पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज की रहमत
सचखंडवासी ज्ञानी दलीप सिंह रागी कल्याण नगर, सरसा, शहनशाहों के शहनशाह मस्ताना जी महाराज के एक अलौकिक करिश्मे का इस प्रकार वर्णन करते हैं :-
सन् 1956 की बात है। उस समय हमारा सारा परिवार डबवाली मण्डी में रहा करता था। मैंने आम लोगों से सुना था कि सच्चा सौदा सरसा में एक फकीर रहता है जो मकान बनवाता है और गिरवा देता है, फिर बनवाता है, फिर गिरवा देता है और लोगों में सोना, चांदी, नए-नए नोट, कपड़े बांटता है। मैंने अपने मन में सोचा कि ऐसा परमात्मा ही कर सकता है, आदमी नहीं कर सकता। अत: मैंने अपने मन में निश्चय कर लिया कि फिर तो ऐसे फकीर के दर्शन करने चाहिए।
उन दिनों शहनशाह मस्ताना जी महाराज डेरा सच्चा सौदा किकरांवाली (राजस्थान) में ठहरे हुए थे। मैं डबवाली के प्रेमियों के साथ शहनशाह जी के दर्शन करने के लिए किकरांवाली चला गया। जब मैंने संच्चे पातशाह जी के दर्शन किए तो मेरी रूह खुशी में नाच उठी। शहनशाह जी के चेहरे का नूर मुझे ऐसे दिखाई दिया जैसे चढ़ते सूर्य की लाली होती है। मैंने बेपरवाह जी का सत्संग बड़े ध्यान से सुना और उनके वचनों से मैं अत्याधिक प्रभावित हुआ। सतगुरु जी की दया-मेहर से मैंने उसी सत्संग पर नाम शब्द ले लिया। उसके बाद भी मैं सत्संगों में जाता रहा और मुझे अपने सतगुरु पर पूर्ण विश्वास हो गया। कुछ समय के बाद एक दिन मैं डबवाली बाजार में से जा रहा था। कई लोगों ने बाजार में मेरे को बताया कि डेरा सच्चा सौदा, सरसा वाला मशहूर साधु मस्ताना जी पकड़ा गया है। कोई कह रहा था कि मस्ताना जी को पुलिस अफ्सर ले जा रहे थे। कोई कह रहा था कि मस्ताना जी से नोट बनाने वाली मशीन पकड़ी गई है।
कोई कह रहा था कि मस्ताना जी पाकिस्तान का बार्डर पार करता हुआ पकड़ा गया है। कोई कह रहा था कि पाकिस्तान को वायरलेस करता हुआ पकड़ा गया है। कोई कह रहा था कि मस्ताना पाकिस्तान का जासूस है। उसके कब्जे में एक ट्रांसमीटर मिला है जिससे वे पाकिस्तान को खबरें भेजा करता था। कोई कह रहा था कि सैनिक पुलिस ने छापा मार कर मस्ताना जी को पकड़ लिया, उससे बहुत सारा ऐसा सामान मिला है जो पाकिस्तान से सम्बन्ध रखता है। कोई कुछ तो कोई कुछ, जितने मुंह उतनी बातें। जब मैंने ये बातें सुनी तो मुझे बहुत दु:ख हुआ। मैंने अपने मन में सोचा ‘कि देखो ! ये मूर्ख लोग महापुरुषों पर कैसे बेकार, निराधार आरोप लगा रहे हैं। भला सोचो तो सही कि खुद-खुदा को- कौन पकड़ सकता है।
मैं अपने घर में आकर एक कमरे में सर्व सामर्थ पूर्ण सतगुरु द्वारा बख्शे हुए नाम का सुमिरन करने बैठ गया। मैंने अपने सर्व-सामर्थ पूर्ण सतगुरु जी के आगे अर्ज की ‘हे साईं जी! आप जहां भी हो, जिस रंग में हो, जिस ढंग में हो मुझे दर्शन दो। पांच मिनट के अन्दर परम दयालु दातार जी ने अपनी दया-मेहर से मुझे डेरा सच्चा सौदा चोरमार दिखाया और अपने पवित्र दर्शन भी दिए। उस समय शहनशाह जी के सफेद वस्त्र पहने हुए थे और सिर के ऊपर टोपी पहनी हुई थी। दर्शन करने से मुझे पता चल गया कि सतगुरु जी डेरा सच्चा सौदा, चोरमार में हैं। फिर मैं चोरमार जाने के लिए मलोट-सरसा वाली सड़क पर बने रेलवे फाटक के पास पहुंचा। वहां पर पहले ही बहुत सारी साध-संगत खड़ी हुई थी जो डेरा सच्चा सौदा चोरमार जा रही थी। उन दिनों शहनशाह मस्ताना जी डेरा सच्चा सौदा चोरमार में साध-संगत से मकानों की चिनाई की सेवा करवा रहे थे।
मैं साध-संगत के साथ रेलवे फाटक से ट्रक पर चढ़कर डेरा सच्चा सौदा चोरमार पहुंच गया। उस समय काफी रात हो गई थी। वहां पर बहुत ज्यादा संगत थी और आ भी रही थी। डबवाली, अबोहर, सरसा और दूर-दूर से संगत पहुंच रही थी। सभी प्रेमी उपरोक्त झूठी अफवाहों की बातें कर रहे थे।
अगले दिन सुबह शहनशाह मस्ताना जी महाराज साध-संगत को दर्शन देने के लिए बाहर आए तो सब की कुशलता पूछी और अकेले-अकेले प्रेमी को खड़ा करके पूछा कि तुमने क्या सुना है? सभी प्रेमियों ने उपरोक्त बातें बताई जो सच्चा सौदा के बारे में झूठी अफवाहे फैलाई गई थी। सतगुरु जी हँसे और वचन फरमाया, ‘अगर जिन्दाराम की मशहूरी करवाते तो कितना पैसा खर्च होता? यह अपने आप मशहूरी हो गई है। वास्तविकता यह थी कि शहनशाह मस्ताना जी महाराज एक दिन पहले डेरा सच्चा सौदा, सरसा दरबार के मेन गेट पर खड़े थे। अचानक ही वहां पर एक पुलिस की जीप आई। पुलिस वालों ने शहनशाह जी को हाथ जोड़ कर सजदा किया।
शहनशाह जी ने पुलिस वालों को वचन फरमाया, ‘आप लोग हमारी बात मानोगे।’ पुलिस वालों ने कहा कि साईं जी! आप हुक्म करो। शहनशाह जी ने वचन फरमाया, ‘अर्सी शहर देखना है।’ पुलिस वाले कहने लगे कि साईं जी ! गाड़ी में आगे बैठो जी। शहनशाह जी ने एक छोटा सा मूढा मंगवाया और जीप की पिछली तरफ बैठ गए। पुलिस वालों ने शहनशाह जी को आगे बैठने के लिए विनती की पर शहनशाह जी नहीं माने। पुलिस वाले कुछ आगे और कुछ पीछे शहनशाह जी के चारों तरफ जीप में बैठ गए। शहनशाह जी पुलिस को कहकर सरसा शहर के दो-तीन बाजारों में गए और वापिस दरबार आ गए। यह बात सारे सरसा शहर में जंगल की आग की तरह फैल गई कि मस्ताना जी पकड़े गए हैं। उसी दिन रात को शहनशाह जी डेरा सच्चा सौदा चोरमार में पहुंच गए।
इसी प्रकार एक बार अखबारों ने भी लिख दिया कि मस्ताना जी पकड़े गए। कुछ अखबारों के नमूने इस प्रकार हैं
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अखबार वक्त की आवाज (हिन्दी) हिसार – 02-04-1957
सरसा के सच्चे मियां गिरफ्तार-सरसा जिला हिसार में एक जासूस अरसा चार-पांच साल से आए हुए थे। वे सरसा में मकान बनवाते थे और गिरवा देते थे। यही काम चार साल से चल रहा था। जिस दुकान पर जाते थे वहां से सारा सामान जितने पैसे दुकानदार मांगता था देकर खरीद लेते थे। अब यह आम चर्चा है कि वो सरसा में एक गुफा के अन्दर वायरलैस से बातें करते हुए गिरफ्तार कर लिए हैं। कहते हैं कि मिल्टरी का अपना वायरलैस लगा हुआ था। उन्होंने इस वायरलैस से अपना कनैक्शन जोड़ लिया और सारे हालात मालूम कर लिए और फिर पुलिस के साथ बिना वर्दी में उसको गिरफ्तार कर लिया है और काफी खुफिया सामान मिला है।
अखबार हिन्दुस्तान (हिन्दी) 25-04-1957
सच्चा सौदा गिरफ्तार- पाकिस्तानी जासूस (हमारे संवाददाता द्वारा)- हिसार (डाक से) सच्चा सौदा नाम के साधु को सैनिक पुलिस ने छापा मारकर गिरफ्तार किया और उसके पास बरामद माल से उसके पाकिस्तानी जासूस होने का शक किया जाता है। जिला हिसार का ऐसा कौन व्यक्ति होगा जो ‘सच्चा सौदा’ को न जानता हो हजारों व्यक्ति उसके भक्त बन चुके थे। जो भी उन महात्मा की शरण में गया उसने कुछ न कुछ प्राप्त अवश्य किया। जब भी कभी ये महात्मा बाजार में निकलते थे तो दुकानों का सारा सामान मोल लेकर वहां खड़े व्यक्तियों में मुफ्त बांट देते थे और इस प्रकार शिक्षित क्षेत्र में एक सन्देह का विषय बना हुआ था और जब भी उन महात्मा की चर्चा होती थी तो आम जनता में आश्चर्य पैदा हो जाता था। सरसा के समीप उस महात्मा ने एक गुफा बना रखी थी।
उन महात्मा के पीछे सी.आई.डी. कई वर्षों से लगी हुई थी परन्तु जाहिरा कुछ भी भेद न निकाल सकी अब यह महात्मा जी पकड़े गए हैं। सैनिक पुलिस ने अचानक छापा मारा। उन महात्मा जी के पास एक वायरलैस सैट भी पकड़ा गया बताते हैं और उन्हें पाकिस्तान का जासूस बताया जाता है। कहते हैं कि पुलिस ने कुछ ऐसी वस्तुएं भी प्राप्त की हैं जो पाकिस्तान से सम्बन्ध रखती हैं। सच्चा सौदा की गिरफ्तारी से यहां आश्चर्य है।
जब उपरोक्त खबरें अखबारों में छपी, उस समय सच्चे पातशाह जी डेरा सच्चा सौदा महमदपुर रोही, जिला फतेहाबाद (हरियाणा) में विराजमान थे। चोजी पातशाह जी जानबूझ कर एक पुलिस की गाड़ी में चढ़ गए थे तो लोगों ने बातें बना दी और अखबारों ने छाप दिया।
जब अखबार वाले को सच्चाई का पता चला तो वह बेपरवाह जी से माफी मांगने आया। उस समय शहनशाह जी डेरा सच्चा सौदा नेजिया (सरसा) में विराजमान थे। जब सेवादारों ने शहनशाह जी के चरणों में अर्ज की कि अखबार वाला माफी मांगने आया है तो सच्चे पातशाह जी ने उसके गले में नोटों के हार डाल कर उसका सम्मान किया और वचन फरमाया, ‘तूने तो मुफ्त में सच्चा सौदा की मशहूरी की है। अगर सच्चा सौदा की मशहूरी करवाते तो कितना पैसा खर्च होता।’
शहनशाह जी कभी भी अपने आप को जाहिर नहीं करते थे। जो कोई शहनशाह जी को शाह मस्ताना या कोई बड़ाई वाले शब्दों से पुकारता था तो उसकी शामत आ जाती थी।
उसको शहनशाह जी के हुक्म से लाठियों से पीटा जाता था। पर अपने अभ्यासी खास जीवों के सामने अपने आप को जाहिर भी कर देते थे। एक बार एक सेवादार ने शहनशाह मस्ताना जी महाराज के चरणों में अर्ज की, साईं जी ! ये जो आप दुनिया से अलग काम करते हो, जैसे मकान बनवाना फिर गिरवाना, अपनी निन्दा करवाना, सोना-चांदी, नोट बांटना आदि इन बातों की समझ नहीं आती। इस पर सर्व-सामर्थ सतगुरु जी ने फरमाया, ‘पहले अन्दर देखा है तो बोलो। कबीर साहिब ने यही कहा।
गुरु नानक साहिब ने भी यही कहा। अगर अर्सी बोलते कि सच्चा सौदा में खुदा आया है तो कोई ना मंनदा। पहले जितने फकीर आए थे वो हमारे भेजे आए थे। अब हम इस बॉडी में उतर कर आए हैं। पुट्ठा-सिद्धा कम्म कीता तो दुनिया आई। जिसमें राम नाम के सौदे के ग्राहक भी आए।’
इस प्रकार की बातों से सच्चा सौदा दुनिया में दूर-दूर तक मशहूर हो गया। स्पष्ट है कि आम इन्सान सन्त-महापुरुषों के रहस्य को नहीं समझ सकता।