Icon of organic farming and marketing Kailash Choudhary

जैविक खेती व मार्केटिंग के आइकान कैलाश चौधरी आंवला की खेती ने बदली5 हजार किसानों की किस्मत

“खेती से बड़ा और कोई काम नहीं है। इसमें अपार संभावनाएं हैं। खेती में हजारों विकल्प हैं। बागवानी, सब्जी की खेती, नर्सरी, पशुपालन, डेयरी उत्पाद, किसी भी क्षेत्र को अपनाकर उसमें कड़ी मेहनत से लग जायें, फिर उसमें सफल होकर किसी अन्य खेती के विकल्प को भी चुन सकते हैं। इससे आमदनी के कई अवसर खुलेंगे। किसान पारंपरिक खेती को त्यागें और नई प्रकार की कृषि उपजों का उत्पादन करें।
-कैलाश चौधरी

कहते हैं समाज को बदलने के लिए एक व्यक्ति की कोशिश ही काफी होती है। ऐसी ही सकारात्मक सोच के बलबूते कैलाश चौधरी ने राजस्थान के कोटपूतली जिले को जैविक खेती एवं फूड प्रोसेसिंग प्लांटंस का हब बना दिया है। कोई वक्त था, जब ऊंट और बैल से खेती होती थी, कैलाश चौधरी ने खेती में आए आधुनिकी बदलाव को बखूबी देखा है। अब ट्रैक्टर और मशीनों से अधिकतर कार्य होने लगा है। कैलाश चौधरी ने इस आधुनिक दौर को जैविक तौर पर अपनाया और समाज के लिए नई मिसाल पेश की। यही वजह है कि आज उन्हें राजस्थान प्रदेश में जैविक खेती और रूरल मार्केटिंग का आइकॉन माना जाता है।

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‘लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती’ कैलाश चौधरी का जीवन इन पंक्तियों के सार का जीवंत उदाहरण है। कैलाश चौधरी के पिता के पास 60 बीघा जमीन थी, पर गांव में ज्यादा जमीन असिंचित थी इसलिए मुश्किल से 7-8 बीघा पर खेती होती थी। फिर 70 के दशक में उन्होंने सिंचाई के नए-नए प्रयोग करने शुरू किए। जैसे कि रेहट (वाटर व्हील) लगाया और इससे सिंचाई शुरू की। फिर रेहट की जगह दो-तीन साल बाद डीजल पंप ने ले ली। जिससे जमीन की पैदावार बढ़ी क्योंकि पानी होने से सिंचित जमीन का दायरा बढ़ने लगा था।

सन् 1995-96 में तहसील में कृषि विज्ञान केंद्र खुला। उस वक्त विदेशों में जैविक खेती की चर्चा शुरू हो गई थी। कैलाश कहते हैं कि उस समय भारत में अधिक पैदावार के लिए हरित क्रांति पर जोर दिया जा रहा था, लेकिन केमिकल युक्त खेती होने के नकारात्मक परिणाम भी सामने आने लगे थे। इस संकट से कैसे निपटा जाए, इसके लिए उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से संपर्क किया। वैज्ञानिकों ने उन्हें बताया कि कृषि कचरे के इस्तेमाल से इस समस्या का हल निकाला जा सकता है। फसल कटाई के बाद जो कचरा बचता है, उससे कंपोस्ट तैयार किया जा सकता है। इससे फसल फिर से अच्छी होना शुरू हो गई। तभी से लेकर कैलाश चौधरी पूरी तरह से जैविक खेती करने लगे।

आंवले की खेती से की शुरूआत

कैलाश चौधरी बताते हैं कि विज्ञान केंद्र किसानों को आंवले के पौधों की दो यूनिट दे रहा था। एक यूनिट में 40 पौधे थे तो कुल 80 पौधें अपने खेत में लगवाए। उनमें से 60 पौधे पेड़ बने। लगभग 2-3 साल बाद उनमें फल आया, लेकिन जब उनका छोटा भाई उन्हें मंडी में बेचने गया तो कोई खरीददार ही नहीं मिला और उसे मायूस लौटना पड़ा। लगभग तीन दिन तक उनके आंवले यूँ ही मंडी में पड़े रहे और उनमें फंगस लग गई। अपनी तीन-चार साल की मेहनत का उन्हें एक पैसा भी नहीं मिला।

इसके बाद कैलाश चौधरी ने हमेशा की तरह परिस्थितियों से लड़ने की ठानी। केवीके के वैज्ञानिकों से सलाह लेने के बाद चौधरी को रास्ता मिला, जिसने न सिर्फ उनकी किस्मत बल्कि उनसे जुड़ने वाले लगभग 5000 किसानों की किस्मत को बदला है। केवीके में एक वैज्ञानिक उत्तर-प्रदेश के प्रतापगढ़ से था और उन्होंने कैलाश को बताया कि आंवले को प्रोसेस किए बगैर बेचना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन प्रोसेसिंग करके प्रोडक्ट्स बनाकर बेचें तो मुनाफा बहुत है। कैलाश ने प्रतापगढ़ के लिए अपनी यात्रा शुरू की। गांव पहुंचे तो उन्होंने देखा कि वहां महिलाएं खुद ही आंवले के कई उत्पाद तैयार कर रही हैं। हाथ से ही वो इन उत्पादों को तैयार करती थीं और फिर सड़क किनारे रेहड़ी लगाकर उनको बेचा जाता था। वहां पहुंचकर आंवले की प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और मार्केटिंग सीखी।

कैलाश चौधरी प्रतापगढ़ से आंवले के उत्पाद के कई सैम्पल लेकर आए। उन्होंने घरवालों को खिलाया। सबको पसंद आया। इसके बाद 2002 से उन्होंने आंवले से कई प्रॉडक्ट्स बनाने की शुरूआत कर दी। इन्हें बेचने के लिए कोटपूतली में ही स्टॉल लगवाया। उस दौरान कोटपूतली में आंवले के उत्पादों को बड़ा बाजार नहीं मिला। उन्होंने अपने प्रोसेसिंग प्लांट के जरिए एक जैविक कृषि महिला सहकारी समिति का गठन भी किया। इससे लगभग 45 महिलाओं को उनके प्रोसेसिंग प्लांट में रोजगार मिला। इन महिलाओं में कुछ ऐसी महिला किसान भी हैं जिनकी अपनी कुछ जमीन है और वे उस पर आॅर्गेनिक उपज ले रही हैं। वे अपनी उपज को भी कैलाश के प्रोसेसिंग प्लांट में ही प्रोसेस करके बेचती हैं।

आंवले के लड्डू, कैंडी, जूस व मुरब्बा बना रहे

आंवला प्रोसेसिंग यूनिट में उन्होंने आंवले के लड्डू, कैंडी, मुरब्बा, जूस आदि बनाना शुरू किया। उन्हें जयपुर के पंत कृषि भवन में अपने प्रोडक्ट्स बेचने की अनुमति मिल गई। यहाँ पर उनके आर्गेनिक सर्टिफाइड प्रोडक्ट्स हाथों-हाथ बिके। कैलाश चौधरी की सफलता की कहानी यहीं खत्म नहीं होती है। अपने परिवार के लिए एक सस्टेनेबल कृषि मॉडल तैयार करने के बाद, उन्होंने अन्य किसानों के लिए खुद को समर्पित किया। नेशनल हॉर्टिकल्चर मिशन ने उन्हें राजस्थान की राज्य समिति का प्रतिनिधि बनाया। उन्हें किसानों को जैविक खेती, हॉर्टिकल्चर और फूड प्रोसेसिंग जैसी पहल से जोड़ने की जिम्मेदारी दी गई। अब कैलाश चौधरी मोरिंगा का पाउडर, वीट ग्रास का पाउडर, तिरफला पाउडर, जामुन पाउडर, नीम पाडर, एलोवेरा जूस व एलोवेरा पाउडर का उत्पादन व मार्केटिंग कर रहे हैं।

इसके अलावा उन्होंने अपने खेत में ही बेलपत्थर लगाया हुआ है, जिसकी कैंडी, मुरब्बा, पाउडर तैयार करते हैं। आज उनके खेत में आंवले के एक हजार पौधे लगे हुए हैं, जहां से वे एक हजार टन आंवले का उत्पादन ले रहे हैं। वे आंवले सहित अन्य 40-45 तरह के प्रोडक्ट तैयार कर रहे हैं। साथ ही 20 से 25 महिलाओं सहित कई बेरोजगार युवकों को भी रोजगार दे रहे हैं। कैलाश चौधरी ने गांव में ही 50 किसानों का गुप बनाया हुआ है। वे सभी किसान एकत्रित होकर चार से पांच हजार लीटर कच्ची घानी का सरसों का तेल हर महीने दुबई भेजते हैं। कहते हैं कि किसी भी कामयाबी के पीछे परिवार का हाथ होता है। कैलाश चौधरी की सफलता में भी उनके परिवार में पत्नी सरती देवी, उनके बेटे मनीष और मुकेश, पुत्रवधू मीना और शुभहिता का महत्वपूर्ण योगदान है।

उनके बेटे व पुत्रवधू शिक्षित हैं, जो मार्केटिंग व प्रोडक्ट को आॅनलाइन बेचने का जिम्मा संभाल रहे हैं। किसी भी प्रकार को कोई नया प्रयोग व नई शुरूआत करनी हो तो पूरा परिवार सहमति से अंजाम देता है। आज कैलाश चौधरी इतने बड़े पैमाने पर प्रोजेक्ट स्थापित होने का श्रेय पूरे परिवार को देते हैं।

कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित

कैलाश चौधरी को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अब तक 104 पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। उन्हें दो अंतर्राष्टÑीय पुरुस्कार भी मिले हैं। सन 2004-05 में इंटरनेशनल ट्रेड फेयर चंडीगढ़ में बेस्ट फार्मर अवार्ड व दूसरा 2017 में ग्रेटर नोएडा एग्जिबिशन सेंटर में वर्ल्ड आॅर्गेनिक कांग्रेस आॅर्गेनिक फार्मिंग का पुरस्कार मिल चुका है। इसके अलावा जयपुर राजस्थान में 2016 बेस्ट जैविक खेती व मूल्य समर्थन में प्रथम पुरस्कार मिल चुका है।

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