान खेती की आधुनिक तकनीकों पर जोर दे रहे हैं, इसमें पॉली हाउस, ग्रीन हाउस, प्लास्टिक मल्चिंग और लो टनल का प्रयोग शामिल है। यहां बात लो टनल की हो रही है, जिसमें पॉली हाउस-ग्रीन हाउस की तरह ही बे-मौसमी सब्जियां उगाई जा सकती हैं।
लो टनल खेती एक ऐसी तकनीक जिसके माध्यम से किसान कडकती ठंड में भी सब्जियां उगाकर अच्छी कमाई कर सकते हैं। इस तकनीक से फसल सुरक्षित भी रहती है और अच्छी पैदावार भी होती है। जनवरी में ठंड का दौर भी गिरने लगी है। दिसम्बर के अंत तक ठंड का प्रकोप बढ़ेगा। ऐसे में सब्जी की फसलों का नुकसान होता है। पाला गिरने के कारण फसलें बर्बाद हो जाती हैं। ऐसे में लो टनल खेती करके किसान ठंड से बचाव करके अच्छी पैदावार ले सकते हैं। सब्जी की फसल के जो बीज अभी मिट्टी में ही हैं। उनमें फूल नहीं आए हैं। वे बीज ठंड के कारण खराब हो सकते हैं। ऐसे में इन्हें बचाने के लिए लो टनल तकनीक से खेती की जा सकती है।
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गुरुग्राम के कई किसान इस तकनीक से खेती करके सर्दी में भी अच्छा उत्पादन ले रहे हैं।
कैसे होती है लो टनल खेती:
लो टनल फार्मिंग में पतले बांस से गुफानुमा आकार तैयार किया जाता है। इस पर एक विशेष कपड़ा डाला जाता है। यह कपड़ा ओस और नमी को फसल तक नहीं पहुंचने देता। यह विशेष कपड़ा सूर्य की किरणों को भी फसल तक पहुंचने से नहीं रोकता है। इससे फसल की उपज संतुलित बनी रहती है। लो टनल को पॉली हाउस का छोटा एवं प्रभावशाली रूप कहा जाता है। इसमें कम ऊंचाई पर 2-3 महीने के लिये अस्थाई लो टनल ढांचा बनाकर खेती की जाती है।
बांस की बल्लियां होती हैं इस्तेमाल:
किसान चाहें तो लोहे की सरिया की जगह बांस की बल्लियों का प्रयोग भी कर सकते हैं। सरिया या बांस की बल्लियों के सिरों को तार से जोडकर मिट्टी के बेड़ पर गाड़ देते हैं, जिससे ढाई से तीन फीट तक ऊंचाई बन जाती हैं। सरिया और बल्लियों पर लगे तारों की दूरी कम से कम 2 मीटर रखी जाती है। इस ढांचे पर 25 से 30 माइक्रोन मोटाई वाली पारदर्शी पॉलीथिन ढंकी जाती है। कद्दूवर्गीय सब्जियों की अगेती खेती के लिये इसकी प्रकार लो टनल बनाई जाती है।
वैसे तो इसका इस्तेमाल ज्यादातर सर्दियों में किया जाता है, लेकिन गर्मी में भी इसमें खेती करने पर अच्छे परिणाम सामने आए हैं। पॉली हाउस की तरह लो टनल में खेती करने पर फसल 2-3 महीना पहले ही पककर तैयार हो जाती है। इससे किसानों को जल्दी-जल्दी फसलें उगाने और दोगुना पैसा कमाने का अवसर मिल जाता है। लो टनल में चप्पन कद्दू, लौकी, खीरा, करेला और खरबूज-तरबूज जैसे बेलदार फल सब्जियों की खेती कर सकते हैं। लो टनल में सिंचाई के लिये सिर्फ टपक सिंचाई पद्धति का प्रयोग किया जाता है। इस तरह लो टनल में संरक्षित खेती करने पर सरकार भी उचित दरों पर सब्सिडी देती हैं।
इस खेती के फायदे:
अधिक और कड़ाके की सर्दी वाले क्षेत्रों में लो टनल काफी प्रभावी तकनीक साबित हो रही है। कम तापमान, पाला और बर्फबारी में लो टनल तकनीक से संरक्षित खेती करने पर नुकसान की संभावना कम हो जाती है। इस संरक्षित ढांचे में खेती करने पर हवा की आर्द्रता को नियंत्रित किया जा सकता है। इसमें टपक सिंचाई का प्रयोग किया जाता है, जिससे पानी और खाद दोनों की काफी बचत होती है। लो टनल में उगाई गई फसल में खरपतवार, कीड़े और बीमारियों की संभावना नहीं रहती। इस तरह से खेती करने पर मिट्टी का तापमान नियंत्रित रहता है और नमी बनी रहती है।