पूरी की दिली इच्छा -सत्संगियों के अनुभव पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
माता प्रकाश इन्सां पत्नी श्री गुलजारी लाल मंडी डबवाली जिला सरसा से बेपरवाह मस्ताना जी महाराज की अपार रहमत का वर्णन करती हुई लिखती हैं-
सन् 1952 में पूज्य शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने हमें (पति-पत्नी) अपनी अपार रहमत प्रदान करते हुए नाम की अनमोल दात बख्शी। सन् 1958 की बात है। पूजनीय बेपरवाह जी उन दिनों सत्संग फरमाने के लिए मलोट (पंजाब) में गए हुए थे। उस समय एक बुजुर्ग झिंवर हमारे घर पर पीने का पानी डाला करता था। उसने पूजनीय शहनशाह जी से नाम लिया हुआ था। उसने मुझे कहा कि बहन ! सार्इं मस्ताना जी महाराज मलोट आए हुए हैं।
रात को वहाँ सत्संग है, इसलिए मैं जल्दी से पानी डाल रहा हूं, मैंने सत्संग पर मलोट जाना है। उसने हमें भी सत्संग पर जाने के लिए कहा। मैंने कहा कि मुझसे नहीं जाया जाता। मेरे तीन छोटे-छोटे बच्चे हैं, रात के समय इनकी संभाल मुश्किल है। पर वास्तव में, मैं सत्संग पर जाना चाहती थी। सत्संग में जाने के लिए ऐसी तड़प बन गई थी कि मेरे दिल में ख्याल आया कि अगर मैं पक्षी होती तो उड़कर मेरी अभी चली जाती।
उसी दिन शाम के समय जब कुछ-कुछ अंधेरा था, पूजनीय शहनशाह जी ने मुख्य प्रेमियों को अपने पास बुलाया और उन्हें फरमाया कि यहाँ पर सत्संग करके दो घंटे डबवाली में रुकेंगे। सार्इं जी प्रेमियों से मुखातिब होकर पूछने लगे कि कहाँ रूकेंगे? ज्ञानी दलीप सिंह जी (उस समय के भजन मंडली के रागी) ने कहा कि अपने घर रुक जाएंगे। शहनशाह जी ने फरमाया कि वहाँ गाड़ियां चीखें मारती हैं, हमारा ध्यान नहीं लगता। ज्ञानी दलीप सिंह जी का घर उस समय रेलवे स्टेशन के पास हुआ करता था।
फिर डबवाली वाले प्रेमी बनवारी लाल (जो मेरा जेठ था) ने कहा कि मेरे भाई गुलजारी लाल के घर रुक जाएंगे। तो शहनशाह जी ने तुरंत ही स्वीकृति दे दी और बनवारी लाल को उसी समय कह दिया कि तुम अभी जाओ और वहाँ पर प्रबंध करो। हम यहां पर सत्संग के बाद दो घंटे आराम करके आएंगे। मेरे जेठ बनवारी लाल ने हमारे घर पहुंच कर शहनशाह जी के आगमन संबंधी सारी बात हमें बताई। हमने तुरंत एक कमरा खाली करके पूज्य सार्इं जी के ठहरने का यथा-संभव प्रबंध कर दिया।
सुबह चार बजे जीप की लाईट हमारे घर में पड़ी। मैं भागकर बाहर आ खड़ी हुई। पूज्य शहनशाह जी करीब आठ बजे सुबह हमारे परिवार को अंदर बुला कर मिले। हमें सबको प्रसाद दिया व खुशियां प्रदान की। जैसे ही शहर की बाकी साध-संगत को पूज्य सार्इं जी के शुभ आगमन का पता चला, संगत हमारे घर पर आने लगी। पूज्य शहनशाह जी ने इस प्रकार दिनभर खुशियां बांटी। पूज्य बेपरवाह जी ने रात को डबवाली में सत्संग भी फरमाया, उसके उपरांत अगले दिन सरसा दरबार के लिए रवाना हुए।
कोई इतनी कल्पना भी नहीं कर सकता कि सतगुरु अपने शिष्य के लिए कितनी दया-रहमत करता है। सच्चे सार्इं जी ने मेरी पुकार सुनी और स्वयं हमारे घर पर पधारे, ऐसा हम सोच भी नहीं सकते थे। मैं अपने सतगुरु के उपकारों का बदला जन्मों-जन्मों तक भी नहीं चुका सकती, धन्य! धन्य! ही कहती हूँ।