God's form is Father on Father's Day - Special (June 19)

ईश्वर का रूप है पिता -फादर्स-डे (19 जून) पर विशेष

वैसे तो हमारी भारतीय संस्कृति में माता-पिता का स्थान पहले ही सर्वोच्च रहा है, किन्तु आजकल वैश्वीकरण के प्रभाव में हम विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय दिवसों को भी खुशी-खुशी सेलिब्रेट करते हैं।

वैसे भी हमारी संस्कृति हर तरह के सद्विचारों और मूल्यों का स्वागत करती रही है और इस लिहाज से प्रत्येक वर्ष जून के तीसरे रविवार को ‘इंटरनेशनल फादर्स डे’ का दिन प्रत्येक व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है।

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आखिर, हर कोई किसी न किसी की ‘संतान’ तो होता ही है और इसलिए उसका फर्ज बनता है कि वह अपने पिता के प्रति अपने जीवित रहने तक सम्मान का भाव रखे, ताकि अगली पीढ़ियों में उत्तम संस्कार का प्रवाह संभव हो सके।

अपनी खुशियों की परवाह नहीं:

अक्सर गलतियों पर टोकने, बाल बढ़ाने, दोस्तों के साथ घूमने और टीवी देखने के लिए डांटने वाले पिता की छवि शुरू में हम सबके बालमन में हिटलर की तरह रहती है। लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, हम समझते जाते हैं कि हमारे पिता के हमारे प्रति कठोर व्यवहार के पीछे उनका प्रेम ही रहता है। बचपन से एक पिता खुद को सख्त बनाकर हमें कठिनाइयों से लड़ना सिखाता है तो अपने बच्चों को खुशी देने के लिए वो अपनी खुशियों की परवाह तक नहीं करता।

हर समस्या में सुरक्षा कवच:

एक पिता जो कभी मां का प्यार देते हैं तो कभी शिक्षक बनकर गलतियां बताते हैं तो कभी दोस्त बनकर कहते हैं कि ‘मैं तुम्हारे साथ हूं’। इसलिए यह कहने में जरा भी संकोच नहीं कि पिता वो कवच हैं जिनकी सुरक्षा में रहते हुए हम अपने जीवन को एक दिशा देने की सार्थक कोशिश करते हैं। कई बार तो हमें एहसास भी नहीं होता कि हमारी सुविधाओं के लिए हमारे पिता ने कहाँ से और कैसे व्यवस्था की होती है। यह तब समझ आता है, जब कोई बालक पहले किशोर और फिर पिता बनता है।

सोच की व्यावहारिक बुनियाद:

पिता जानते हैं कि जीवन जय-पराजय के पालों में बंटा है। उनका मन अनुभवी और व्यावहारिक सोच लिए होता है। यही वजह है कि जिंदगी की तपिश का सामना कर चुके पिता आर्थिक-सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी हिदायतें देते रहते हैं। आशंकाओं के ख्याल के चलते ही पिता के सबक देने का अंदाज कठोर हो जाता है। इसमें लाड़-प्यार कम और मनोबल की मजबूती की सीख का ज्यादा होना लाजिमी है।

बचपन में सब अपनी नाकामी को मां से तो साझा कर लेते हैं, लेकिन पिता से नहीं कर पाते? क्यों? पिता की डांट का डर नहीं होता यह। पिता की नजर में कमजोर साबित होने की शर्मिंदगी होती है। यह भी क्यों? क्योंकि भले समझ में ना आए, पर हर बच्चे के लिए उसका पिता उसका हीरो होता है। जिंदगी का व्यावहारिक पाठ बच्चों को पिता ही सिखाते हैं। लेकिन सिखाने की प्रक्रिया में उनकी भावनाएं सामने नहीं आ पातीं। और बच्चे। उन्हें रौब दिखता है, सख़्ती दिखती है, परवाह नहीं दिख पाती। दुनिया के सभी बच्चों को बड़े होने पर पापा से मिले ऐसे हर सबक के मायने समझ में आते हैं।

पिता प्रति कृतज्ञ जरूर बनें:

पिता ईश्वर का रूप होते हैं, क्योंकि खुद सृष्टि के रचयिता के अलावा दूसरे किसी के भीतर ऐसे गुण भला कहां हो सकते हैं। हमें जीवन जीने की कला सिखाने और अपना सम्पूर्ण जीवन हमारे सुख के लिए न्योछावर कर देने वाले पिता के लिए वैसे तो बच्चों को हर समय तत्पर रहना चाहिए, लेकिन अगर इतना संभव न हो तो, कम से कम साल में एक खास दिन तो हो ही! उनके त्याग और परिश्रम को चुकाया नहीं जा सकता, लेकिन कम से कम हम इतना तो कर ही सकते हैं कि उनके प्रति ‘कृतज्ञ’ बने रहें।

आपाधापी में अनदेखा रह जाता लगाव और चाव:

पिता के हिस्से ठहराव कम, भागमभाग ज्यादा आती है। वह जीवन से जूझकर संसाधन जुटाते हैं। हर पिता के जीवन का बड़ा हिस्सा इस संघर्ष में ही गुजरता है। पर उनकी यह उलझन दिखती नहीं है। पिता अपने संघर्ष और पीड़ा के बारे में बात भी कम ही करते हैं।

मां की तरह, पिता भले गले लगाकर प्रेम नहीं जताते पर बच्चे की जरूरतें, फरमाइशें जरूर पूरी करते हैं। यह उनका तरीका है प्रेम दिखाने का। रोजगार के तनाव, आज की जरूरतें और भविष्य की सुरक्षा, जीवन की अपरिहार्य नियमितता, उनको ऐसे रूखेपन से घेर देती हैं कि संवेदनाएं नजर नहीं आतीं। जब बच्चे उनकी तरफ नहीं देख रहे होते हैं, तब भी पिता की नजरें उन्हीं पर बनी रहती हैं। बच्चों के जीवन में कोई अभाव दस्तक ना दे, इसी आपाधापी में पापा का चाव और लगाव अनदेखा रह जाता है।

प्रेरणा और सफलता की कुंजी है:

आप जितने भी सफल व्यक्तियों को देखेंगे, तो उनके जीवन की सफलता में उनके पिता का रोल आपको नजर आएगा। उन्होंने अपने पिता से प्रेरणा ली होती है और उनको आदर्श माना होता है। इसके पीछे सिर्फ यही कारण होता है कि कोई व्यक्ति लाख बुरा हो, लाख गन्दा हो, लेकिन अपनी संतान को वह अच्छी बातें और संस्कार ही देने का प्रयत्न करता है।

इस फादर्स-डे पर दें अपने पिता को खास उपहार

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फादर, पिता या पापा..एक रिश्ता और नाम कई हैं। यह एक ऐसा रिश्ता है, जो हमारी जिंदगी का ताना-बाना बुनता है। जिसकी उंगली पकड़ कर पहले-पहल चलना सीखते हैं हम। जिसके सीने में छुपकर हम जिंदगी की धड़कन सुनते हैं। ऐसे खूबसूरत रिश्ते को सराहने-संवारने के लिए तो पूरी जिंदगी कम है।

वक्त की आपाधापी और काम की मसरूफियत हमें मौका नहीं देती। इसी कमी को पूरा करने के लिए बना है ‘फादर्स-डे’। जब आप अपने पिता को कम से कम एक दिन के लिए तो जी भरकर स्पेशल फील करा सकते हैं। अगर आपने अभी तक इस दिन को सेलिब्रेट करने का प्लान नहीं बनाया है तो अब बना लीजिए।

शायद ये टिप्स आपके कुछ काम आ जाएं:

पापा को ‘यंग पापा’ बनाएं:

कभी गौर से देखा है पापा का चेहरा? आपकी जिंदगी संवारते-संवारते उनकी चेहरे की चमक कहीं खो-सी गई है। वक्त से कहीं पहले उम्र की परछाइयां तैरने लगी हैं। क्यों न इस फादर्स डे पर आप उन्हें उनकी तरोताजगी वापस लौटा दें। आप कई तरीकों से ऐसा कर सकते हैं।

टीशर्ट:

उनके लिए आकर्षक रंगों वाली स्लोगन लिखी टी शर्ट खरीदिए। आपकी भेंट की गई टी-शर्ट पहनकर वे फिर से कॉलेज के दिनों वाली एनर्जी से भर जाएंगे।

फेशियल:

किसी अच्छे से सैलून में ले जाकर उनका फेशियल कराइए जिससे एक बार फिर उनके चेहरे की चमक वापस आ जाए।

नया मोबाइल:

कभी उनका मोबाइल देखा है? कितना पुराना हो गया है? उन्हें लेटेस्ट एप्स वाला एक मल्टी फंक्शन मोबाइल खरीद कर दीजिए जिससे आपके सीधे सादे पापा का अंदाज टेक टेकी हो जाए।

नॉवेल:

आपके पापा को कोई न कोई लेखक और उसका नॉवेल जरूर पसंद होगा। एक बार फिर उन्हें वही नॉवेल गिफ्ट दें, जिसे पढ़कर, कुछ वक्त के लिए ही सही। एक सकून पा सकें और गुस्सा करना भूलकर मुस्कराना सीख लें।

पापा फेसबुक:

अपने पापा का फेसबुक अकाउंट बनाएं। उसमें उनके पुराने स्कूल या कॉलेज के दोस्तों को ऐड करें। फिर पापा को इसके बारे में बताएं। भले आपके पापा फेसबुक आॅपरेट न करें, मगर इस बहाने पुराने दोस्तों से उनकी री-यूनियन तो हो जाएगी।

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