तुझसे ही पूछा, जाया करेगा’ :सत्संगियों के अनुभव- पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की दया-मेहर
प्रेमी मुखत्यार सिंह इन्सां पुत्र सचखंडवासी श्री जग्गर सिंह निवासी गांव दयौण जिला भटिण्डा से पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपने तथा परिवार पर हुई रहमत का वर्णन इस प्रकार करता है:
सन् 1988 की बात है। उस समय तक हमारे परिवार में मैं तथा मेरी पत्नी ने ही नाम-शब्द लिया हुआ था। उस समय हमारी तीन बेटियाँ ही थी, बेटा कोई नहीं था। इस बात को लेकर परिवार के दूसरे सदस्य जो तब बिना नाम वाले थे, हमें ताने मारते कि ये तो सरसे वाले बाबा के पास जाते हैं। सच्चे सौदे वाला बाबा इन्हें लड़का क्यों नहीं देता और कुछ आस-पड़ौस के लोग तथा रिश्तेदार भी ऐसी-ऐसी बातें करते रहते। जिन्हें सुनकर हमें बहुत दु:ख होता, हमारे दिल को बहुत चोट पहुंचती।
एक दिन मैं अपनी पत्नी को साथ लेकर डेरा सच्चा सौदा शाह मस्ताना जी धाम (शाह मस्ताना शाह सतनाम जी धाम व मानवता भलाई केन्द्र डेरा सच्चा सौदा) सरसा पहुंच गया। शाम का समय था। पूजनीय परमपिता जी सचखंड हॉल एवं तेरावास के बीच वाले पंडाल में बैठे हुए थे। उस समय कुछ-कु संगत परमपिता जी की पावन हजूरी में बैठी हुई थी। संगत थोड़ी ही थी, इसलिए हमें स्टेज के बिल्कुल नजदीक जगह मिल गई। जब मैं पूजनीय परमपिता जी को नमन करते हुए ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ नारा लगाकर बैठने लगा तो सतगुरु जी ने फरमाया कि ‘भाई कहां से आए हो?’ मैंने हाथ जोड़कर अर्ज की कि पिता जी, हम गांव दयौण जिला भटिंडा से आए हैं।
परमपिता जी ने फिर पूछा कि भाई, क्या काम करते हो? मैंने बताया कि पिता जी, मैं थर्मल प्लांट भटिंडा में नौकरी करता हूं। सच्चे पातशाह पूजनीय परमपिता जी ने वचन फरमाया कि भाई, तू बिजली तो हमें देता नहीं। मैंने अर्ज़ की कि पिता जी, मैं तो एक आम वर्कर हूँ, बिजली देना मेरे वश में नहीं है जी। तीनों कालों की जानने वाले सतगुरु जी ने फरमाया कि ‘भाई, यहां पर अलग-अलग जगह पर दो प्लांट और लगेंगे और तीनों थर्मल प्लांट में तेरा नाम होगा, तेरे से ही पूछा जाया करेगा।’ उस समय यह कहानी मेरी समझ से बाहर थी।
थोड़ा समय ही गुजरा था कि पूजनीय परमपिता जी के वचनानुसार रोपड़ और लैहरा दो थर्मल प्लांट लग गए। समय चलता रहा और सर्विस के लिहाज से मेरी तरक्की भी होती गई और इसके साथ ही मेरी जिम्मेदारी भी बढ़ती गई। सतगुरु-दाता परमपिता जी के वचनानुसार तीनों थर्मल प्लांटों भटिंडा, रोपड़ व लैहरा में काम के लिए मुझे ही बुलाया जाता था। मुझसे ही पूछा जाता था। यानि मेरी सलाह ली जाती थी। फिर परमपिता जी ने मुझसे पूछा कि ‘भाई, क्या काम आए हो?’ मैंने असल बात को न बताते हुए प्रार्थना की कि पिता जी, दर्शन करने आए हैं जी। घट-घट की जानने वाले सतगुरु जी ने पूछा कि ‘भाई, आए तो काम हो, फिर बताते क्यों नहीं? तेरे साथ और कौन-कौन है?’ मैंने अर्ज की कि पिता जी, मेरे साथ मेरे घरवाली बीबी है। यह सुनकर दयालु दाता जी खिलखिला कर हंसने लगे।
अपने सतगुरु-दाता परमपिता जी को इस तरह हंसता देखकर वहां पर मौजूद सारी संगत भी हंसने लगी। फिर सेवादार भाई महा सिंह जी को मुखातिब करके फरमाने लगे कि ‘भाई महा सिंह! देख, भोला घरवाली को ‘बीबी’ कहता है।’ परमपिता जी के वचन सुनकर संगत भी खूब हंसने लगी। परमपिता जी ने अपने वचनों को दोहराते हुए फिर फरमाया कि आए तो किसी खास काम के लिए हो, अब बताते क्यों नहीं! मैंने अपने दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि सच्चे पातशाह जी, एक लड़के की इच्छा लेकर आप जी की शरण में आए हैं जी। सर्व-सामर्थ सतगुरु जी ने मुस्कुराते हुए फरमाया कि बस, यही बात थी! उसके बाद पूजनीय परमपिता जी ने एक जीएसएम-सेवादार भाई से दो सेब मंगवाए।
सच्चे पातशाह जी ने मुझे एक सेब का प्रसाद देते हुए फरमाया कि ले भाई लड़का! फिर परमपिता जी ने दूसरे सेब का प्रसाद मेरी पत्नी को दिया। हम दोनों मालिक सतगुरु-दाता जी के पवित्र कर-कमलों का प्रसाद लेकर अत्यंत खुश हुए। सच्चे पातशाह जी की अपार कृपा से हमारे घर अगले साल ही एक बेटे ने जन्म लिया। बच्चे के जन्म के पंद्रह दिनों बाद मैं दरबार में आया। उस समय पूजनीय परमपिता जी तेरावास में विराजमान थे। मैंने सतगुरु-दाता पूजनीय परमपिता जी की पावन हजूरी में प्रार्थना की कि सच्चे पातशाह पिता जी, आप जी की अपार कृपा से लड़के ने जन्म लिया है जी। तो परमपिता जी ने वचन फरमाया कि बेटा, लड़का शाह मस्ताना जी की कृपा से हुआ है।
मैंने स्वाभाविक ही कह दिया कि पिता जी, दिया तो आप जी ने है ही और नाम सार्इं मस्ताना जी महाराज का लिए जा रहे हो। इस पर पूजनीय दयालु दाता परमपिता जी बहुत खुश हुए। परमपिता जी ने मुझे बर्फी का प्रसाद दिया और मां-बेटे के लिए भी दिया तथा वचन फरमाया कि ‘यह मां-बेटे को देना है।’ फिर सतगुरु जी ने फरमाया कि ‘उसका नाम क्या रखा है?’ मैंने विनती की कि पिता जी, हम तो उसे प्रेमी ही कहते हैं। तो सच्चे पातशाह जी ने बच्चे का नाम रखते हुए अपने पवित्र मुखारबिंद से फरमाया कि भाई इस बच्चे का नाम ‘मनप्रीत’ है और दूसरे लड़के का नाम ‘सुखजीत’ रख लेना।
इस पर मैंने सच्चे पातशाह जी से विनती की कि पिता जी, लड़का तो एक है और नाम दो रख दिए हैं जी! तो सतगुरु जी ने फरमाया कि ‘बेटा, तू भूल गया, तेरी ईमानदारी, तेरा प्रेम देखकर तुम्हें दो बेटे दिए थे।’ इस तरह सर्व-सामर्थ सतगुरु जी ने मेरे दूसरे लड़के का नाम भी पहले ही रख दिया, जबकि पहला बच्चा तब केवल पंद्रह दिन का ही था। सच्चे पातशाह जी के हुक्मानुसार हमारे घर पर करीब डेढ़ साल बाद दूसरे लड़के ने जन्म लिया। हमारा सारा परिवार सतगुरु-मालिक प्यारे की रहमत को पाकर अत्यंत खुश हुआ। हमने दूसरे लड़के का नाम पूजनीय परमपिता जी के हुक्मानुसार सुखजीत ही रखा।
सतगुरु-दाता प्यारे की कृपा से वो लोग भी नाम दान प्राप्त करके प्रेमी बन गए, जो अक्सर मुझे सतगुरु के नाम पर ताने मारा (दिया) करते थे और आज वे लोग भी इस पवित्र दरबार में पक्के सेवादार हैं। सतगुरु, दाता परमपिता जी के प्रत्यक्ष स्वरूप पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां (डॉ. एमएसजी) के पवित्र चरण-कमलों में मेरी यही अरदास है कि प्यारे दाता जी, इसी तरह दया-मेहर, रहमत हमारे परिवार पर बनाए रखना जी तथा मानवता की सेवा में लगाए रखना जी।